छोड़ो लौट न पाने का डर जानां,
मोहब्बत मेरी खानदानी है नही ।-
अक्सर तुम पर गज़ल लिखते हुए हाथ थरथरा जाता है। बस लिख पाता हूं कुछ आधे-अधूरे अल्फ़ाज। आर्ट की कक्षा में कमजोर होने से कभी तुम्हारी तस्वीर नहीं बना पाया पर, ज्यामिती की कक्षा में प्रबल होने से कुछ रेखाएं खींच ली जिसमें भी तुम छितरी-बितरी सी हो। स्थापत्य कला में दुर्बल रहने से कभी तुम्हारी मूर्ति भी नहीं बना पाया। नहीं संजो पाया गुलदान में भी क्योंकि फूलों को कभी स्पर्श करना नहीं आया।
कमजोर होना कितना बुरा है ना?
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"कैसा अजीब शहर है ये? कितना शोर है यहाँ! मुझे यहाँ अच्छा नहीं लगता।"
"क्या तुम भी? कितना अच्छा तो है सबकुछ। हमेशा शिकायत ही क्यों करती रहती हो?"
"अच्छा! ऐसा क्या है यहाँ जो कहीं और नहीं? मुझे भी बताओ, मैं भी जानूँ!"
"बहुत कुछ! या यूँ कहो सबकुछ। जीने के लिए ज़रूरी हर चीज़ है यहाँ।
जैसे कि, हवा है, पानी है, बिजली है, घर है, बाल्कनी है, चाय है और..."
"और..?"
"और.....तुम हो!"-
"कहाँ रहती हो आजकल? कितने दिनों से कोई फ़ोटो भी अपलोड नहीं की तुमने!" हर्ष ने अर्शी को इंस्टाग्राम पर मैसेज करके पूछा।
"फ़ोटोज़ खींचने के लिए भी सोचना पड़ता है। आज करूँ, कल करूँ, परसो करूँ... समझ नहीं आता।" अर्शी ने जवाब दिया।
"क्यों? ऐसा क्या करती हो?"
"अरे! मूड़ अच्छा रहता है तभी अच्छी फ़ोटो आती है।"
"नहीं तो! शक्ल अच्छी हो, तो अच्छी फ़ोटो आती है।"
"वो भी है... पर हम अच्छी शक्ल वालों में से नहीं हैं।" अर्शी ने दुःखी और हँसने वाले इमोजी के साथ उत्तर दिया।
"तुम आईना देखना छोड़ दो। मेरी आँखों में देखा करो, बहुत ख़ूबसूरत लगोगी।" हर्ष ने आँख मारने वाले इमोजी के साथ तीक्ष्ण बाण छोड़ा।
"आएए! मुझे शर्म आ रही है।" अर्शी ने कहा और फिर बार-बार हर्ष के मैसेज को पढ़कर लजाती रही। हया की लाली उसके गालों पर इस बात का प्रमाण थी कि हर्ष का चलाया हुआ बाण एकदम निशाने पर लगा।-
तुम बाक़ी प्रेमियों जैसे नहीं हो....
या शायद प्यार ही नहीं करते मुझसे,
(अनुशीर्षक में)
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छोटे से शहर के एक छोटे से रेस्टॉरेंट में दोनों
एक दूसरे की आंखों में देखते हुए मुस्करा रहे थे
और इश्क़ घोल रहे थे खाने में पुरानी यादों का, खाना
खत्म करके हाथों में हाथ डाले सुनसान सड़क पर चल दिये
जब कुछ पुरानी बातें करते हुए, अचानक वो बोली
-"तुम्हें खाने के बाद मीठा पसंद था ना ?"
-"तुम्हें अब तक याद है ?"
-"हाँ, और ये लो"
अपना गाल
आगे करके
वो
मुस्कुराई।।-
तुम सिर्फ लिखती ही हो या प्रेम करती भी हो!
तुम्हें क्या लगता है?
यह सब तुम्हारी कल्पना है।
लोग हक़ीक़त भी तो लिखते हैं।
लिखते होंगे। तुम नहीं लिखती।
तो फिर ये किस्से किसके हैं?
उनके जो तुम्हारी कल्पनाओं में जा बैठे हैं।
इश्क़ में कल्पना और सच एक ही होते हैं।
तुम्हे इश्क़ हो ही नहीं सकता।
{वो कह रहा था इश्क़ करने से आसान हैं इश्क़ लिखना}-
घंटों आसमान को ताक़ने के बाद
उसने अचानक ही मुझसे पूछ लिया,
"तुम्हें यक़ीन है मरने के बाद सब तारे बनते हैं?"
मैंने थोड़ा सोचकर कहा,"हाँ ",
"तो क्या हम दोनों तारे बनने पर एक साथ
रह सकेंगे आसमान में?", उसने बड़ी उम्मीद से
मुझे देखते हुए पूछा,
मैंने कहा,"पता नहीं, लेकिन जब कोई
आसमान को देखकर हमारी ही तरह
अपने मिलने की दुआ कर रहा होगा ना,
तब हम दोनों एक साथ टूट जायेंगे।"
वो मुस्कुराया, जैसे ख़ुद से वादा कर लिया हो,
और फिर हम दोनों आसमान की ओर
देखने लगे।-