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Writer, poet, performer, artist.
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ब्याही हुई लड़कियां
पालतू लैब्राडोर सी होती हैं
वो थोड़ा ज़्यादा अपनापन खोजती है।
लोगों को ज़्यादा अपना समझती है
बहुत ज़्यादा खुश होती हैं
बहुत ज़्यादा रोती है
वो सभी से प्रेम करती हैं
सभी का प्रेम चाहती है।
बहुत कुछ कह नहीं पाती
कुछ कुछ कहने की कोशिश करती है।
वो भागती ज़्यादा हैं, हांफती ज़्यादा है
यादों की मिट्टि कुरेदने में उन्हें आनंद आता है
वो लोगों के मन को सूंघ लेती है।
दिन भर की तन्हाई के बाद
उन्हें एक गरमा गर्म आलिंगन का इंतज़ार रहता है
वो गलतियां कर के
मुंह किसी मासूम बच्चे सा बनाती है
उन्हें चाहने वाले सब होते हैं
समझने वाले कम।
लड़कियां लैब्राडोर सी होती हैं
उन्हें लीश में नहीं बांधना चाहिए।
- सुप्रिया मिश्रा-
जब समाज ने अपनी परतें खोली तो समझ आया कि ये लोग तो कठपुतलियाँ है। तमाशा दिखाने वाला ये समाज। लिखने वाला समय।
गलती पूरी तरह किसी की नहीं, सुधारा पूरी तरह किसी को नहीं जा सकता।
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आ गया मैं रूह अपनी छोड़ कर
कौन जाने साथ उसके क्या हुआ
क्यों कोई झूठी कहानी हम गढ़ें
क्यों कहें ऐसा हुआ वैसा हुआ
~ सुप्रिया मिश्रा-
' क्या जिंदगी जीने लायक है?'
इस सवाल के काटने से
एक ज़बान की मौत हो गई।
जाते हुए वो इतना कह पाई
'समय से सब ठीक हो जायेगा'।
अवसाद के कैंसर के लिए
समय होम्योपैथी की दवा है।
- सुप्रिया मिश्रा-
पंछी पिंजरे में
इंसान मानसिकताओं में
लम्हें मोबाइल में
हम आज़ादी पसंद लोग
सब कैद कर लेते हैं।
- सुप्रिया मिश्रा-
ऐ, किताब पढ़ने वाली लड़की!
तुम्हारी आंखें किताब का आईना हो चुकी हैं।
तुम्हारी भौवें "ई" की मात्राएं हैं
जो तुम्हारे बदलते भावों के साथ
ह्रस्व और दीर्घ में बदलती जाती हैं।
- सुप्रिया मिश्रा
( अनुशीर्षक में पढ़ें )-
"मैंने नहीं किया"
ऐसा पहली बार कह कर मैंने
खुद को पिता के मार से बचाया।
दूसरी बार समाज से।
झूठ बोलना खुद को बचाने का आसान तरीका है।
इसलिए तीसरी बार तुमसे बोला और जाना
प्रेम से खुद को बचाने का कोई तरीका नहीं।
- सुप्रिया मिश्रा-