Sudha Saxena   (प़ाक रूह)
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जीवन चलने का नाम
Own Hashtag #Sudhasaxenaquotes
Joined 27 February 2019


जीवन चलने का नाम
Own Hashtag #Sudhasaxenaquotes
Joined 27 February 2019
29 JUN AT 11:03

दिल पर आज जो ,जख्मों के निशान हैं,
रिसता है मीठा मीठा, मुश्किल में जान है।।

दिल ने कहा कि अब,कहाँ भूलना आसान है,
उसके गम को सजाना ही,बस अबतो काम है ।।

चलते रहो यादों के संग, जीवन चलने का नाम है,
यादों को हौसला बनाओ, सफर ही मुकाम है ।।

"प़ाक रूह " कभी थकती नहीं,मन बेलगाम है,
चाबुक लगाओ मन पर, "सुधा" का पैगाम है ।।
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)

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29 JUN AT 7:49

मन को जरा संभालो यारों!
बस अपना मन न जानो यारों।
अन्य सदस्य जो घर में रहते ,
उनकी भी तो समझो यारों।।

घर की नारी काम काज में,
विद्युत व्यवस्था भी तो चाहती,
पर्याप्त रोशनी नहीं कार्य में,
एक बल्ब वह जलाना चाहती।।
उसको अच्छे काम करने को ,
बल्ब वह जलने दो यारों ।।

मन को जरा संभालो यारों,
कमरे ,प्रसाधन पर नजर डालो प्यारे,
बंद अगर करना ही है तो ,
ए सी पंखा कूलर बंद करो न्यारे।।

कमरे से जब बाहर निकलो ,
विद्युत उपकरण बंद करो तुम,
अपनी आदत को सुधार लो ,
बल्ब एक नहीं बंद करो तुम।।
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)

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29 JUN AT 7:29

" तुम सूरज मैं साँझ"
तुम सूरज मैं साँझ तुम्हारी,जीवन तुमसे आबाद ,
किरण तुम्हारी पड़ती जबभी,साँझ हुई आह्लाद। ।2

किरण करों से दामिनी बनती,हुलसाती मुराद,
सूरज से चमके जग सारा,मन होता मर्याद ।।4

सृष्टि की गतिविधियों पर नहीं,अधिकारों की मियाद,
पर सूरज नित उगता-ढ़लता ,यही रहस्य निनाद ।।6

सुख-दुख साँझ-सवेरा होता ,प्रभु का है ये प्रसाद ,
साँझ तुम्हारा मिलन कराये, कभी दिन कभी रात ।।8

सूरज साँझ कभी नहीं मिलते ,आते बारम्बार,
आते जाते एक ही क्रम में ,जग में निर्विवाद। ।10

सृष्टि के इसी रहस्य को समझो,तुम सूरज मैं साँझ,
जग पुष्पित होता है तब ही ,सूरज -साँझ हो साथ ।।12

सूरज !तुम गर हरदम चमको ,करो अग्नि का घात ,
शेष नहीं कुछ भी तब होगा,सृष्टि का होगा संघात।।14

मैं साँझ शीतलता देती ,ताप को करती शांत ,
तभी तो जग संरक्षित है,हम-तुम हैं दोनों साथ।।16
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)






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27 JUN AT 8:15

जिंदगी! उम्र के इस मोड़ पर, एक सौदा कर,
मेरे ख्वाब लेकर तू ,उसकी ख्वाहिश अदा कर।।
दे दे हौसला उसको ,उम्मीदों से है जो कायम,
दर्द है सुकून मेरा ,न तू उसकी दवा कर ।।
"प़ाक " इश्क रूह तक ,उतर गया है अब,
हटाने को कुछ नहीं बाकी, चाहे जितनी हवा कर ।।
खुश रहे वो जहाँ रहे,बस यही दुआ कर ,
कर रहम अब खुदा! "रूह" से रूह हमनवां कर ।।
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)

