परेशां आँसुओ से, आँखों को पथरा रहे थे इक वक़्त से,
खिलाफ़ यूँ हुई साजिशें कुछ कि ज़ुल्फों में बादल आ बैठे ।।-
हाय इस तरह रूबरू मत आया करो मेरे, जांना
मुझको तेरे जुल्फ-ओ रुखसार से डर लगता है।-
तुम यूं अपनी ज़ुल्फ़ लहराया न करो
मोर गलतफहमी में पंख फैला लेते हैं।-
मत छुपाइये ज़ुल्फ़ों से झुमकों की अदा को,
थोड़ी सी बातचीत हया को भी कर लेने दीजिए ।-
मुझसे इश्क़ कुछ यूँ निभा देना,
मैं ज़ुल्फ़ सवारूँ, तू मुस्कुरा देना-
वो जब भी मेरे चेहरे से
ज़ुल्फ़ हटाता है..
उस नर्म एहसास में
जिंदगी का हर पल ठहर जाता है..
सिर चूम कर जब
आँखों से मुस्कुराता है
शर्म से लब काँप जाते हैं..
चेहरा खुद-ब-खुद
उसके सीने में छुप जाता है...
हाथ थामकर जब
अंधेरों से दूर लाता है..
उसके प्यार पर मुझको
तब और प्यार आता है..
जब भी मेरी शरारतों से
एक पल को भी मुस्कुराता है..
उस मासूम मुस्कान को देख
इस दिल को सुकून आ जाता है...-
आईना भी टूटने की साज़िश में है एक ख़बर सुनकर
संवारती है ज़ुल्फ़ आजकल वो किसी और को देखकर-
यह जो तुम्हारी ज़ुल्फ़ बार-बार
तुम्हारे रुख़सार को छूती है ना
उसे थोड़ा समझा लेना
'मैं उससे बहुत जलता हूँ'
- साकेत गर्ग 'सागा'-