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😊😊ज़रा मुस्कुराइए😊😊
रसना रस से भर रही ,छप्पन हैं पकवान
और रायता थाल की ,बढ़ा रहा है शान
बढ़ा रहा है शान ,चखा है पहले इसको
लेवें बारम्बार ,गिने न, होश है किसको
पेटभरा भरपूर,मगर मन पर कुछ वश ना
दीप सँभालो हाथ,कटोरी चाटे रसना
(रसना-जीभ,tongue)
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रसना व वासन के ऊपर उपासना द्वारा
विजय प्राप्त करना ही सफलता का मूल मंत्र है।
जो बात का
सच्चा व लङ्गोटी का पक्का (चरित्रवान) होता है।
उसको संसार की
कोई भी शक्ति पराजित नहीं कर सकती है।-
जिनकी रसना रस नाम का ले ,
नित नेह सुधा बरसाती रही ।
अंखिया सांवली सूरत में पगीं ,
और मूरत उसकी भाती रही।।
पद-पंकज नित चढ़ा रहा मानस,
और न बात सुहाती रही ।
लिख लिख भावों को कागद पर,
वह आती रही और जाती रही ।।
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)-
शब्द न मीठे शहद सरीखे।
शब्द न मिर्ची-सम सब तीखे।
हो रसना जो मधु-सम मीठी।
बात कहे वो हर-दम मीठी।
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लड़ाई कोई भी क्यों ना हो तभी जीती जा सकती है
जब ज्ञानेन्द्रियाँ,कर्मेन्द्रिय,विषय,तत्व इन सबमें बहुत अच्छा तालमेल हो
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (कान, नेत्र, रसना, नासिक और त्वचा)
पांच कर्मेन्द्रिय (वाक्, हाथ, पैर, गुदा और लिंग)
पाँच विषय – ( शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श)
पाँच तत्व - (मन, बुद्धि, अहंकार, प्रकृति और पुरुष)
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चला फराळ करायला
साबुदाणा खिचडी
भगरची धिरडी
साबुदाणा वडे, खोबरं चटणी
साबुदाणा पापड
फराळी चिवडा
वेफर्स डीशभरून थोडे
भगर पुलाव, शेंगदाणा आमटी
आप्पे, भगरचे डोसे
बटाटा भाजी
दही नको आहे पावसाळा
चहा...घ्या ...घ्या घ्या काय हवं ते कोणाला
त्याआधी पांडुरंगाला आठवा
त्याच्या नावाने हा रसनेचा सोहळा
।। पुंडलीक वरदा हरी विट्ठल ।।-
रसना में रस ना रहे, रसना विष बरसाए।
रसना रसना है नही,पी स्वाद न आये।
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'जल्लाद' कहे कोई पृथा कुमारी,
अति उन्मत भई चंचल नारी।।
'भाग्य' बसे सोई सुन्दर रसना,
बिनु रसना तव फूटे कपारी।।-