ना ही तीर और न ही तलवार से डर लगता है
आइना हूं साहब --- किरदार से डर लगता है।
आज के दौरे- तरक्की में मोहब्बत की क़सम
मुझको नफरत से नहीं प्यार से डर लगता है।
نہ ہی تیر اور نہ ہی تلوار --سے ڈر لگتا ہے
آئنہ ہوں صاحب --- کردار سے ڈر لگتا ہے
آج کے دور - ترقّی میں محبت کی قسم
مجھکو نفرت سے نہیں پیار سے ڈر لگتا ہے-
Mechanical & Metallurgical Engineer
Very bussy i... read more
मसअला ये नहीं कि मुझको --- मोहब्बत नहीं मिली
मुद्दआ ये है कि हम इश्क़ के तीसरे मुक़ाम पर भी न पहुँचे
مسئلہ یہ نہیں کی مجھ کو -------- مُحبت نہیں ملی
مدّعا یہ ہے کہ ہم عِشق کے تیسرے مقام پر بھی نہ پہنچے-
हमारे ग़मों पे ग़ुँच- ओ -गुल- ओ-सबा ने तंज़ किया
हँसी उड़ाई शज़र ने भी , और हवा ने तंज़ किया
ہمارے غموں پے گنچ -و- گل- و- صبا نے طنز کیا
ہنسی اڑائی شجر نے بھی ، اور ہوا نے طنز کیا
शुरू - ए - इश्क़ में अब भला हम गुफ़्तुगू क्या करते
हटाया निक़ाब जो चेहरे से तो हया ने तंज़ किया
شروع عشق میں اب بھلا ہم گُفتگو کیا کرتے
ہٹایا نقاب جو چہرے سے تو حیا نے طنز کیا
नर्म लहज़ा,शीरीं-तकल्लुम,चश्म-ए-करम दिखावे हैं
बढ़ाया हाथ दोस्ती का तो मुझपे वफ़ा ने तंज़ किया
نرم لہذا ، شیریں تکلّم ، چشم کرم ، دکھاوے ہیں
بڑھایا ہاتھ دوستی کا تو مجھپے وفا نے طنز کیا
हुस्न की फ़ितरत है अज़ल से सितम -शिआरी की
दास्तान- ए- हिज़्र जो सुनाया तो ज़फ़ा ने तंज़ किया
حسن کی فطرت ہے اجل سے سِتم شعاری کی
داستان ہجر جو سنایا تو ظفا نے طنز کیا
मर्ज़- ए -इश्क़ लादवा है अब इलाज़ ही क्या करते
मिलीजो दर्द-ए-दिल की दवा तो शिफ़ा ने तंज़ किया
مرض عِشق لادوا ہے اب علاج ہی کیا کرتے
ملی جو درد دِل کی دوا تو شفاء نے طنز کیا
उम्र भर एक भी सजदा नसीब न हुआ निदामत का
अब बुढ़ापे में जो हाथ उठाया तो दुआ ने तंज़ किया
عمر بھر ایک بھی سجدہ نصیب نہ ہوا ندامت کا
اب بڑھاپے میں جو ہاتھ اٹھایا تو دعا نے طنز کیا
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जो अपने ख़ालिक़ का वफ़ादार नहीं हो सकता
फ़िर वो किसी का महबूब -ए- यार नहीं हो सकता!
इश्क़ निभाने के भी कुछ -- आदाब हुआ करते हैं
सिर्फ़ नज़र मिलने से कभी प्यार नहीं हो सकता !
तेरे इक दीद की ख़ातिर लम्हों की मसाफ़त तय की
क्या कहा , अब दोबारा तेरा दीदार नहीं हो सकता!
अब-के रूठो तो कोई नहीं आएगा मनाने तुमको
आजका मजनू तो इश्क़ में बीमार नहीं हो सकता!
रस्म -ए- इज़हार -ए- मोहब्बत तो ज़रूरी है लेकिन
अब मुझसे ये तमाशा सर-ए-बाज़ार नहीं हो सकता!
हमने देखी है हाथों की लकीरों को पलटकर भी
अब मेरा दामन गुल -ए- गुलज़ार नहीं हो सकता!
निकाह से पहले जिस्मानी ता'अल्लुक़ात का ख़्याल
कुछ भी हो जाए , ये तो मेरे यार नहीं हो सकता !
इब्न-ए-आदम से गुनाह होना तो लाज़िम है यारों, पर
मेरा जिस्म अब ऐसा तो गुनाहगार नहीं हो सकता!
ये हुस्न-ओ-जमाल ये अदा-ओ- नखरे तुझे हो मुबारक
मेरा ज़मीर बिके ऐसा तो कोई खरीदार नहीं हो सकता!
