कभी कभी हम
अपने मन में चल रहे
शोरगुल के इतने आदि हो जाते हैं
कि कुछ समय बाद
हम ये अंतर नही देख पाते कि
वो शोर है या शान्ति,
(अनुशीर्षक में)-
ना हमारी बोली में क़बीर सा खड़ापन आता है,
ना अंग्... read more
I'm someone who's fond of reading self-help books. I've read some as time allowed, and honestly, I don't find them particularly special. I'm puzzled by the commotion over them on social media and why successful people often admire and suggest them.
After pondering this, I've come to understand that there are generally two kinds of people. First, there are those who are action-oriented and prefer straightforward advice that helps them take concrete steps. These individuals benefit from self-help books, which simplify complex ideas and motivate them to act. They're the ones who make these books extremely famous.
On the other hand, there are people like me who know what to do, when to do it, and why, but still struggle to take action. We read self-help books hoping to find something that will motivate us, but it's often just another way of escaping the task at hand.-
तुम्हारे बाद सबसे मुश्क़िल
अपने आप को ख़ुश देखना रहा
(अनुशीर्षक में)-
जीवन में सबसे बड़ा छल
अपने साथ हम स्वयं ही करते हैं,
अपने तथ्य, सत्य,
तर्क-वितर्क आदि को
दिल और दिमाग में बाँटकर,
दरअसल दिल और दिमाग की
लड़ाई जैसा कुछ नहीं होता,
ये हम ही हमसे लड़ते हैं,
कभी कभी हम
एक ही कहानी को
कहानी के दो अलग अलग
क़िरदारों से सुन लेते हैं,
और दोनों ही
अपनी अपनी कहानी को
हमारी कहानी बनाने में
सफ़ल हो जाते हैं,
बस वहीं से शुरू होता है,
द्वंद्व, यानी वो युद्ध
जो दिल और दिमाग के बीच
लड़ा जाता है।-
जब मैंने उससे कहा था,
"मैं तुमसे शादी नहीं कर पाऊँगी।"
तब मैं सबसे ज़्यादा ईमानदार थी,
इससे पहले मुझमें इतनी हिम्मत
कभी नहीं थी,
और जब मैंने उससे कहा था,
"तुम किसी और से शादी कर लो।"
तो उससे बड़ा झूठा और
बेमन से बोला गया वाक्य
मैंने जीवन में कभी नहीं बोला था,
और मुझे ये दोनों वाक्य एकसाथ बोलने पड़े,
यूँ तो ख़ुद को हिपोक्राइट स्वीकारने से
मुझे कभी परहेज़ नहीं रहा,
लेकिन उस दिन ये हिपॉक्रसी
अपने चरम पर थी।-
हर गुज़रती तारीख़ देखकर लगता है,
"इस दिन कुछ तो ख़ास हुआ था,
जो मैं भूल रही हूँ, भूल चुकी हूँ,
शायद कभी ज़िद थी
सबकुछ अंत तक याद रखने की,
शायद मुझे ख़ुद को
तुमसे बेहतर साबित करना था,
शायद तुमसे होने वाली
अगली बहस में तुमसे जीतना था,
या मैं चाहती थी कि तुम हार जाओ
मेरे प्यार के सामने
जब तुमको ये एहसास हो कि
मुझे वो हर एक तारीख़ याद है
जब तुमसे जुड़ी हर बात पहली बार हुई,
कितने बेबस होते हैं न हम
प्यार महसूस करने की आदत के सामने,
कि तुमसे बात करने के लिए
तुमसे आये दिन झगड़ना
मेरी ज़रूरत सा बन गया था।-
कुछ लोग मिलते हैं ऐसे
जिन्हें ख़ुद से दूर भी कर दिया जाये
तो भी वो हमारे दुखों को
बाँटते रहते हैं,
सोखते रहते हैं हमारे जीवन का खारापन
अपने आँसुओं को बहाकर,
(अनुशीर्षक में)— % & — % &-
सब कुछ तारीफ़ के लिए नहीं लिखा जाता,
कुछ लेख तसल्ली के लिए भी लिखे जाते हैं।-
हर गाँव को एक तालाब
एक पीपल
एक झूला
एक कुआँ मिले
ज़रूरी तो नहीं,
हर शहर को ऊंची इमारतें
खचाखच सड़कें
सबको रोज़गार ओ
रोशनी बेइंतिहा मिले
ज़रूरी तो नहीं,
हर जन्म में तेरा साथ
तेरी मुहब्बत
और बेहद इंतज़ार के बाद
तू मुझसे आ मिले
ज़रूरी तो नहीं।-