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25 JUN AT 21:54

हमेशा इक दूसरे के हक में दुआ करेंगे, ये तय हुआ था
मिले कि बिछडे मगर तुम्ही से वफा करेंगे, ये तय हुआ था

कहीं रहो तुम कहीं रहें हम, मगर मुहब्बत रहेगी कायम
जो ये खता है तो उम्र भर ये खता करेंगे, ये तय हुआ था

उदासिया हर घडी हो लेकिन, हयात कांटो भरी हो लेकिन
खुतूत फूलों की पत्तियों पर लिखा करेंगे, ये तय हुआ था

जहाँ मुकद्दर मिलायेगा अब वहाँ मिलेंगे, ये शर्त कैसी
जहाँ मिले थे वही हमेशा मिला करेंगे, ये तय हुआ था

लिपट के रो लेंगे जब मिलेंगे, गम अपना-अपना बयाँ करेंगे
मगर जमाने से मुस्कुरा कर मिला करेंगे, ये तय हुआ था

किसी के आँचल में खो गये, तुम बताओ क्यों दूर हो गये तुम
कि जान देकर भी हक वफा का अदा करेंगे, ये तय हुआ था__
शबीना
मेरी पसंदीदा गजल

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25 JUN AT 8:27


मन की बानगी ही ,मन के पास उपाय है,आवाज की गहराई,जतलाती दिवानगी है।।
रिश्तों के मायाजाल से ,कोई न बच पाया ,हर हाल में निभाता ,मन की मेहरबानगी है।।
कभी खट्टे कभी मीठे ,ठहरते कभी दौड़ते ,दिल के रिश्तों की ,खासियत बेगानगी है।
बेनाम और महीन,समझो अनमोल इसको ,इनसे ही तो है यहाँ ,जीवन की रवानगी है ।।
मीलों की दूरियाँ ,न कम कर पातीं प्रेम को,इन दूरियों पर भी ,दिख जाती परवानगी है ।।

पानी से पारदर्शी ,ये दिल के अमूल्य रिश्ते ,जान से प्यारे हैं मुझे ,मेरे अनमोल रिश्ते ।
दिल की गहराई से ,आती है ये आवाज ,स्नेह-धागे हैं कच्चे ,पर मजबूत ये रिश्ते। ।
आओ मजबूती से थामें ,दिलों के ये रिश्ते ,मन के मनके हैं अनमोल ,नायाब हैं रिश्ते।
सम्भाल के रखना ,सदा खूबसूरत मनके,कहीं बिखर न जाये , मनके सम ये रिश्ते।।
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)

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24 JUN AT 15:10

जिस पिंजर में विरह नहीं,
सुख का उसको आभास नहीं।
कायिक जीवन परिसीमित है,
अन्तर्मन की परिधि नहीं। ।

सुख सीमित है मिलन क्षणों में,
पर वियोग क्षण सीमान्त नहीं।
जीवन में व्रण बहुत मिले हैं,
सुख दुःख बिन पिंजर तत्व नहीं।।
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)

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23 JUN AT 21:27

मनमानी क्रीड़ा करें ,
प्रीत की मूरत अदीन,
मोद मनायें मग्न हो,
त्रासरहित स्वाधीन ।।
सुधा सक्सेना(पाक रूह)

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23 JUN AT 21:25


पुष्प मंजरी के बिना भी महक जाना जानता है...
इत्र से भी ज़्यादा सुगंधित है ये..

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23 JUN AT 17:59

स्पंदन करती है मेरी धड़कने …
मेरी स्मृतियों में ,अंतर्मन में , हृदय में …
प्रेम बन रक्तवाहिनी में स्त्रावित होते रहते हो …
गुंजन करते है वह शब्द मेरे कर्णों में ..
रोम -रोम रोमांचित हो उठता है …
कोई छवि को भर इन दो नैनन में …
चक्षुओं के कपाट बंद कर मै तुम्हे …
बसाएँ रखती हूँ अपने निश्चल मन में ….
और सजाएं रखती हूँ , एक मीठी मुस्कान..
इन कोमल गुलाब की पंखुड़ी समान अधरों में..

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