Supriya Mishra   (Whitebird)
14.5k Followers · 463 Following

read more
Joined 29 October 2016


read more
Joined 29 October 2016
22 OCT 2024 AT 23:27

अपने बदन पर मॉश्चराइजर लगाते हुए मुझे हमेशा मुझे पापा के पैर याद आ जाते हैं। सफ़ेद पपड़ी पड़ी त्वचा, पैरों की हड्डियों से इस तरह जुड़ी, जैसे सुबह बिस्तर पर बेतरतीबी से चादर पड़ा हो। न बिस्तर से पूरा सटा, न अलग। सूखे पड़े घुटने, जहां तहां चोट के निशान।

'तेल मोस्चराइज़र क्यों नहीं लगाते आप?' 

'क्या हड्डी पे घी डालना!'

सोचती थी, पापा कितने लापरवाह हैं। अपना ध्यान ही नहीं रखते। हालांकि, मां बताती है कि एक ज़माने में पापा बहुत शौक़ीन हुआ करते थे। तरह तरह के परफ़्यूम, क्रीम तेल वगैरह से लैस, पॉकेट में कंघी, एकदम टिप टॉप। 

मगर वो अपने शौहर की बात बताती हैं। विश्वास करने को कर लें मगर हमारे पापा के तो शायद सारे शौक़ बाप बनते ही हवा हो गए। हमने कभी उनको इस तरह ख़ुद को सजाते नहीं देखा, बल्कि उसका एकदम उल्टा। फल, घी, बादाम कभी दो तो कहते कि 'तुम खाओ, बच्चे खाते हैं।' और हम खा जाते, क्योंकि हम बच्चे थे। बाप की भाषा बच्चे कहां समझ पाते हैं।

हमारे घर महंगी चीजें ख़ास अवसरों के लिए आती थीं। परफ्यूम खरीदे जाते शादियों के लिए और फिर अगली शादी तक एक्सपायर हो जाते। फिर वहीं एक्सपायर् हुए परफ्यूम अगली शादी में लगाए जाते। क्योंकि बोतल भरी है, फेंके कैसे! 

कैसे हमारे पास अपने बच्चों के लिए हमेशा पैसे होते हैं और अपने लिए कभी नहीं, ये थोड़ा थोड़ा अब समझ आता है। 

सुप्रिया मिश्रा

-


8 SEP 2024 AT 18:09

Paid Content

-


4 SEP 2024 AT 13:05

जंगल बगीचे हुए और बालकनी में भागे
पेड़ पौधे हुए और गमलों में
जुगनू फैरीलाइट हुए और बल्ब में भागे
समंदर स्विगिंग पूल में भागा
बर्फ़ फ्रिज में
जानवर मीट हुए और कही नहीं भाग पाए
इंसान गीदड़ हुआ और भागा शहर की ओर।

- सुप्रिया मिश्रा

-


1 SEP 2024 AT 16:09

पूरी हो जाए अगर इक ख़्वाहिश
आपने सोचा है क्या माँगेंगे?

माँगेंगे ऐसी ही फिर से दुनिया
अबकि आदम के बिना माँगेंगे

- सुप्रिया मिश्रा

-


3 JUL 2024 AT 16:04

Paid Content

-


24 JUN 2024 AT 23:44

Paid Content

-


23 JUN 2024 AT 19:47

......

-


15 MAY 2024 AT 20:36

.........

-


8 MAY 2024 AT 7:47

कभी कभी आता था मेरे कमरे में
कभी कभी वो दूर से देखा करता था
मैं भी उसके इश्क में इतनी पागल थी
शाम ढले से अपनी खिड़की पे आकर
उसको सारी रात निहारा करती थी
उम्र भी मेरी क्या थी मानो सोलह हो
उसपे भी ये इश्क मेरा तो पहला था

(Read more in caption)

_सुप्रिया मिश्रा

-


25 DEC 2023 AT 1:06

2003 में पहली बार हमने क्रिसमस मनाया था। पापा को शायद ऑफिस में पता चला होगा कि क्रिसमस जैसी भी कोई चीज़ होती है।

(अनुशीर्षक में पढ़ें)

सुप्रिया मिश्रा

-


Fetching Supriya Mishra Quotes