ये होता ही है,
पर क्यूँ होता है?
सामान्यतः
चलते हुए जब ठोकर लगने पर
हम गिरते हैं
(अनुशीर्षक में)-
"ना ग़ालिब सी उर्दू की नज़ाकत है कलम में,
ना हमारी बोली में कबीर सा खडापन आता ह... read more
देवों के देव महादेव, लाइफ़ ओके के इस सीरियल में,
एक दृश्य में पार्वती बिच्छू को पानी से बाहर निकालती हैं,
तभी उनकी माँ आकर फिक्रमंद होकर उन्हें टोकती हैं
और कहती हैं कि वो डंक मार देगा उसे मत बाहर निकालो,
तब पार्वती उत्तर देती हैं कि
"जब एक बिच्छू डंक मारने की अपनी प्रवृत्ति नहीं त्याग सकता,
तो हम एक मनुष्य होकर अपनी मनुष्यता कैसे त्याग सकते हैं,
उसकी प्रवृत्ति है मारना और हमारी जीवों की रक्षा करना"
और इतना कहकर वो उसे पानी से बाहर निकालकर
उसके जीवन की रक्षा करती हैं।"-
लोग पढ़े लिखे हो रहे हैं
पानी प्रदूषित हो गया है उन्हें पता है,
घर में एक नहीं कई कई आर ओ लगे हैं,
जितना पानी पीना है
उतना साफ़ कर लेते हैं बाक़ी
"नदी तो सबके लिए है ना
तो हम ही क्यूँ साफ़ रखें?"
'मतलब फितरत ही ऐसी है हमारी
जितना पीना है उसे साफ़ कर लिया
और अब जो उससे गंदगी निकली
वो बाक़ी के बचे में मिला दो'
ऐसे ही सबकुछ चलता है।-
वो ताजमहल नहीं है,
पॉल्यूशन के डर से वो कभी
चेहरा नहीं ढ़कती,
और ना ही पॉल्यूशन का
उसपर कुछ असर है,
उसकी चमक उसके चेहरे पर
बरक़रार रहती है,
और जब ज़िन्दगी को भी
जीना होता है
तो उससे अप्वांइटमेंट लेती है,
(अनुशीर्षक में)-
दूसरों की राय पर निर्भरता
समानुपाती होती है,
अपनी क़ाबिलियत पर शंका के,
आत्मविश्वास वो बांस है
जिससे रस्सी पर चलता नट
अपना संतुलन बनाये रखता है,
संतुलन और चरित्र
केवल दो ही हैं इस संसार में
जिन्हें सही बनाये रखने की आवश्यकता है,
स्वार्थ भिन्न प्रकार के हो सकते हैं
स्वार्थी व्यक्ति सदैव
समाज का शत्रु नहीं होता,
एक समय पर एक ही काम करना
एक अच्छी आदत है, किन्तु
सामंजस्य कहीं भी स्थापित हो सकता है।-
ग़ज़ल हैं नज़्म हैं अशआर हैं आंखें तुम्हारी,
हमें करती बड़ा आज़ार हैं आंखें तुम्हारी,
मुहब्बत में मकां जैसा ठिकाना हैं हमारा,
कभी ईश्वर कभी संसार हैं आंखें तुम्हारी,
लिये ख़ामोश से तूफ़ान ठहरी झील सी हैं,
मुसलसल इश्क़ का इज़हार हैं आंखें तुम्हारी,
छुपाती हैं न जाने जज़्ब क्या क्या हमेशा,
मुहब्बत में हुई अख़बार हैं आंखें तुम्हारी,
उतर जायें अग़र दिल में करें टुकड़े हज़ारों,
किसी सुल्तान की तलवार हैं आंखें तुम्हारी।-
ख़्वाबों के मलबे पर घर बना है सिसकेगा,
डर है इक रोज़ अपनी जगह से खिसकेगा।-
वो तेज
हवाएँ होती हैं ना,
जो खिड़कियों के कांच
चटका देती हैं अक्सर,
तुम वही तेज हवा हो,
और मैं वही कांच हूँ,
जो टूटने के बाद भी
संजो लेता है
उस हवा को ख़ुद में,
और टुकड़े टुकड़े होने तक
उसे तोड़ने वाली वो हवा
उसमें यूँही चमकती
रहती है,
जैसे तुम मुझमें।-
हर सफ़हे पर हो ठहरे तुम सियाही बनकर,
ज़ुर्म-ए-इश्क़ की मेरे तुम गवाही बनकर,
आज भी पर राज है तुम्हारा मेरे जहां में
बेवफ़ा होकर भी रहे तुम इलाही बनकर।-