सोचता हूँ एक लफ्ज़ में ज़िंदगी के सारे उसूल लिखूँ,
एक किताब लिखूँ और हर पन्ने पे रसूल-रसूल लिखूँ।
سوچتا ہوں ایک لفظ میں زندگی کے سارے اصول لکھوں
ایک کتاب لکھوں اور ہر پنے پہ رسول رسول لکھوں-
Birthday: 13-Mar
only write what heart Says, it's ... read more
अंदाज़ में उसके अल्हड़पन, है अक़्ल से थोड़ी नादान सी,
है एक लड़की लखनवी लहज़े वाली, अवधी ज़बान की।
انداز میں اس کے الہڑ پن ہےعقل سے تھوڑی نادان سی
ہے ایک لڑکی لکھنوی لہجے والی اودھی زبان کی-
इस मिट्टी से अपने रिश्ते की क्या-क्या शिनाख़्त बताऊँ?
तुम्हें सज़दे गिनाऊँ? कब्रें दिखाऊँ? या तयम्मुम बताऊँ?
اس مٹی سے اپنے رشتہ کی کیا کیا شیناخت بتاؤں
تمھیں سجدے گیناؤں قبریں دکھاؤں یا تیمم بتاؤں-
है मौजूद मुझमें अनगिनत रंग
लेकिन है रंग अहम तिरंगे का,
किसकी मज़ाल कौन ख़रीदेगा
ना है कोई भी रक़म तिरंगे का,
हर झंडे कि मियाद है, लेकिन
रहेगा हमेशा अलम तिरंगे का,
ना सब्ज़ हो, ना ज़ाफ़रान हो
बस रहे एक नियम तिरंगे का,
अम्न-ओ-अमाँ फ़र्ज़ कर लो
है सभी को, क़सम तिरंगे का,
हो जाऊँगा फ़ना इस मिट्टी में
रहूँगा आख़िरी दम तिरंगे का,
जब जाऊँगा शहर आक़ा के
साथ रखूँगा अलम तिरंगे का।-
रखे ज़माना तलब रौशनी की चाँद तारों से,
मैं एक जुगनू सा दोस्त अपने साथ रखता हूं !
رکھے زمانہ طلب روشنی کی چاند تاروں سے
میں ایک جگنو سا دوست اپنے ساتھ رکھتا ہوں-
तुम मुमकिन ज़रा सा भी ज़ुलेख़ा हुए,
मैं नक्श-ए-क़दम, यूसुफ़ हो जाऊँगा।-
मैं ने संग-ए-मरमर को छूआ है, चूमा है
कोई मुझ से पूछे कि ताज महल क्या है,
میں نے سنگ مرمر کو چھوا ہے, چوما ہے
کوئی مجھ سے پوچھے کہ تاج محل کیا ہے-
कोई जा कर पूछ ले कर्बल के ग़र्द-ओ-ग़ुबार से,
लख़्त-ए-जिगर के टुकड़े गिने हैं अली के लाल ने !
کوئی جا کے پوچھ لے کربل کے گرد و غبار سے
لخت جگر کے ٹکڑے گنے ہیں علی کے لال نے-
यज़ीद हर दौर में रंग बदलता रहा है फ़र्ज़ी अदाकार की तरह,
हुसैन वालों। तुम डटे रहना इब्न-ए-अली के इनकार की तरह।
یزید ہر دور میں رنگ بدلتا رہا ہے فرضی اداکار کی طرح
حسین والوں.. تم ڈٹے رہنا ابن علی کے انکار کی طرح-
हम जो ठहरें क़िरदार-परस्त लोग,
यहाँ हुस्न की जादूगरी नहीं चलती।-