अपने लहू से
सींचकर कली को,
फूल बनते ही
डाली से जुदा
कर देता है...
बाप से बड़ा कोई
दानी नहीं साहब,
कलेजे के टुकड़े को
अपने ही हाथों से
विदा कर देता है।-
💐🌹🎂🎂🎂🌹💐
ज़िंदा अपने ज़मीर को अक्सर वही बचा पाया है
नेकी पे चलके जो ... read more
मत पूछ मेरे चेहरे पर क्यूँ ये मायूसी है,
मेरे कबीले का नाम ही साहब उदासी है।
ऐसे में भी अगर मैं यहाँ अब मुस्कुराऊँगी,
तो अपने ही कबीले की मुजरिम कहलाऊँगी।
वो दौर गया,जब तेरी गलियों में आना जाना था,
ढलती साँझ का तेरी बाहों में ठिकाना था।
तुझसे रिहा होकर अब तक, उड़ नही पाई हूँ मैं,
तेरी गिरफ्त में ही अपनी उड़ान भूल आई हूँ मैं।-
तेरी इन बाहों के घेरे,
चाहूंँ मैं सांँझ सवेरे!
तेरे मिलन की खुशी,
छलकी है आंँखो से मेरे!
ये गुलशन गुलाबी हुआ,
खिले हैं भंँवरों के चेहरे!
महकी फिजाएं भी हैं,
मेहरबां आने से तेरे!
मेरी रातें भी रौशन हुई,
छट गए सारे अंधेरे!
पलकों में छुपा लूंँ तुझे,
बिठा दूंँ ख़्वाबों के पहरे!
मेरी सांँसों की डोरी सनम
बंधी है सांँसों से तेरे!
होंगे ना हम तुम जुदा,
लेंगे सातों वचन और फेरे!-
ये मेरी नींद के हाथ कभी पीले क्यों नहीं होते,
क्यों पलकों की दहलीज से लौट जाती हैं...
मेरे ख़्वाबों की बारातें...😒-
तेरी सांसों में उतर के
तेरी धड़कनों को
रवाँ कर दूँगी,
तू मुझे होठों से तो लगा,
मैं तेरी ज़िंदगी
तबाह कर दूँगी।-
चूसती है लहू ज़िगर का, मेरी आँखें भी निचोड़ कर पीती है...
इस कलम से फिर भी मेरे लफ़्ज़ों की तिश्नगी क्यों नहीं बुझती है।-