"चलो ,फिर चलें स्कूल"
बीत गयी गर्मी की छुट्टी,नया क्लास, बस्ता और पट्टी।
सखी-मिलन की रटन उठी,मन पीता खुशियों की घुट्टी ।।
मिलते थे,अपनी सखियों से,मस्ती गर्मी की,बतलाते थे।।
क्या क्या ननिहाल में किया,बढ़ा चढ़ा कर ,जतलाते थे ।।
जब बजती ,स्कूल की घंटी ,प्रार्थनास्थल पर जाते थे ।
रघुपति राघव राजाराम और राष्ट्र गान दोहराते थे ।।
आम्र बगीचा था स्कूल में,लंगूर समूह में वहाँ पर रहते,
मानव सा व्यवहार वे करते,नलका खोल पानी वह पीते।।
मध्याह्न में टिफिन छीनकर ,पेड़ों पर वह चढ़ जाते ,
खाते-पीते टिफिन फेंक कर ,बालाओं को मुख चिढ़ाते।।
गुस्सा बहुत आता था क्योंकि ,भूखे हम सब रह जाते ,
पर उनके बंदर होने से,हँस हँस लोटपोट हो जाते।।
दैनिक जीवन की इबारती,गणितीय जादुई खेल खेलते ,
भाषा विज्ञान और संस्कृत ,शिक्षा तरह तरह से लेते।।
आदरणीया सभी शिक्षिका ,उनकी मैं शिष्या पसंदीदा,
अमूल्य सीख से ही तो ,व्यक्तित्व अपना बनाया संजीदा।
विद्यालय के अद्भुत पल वह,बाल्यकाल के स्वर्ग रहे,
आज भी मेरे व्यक्तित्व में,सितारे बन चमक रहे।।
सब पढ़ें और सब बढ़ें, शिक्षा अभियान का नारा है,
विद्यालय का हर अनुभव ,हर बालक के लिये न्यारा है।।
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)
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