Prerna Chaudhary   (© प्रेरणा)
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Joined 9 October 2018


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Joined 9 October 2018
30 APR AT 18:11

ज़िस्म बेलिबास होना
उतनी बड़ी बात नहीं थी,
जो मेरे मन में कसक रहा था,
वो था तुम्हारे सामने
मेरी ज़िन्दगी का बेलिबास होना,
अब तक किये मेरे अच्छे बुरे
और सही ग़लत काम
और उनसे मिले तरह तरह के अनुभवों में
जो मुझे सबसे ज़्यादा डरावना लगा,
वो था ये एहसास होना
कि कोई मेरे बारे में बहुत ज़्यादा जानता है
और सबसे ज़्यादा दुखदायी था
ये जानना कि
जो मेरे बारे में सब कुछ जानता है,
वही शख़्स मुझे ज़रा भी नहीं जानता।

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29 APR AT 19:34

"सारी तकलीफ़ उम्मीद के उस
आख़िरी रेशे की बुनी है,
जो सब टूटकर भी
टूटता ही नहीं..
जिज्ञासा के कंधे टूट गये,
हौसले की कमर...
आत्मविश्वास जैसे दलदल में
छटपटा रहा है,

(अनुशीर्षक में)

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28 APR AT 10:07

नदी होने के लिए बस
बहना होता है,
स्वछंद और स्वतंत्र होकर,
कभी शान्त होकर बिना कोई शोर किये
तो कभी कल कल करके
अपने होने का जश्न मनाते हुए,

(अनुशीर्षक में)

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27 APR AT 21:03

कभी कभी
अपनी ज़िन्दगी को
पलट कर देखती हूँ तो
मुझे मैं कहीं भी
नज़र नहीं आती..
मग़र क्या फ़र्क पड़ता है
ज़िन्दगी तो मेरी ही है,
जो भी नज़र आता है
सब मेरा है,
और यही बुरा है,
ये 'मैं' नहीं तो 'मेरा' रह ही गया,
बेहतर होता अगर
ये भी न होता तो,
'मैं' की तलाश में तो
'मेरा' ही मिलेगा,
पर शायद
'मैं' उस दिन मिलेगा
जिस दिन तलाश नहीं रहेगी।

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26 APR AT 19:52

"क्या तुम मुझसे वैसा ही प्यार करते हो जैसा 'एशियाई ड्रामाज़' में दिखाते हैं?", लड़की ने चमकती हुई आँखें लिए पूछा ।

"नहीं", लड़के ने बिना एक पल सोचे कह दिया।

ये सुनकर उसकी आँखों की चमक फीकी पड़ गई..... एक पल को वो स्तब्ध रह गई और आगे क्या बोले सोचने लगी।

इससे पहले की वो कुछ बोलती, लड़के ने कहा, "जैसा प्यार वो ड्रामाज़ में कभी दिखा नहीं सकते, वैसा प्यार करता हूँ..."

इतना सुनते ही जैसे सारा काल्पनिक रोमांस ब्लर्र हो गया और फोकस में लड़की की आँखों में दिखता आकाश असंख्य तारों से भर गया।

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24 APR AT 11:55

उसके हाथों में सिहरन
आँखों में साहस था
मेरे सामने मेरे जीवन का
सबसे बड़ा और ख़ूबसूरत
विरोधाभास घटित हो रहा था,

मेरी ओर बढ़ाया गया गुलाब
उम्मीद की कलम पर टँका
अंतिम प्रश्न चिन्ह था,
जिसका उस हाथ से इस हाथ में आना
उसे विस्मयादिबोधक बना देता,

उसने मुझसे एक ही प्रश्न किया,
"इस गुलाब में तुम्हें क्या दिखता है,
मुहब्बत का मक़बरा या
प्रेमकथा की प्रस्तावना?"

"मुरझाने से मुक्त हो चुकी
महकती हुई ज़िन्दगी",
मैने उसके हाथ से गुलाब लेते हुए कहा।

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24 APR AT 0:40

जो पक्षियों की उड़ान देख
उत्साह से भर जाता हो
मग़र पंखों की इच्छा का बोझ न सहता हो,
हवा के स्पर्श से जिसमें
साँसों का भार विचार बन उमड़ता हो,
जो अथाह पानी देख
जीवन की थाह तक यात्रा करता हो,
जो सागर को सतही
और बूँदों को गहरा समझता हो,
जो शास्वत होकर भी
'सदैव' से परहेज़ रखता हो,

ऐसे मन का मालिक होना
मुश्क़िल होता है
और दुर्लभ भी,
मानो असीमता ने
सीमाओं को अपना
अंगरक्षक बना लिया हो।

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18 APR AT 14:15

वक़्त बदलने से कब शख़्सियत बदलती है
बहुत हुआ भी तो बस हैसियत बदलती है

पूछने से तेरे और क्या ही होता होगा
कुछ भी तो नहीं बस कैफ़ियत बदलती है

मान लिया के बहुत कुछ बदलता होगा पर
झूठ बदलने से कब असलियत बदलती है

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18 APR AT 0:04

समय की पटरी पर ज़िन्दगी की गाड़ी चल पड़ी है, खिड़कियों के शीशे साफ़ कर लें और यात्रा में अदलते बदलते मौसम का मज़ा लें। कृप्या अधिक समझदारी से दूरी बनायें रखें अन्यथा शीशों पर भाप जमने व कुछ भी स्पष्ट न दिखाई देने जैसी समस्याओं का सामना कर पड़ सकता है।

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7 MAR AT 20:39

तुम सामने थे और लब जमे थे
अल्फ़ाज़ मेरी पलकों पर थमे थे,

दो चार बूंदें जो गालों से सरकी
लाखों बातें थी मेरे मन की,

जो रह गया था आँखों में पानी
कुछ थी कविता और एक कहानी,

दबाकर के पलकें जो आँसू निकले
थे गहरे मरासिम हुए जो छिछले,

ये अब गेरुआ जो रंग हो गया है
बुरा मेरी आँखों के संग हो गया है,

सपने हैं तेरे, तेरी ही चुभन है
जो पिघला है इनसे बस मेरा मन है।

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