अच्छा जा रहे हो ,जाओ ,पर ये सच भी सुनते जाओ
अब ये दिल किसी के इश्क़ में गिरफ़्तार नहीं हो सकता!
ऐन मुमकिन की है कि आ जायें फ़रिश्ते लेने मुझको
अब इससे ज़्यादा और मौत का इंतज़ार नहीं हो सकता!-
दश्त-ए-शफ़क़त,अब ज़िंदगी में मयस्सर ही नहीं
ख़ुद से हम लगते हैं गले और संभल जाते हैं
ज़िंदगी ने सिखाया हमें रिश्तों का मतलब क्या है
ग़ैर तो ग़ैर हैं पर , यहाँ अपने भी बदल जाते हैं
دشت شفقت ، اب زندگی میں میسّر ہی نہیں
خد سے ہم لگتے ہیں گلے اور سنبھل جاتے ہیں
زندگی نے سکھایا ہمیں رشتوں کا مطلب کیا ہے
غیر تو غیر ہیں پر،یہاں اپنے بھی بدل جاتے ہیں-
चली है बसंत की - लहर धीरे धीरे
करेगी दिलों पे ---- असर धीरे धीरे!
ये उल्फ़त की बातें, मोहब्बत के क़िस्से
तुम्हें भी होगी इश्क़ की ख़बर धीरे धीरे!
अदा-ए-हैरत-ए-आईना क्यों देखता है
कहीं लग न जाए तुझको नज़र धीरे धीरे!
ये लाल ओ गोहर ये चश्म ए दीवाना गर
आयेंगे मिलने शम्स-ओ-क़मर धीरे धीरे!
शब-ए-हिज़्र अब काटे नहीं कटती,मगर
शाम- ए- ग़म की होगी सहर धीरे धीरे!
राह- ए- हयात में गर रहेगी तेरी इनायत
कट जायेगा ज़िंदगी का सफ़र धीरे धीरे!
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फ़रेब- ए- इश्क़ की जो थी शिद्दत अब हो गई पूरी
गुनाह-ए-नफ़्स की जो थी ज़रूरत अब हो गई पूरी
मिटाकर अपनी हवस खोरी वो अकड़कर ये बोला
पहन लो ये कपड़े जानाँ मोहब्बत अब हो गई पूरी
فریب عِشق کی جو تھی شدّت اب ہو گئی پوری
گناہ نفس کی جو تھی ضرورت اب ہو گئی پوری
مٹاکر اپنی حوس - کھوری وہ اکڑکر یہ بولا
پہن لو یہ کپڑے جاناں محّبت اب ہو گئی پوری
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बेरहम सी इस दुनिया में बस अपनों की बाहें मिलती हैं,
काश कोई होता अपना भी आग़ोश में उसके रो लेते!
بے رحم سی اس دُنیا میں بس اپنوں کی باہیں ملتی ہیں
کاش کوئی ہوتا اپنا بھی آغوش میں اسکے رو لیتے ۔-
कितनी प्यारी सुशील लगती है
जैसे मीठे पानी की झील लगती है।
क्या बताएँ अब उसके हुस्न का आलम
सर से पा तक हसीन ओ जमील लगती है।
नोश करके रिंदो ने लब की लाली को
बेसाख्ता ये बोले कि ज़ंज़बील लगती है।
शब ए विसाल का वो मंज़र है मेरे पहलू में
वो जान ए जाँ दिलरुबा ख़लील लगती है।
अभी पढ़ा था उसके जिस्म का बस एक दो ही वरक़
हर एक आज़ा किसी ग़ज़ल की तफ़्सील लगती है।
तू अगर साथ हो तो ये सफ़र कट ही जाएगा
यूँ अकेले चलने से मंज़िल बड़ी तवील लगती है।
यूँ तो ख़ुदा ने बनाया है सभी को जोड़े में
पर तेरे साथ होने से ज़िंदगी तक़मील लगती है।
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इश्क़ का तोहफ़ा शायद हर किसी को नहीं मिलता
मेरा यक़ीन है ये किसी कमज़र्फ को नहीं मिलता
ज़माना आज़माता है चालाकियाँ बस मुख्लिस पर
इन्हें ख़बर नहीं की टूटा हुआ फूल दोबारा नहीं खिलता
عِشق کا تحفہ شاید----------- ہر کسی کو نہیں مِلتا
میرا یقین ہے یہ کسی -------- کمزرف کو نہیں مِلتا
زمانہ آزماتا ہے------------- چالاکیاں بس مخلص پر
انہیں خبر نہیں کی ٹوٹا ہوا پھول دوبارہ نہیں کھلتا-