Sudha Saxena   (प़ाक रूह)
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जीवन चलने का नाम
Own Hashtag #Sudhasaxenaquotes
Joined 27 February 2019


जीवन चलने का नाम
Own Hashtag #Sudhasaxenaquotes
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3 HOURS AGO


प्रेम ज्योति की सबल किरण है ,
जीवन पथ आलोकित करती ।
सहज स्वफूर्ति निर्विकार हो ,
मन से मन के तार जोड़ती ।।

हृदयों के गहरे में जाकर ,
लाभ-हानि बिन व्यापारी है,
निःस्वार्थ आत्मा सदृश ,
निर्झर निर्मल व्यापारी है।।

सात्विक विवेकपूर्ण भाव से,
देते रहो सदा तुम प्रेम ,
केवल जिद न समझो उसको,
साधन है ,सुवासित है प्रेम!!!
सुधा सक्सेना(पाक रूह)

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16 HOURS AGO

"रूप की चाँदनी"
चाँदनी का फूल विकसित हुआ,मौन दो भंवरे वहाँ थे डोलते,
मोतियों की पंक्ति से दीपित हुए,बिंब मूँगे के वहाँ थे बोलते।।
केसरी रंग भाल पर था खेलता,लाल टीका बीच में देदीप्य था,
थी कपोलों पर छिटकती अरुणिमा,किसी उगते सूर्य का सामीप्य था।।
थे सुनहरे फूल पुष्पों से बँधे,ज्यों अमावस में दीपावली हो सजी,
कर्ण में थे फुलझड़ी के वृत्त दो,कुन्तलों से नागिनें थीं झूलतीं।।
देख कर जादू भरे इस दृश्य को,दो घड़ी के वास्ते मैं रुक गया,
अहम मेरा उड़ रहा था गरुड़ सा, जादू को देखकर झुक गया।।
बच के मैं देखूँ उन्हें या लूँ पकड़,मन्त्रणा जो दे,यहाँ पर कौन है,
प्यार का अतिरेक था जागा हुआ, तर्क का प्रहरी यहाँ कौन है।।
इस वयस में भी किसी के रूप पर,हुआ मोहित ये अजब सी बात है,
छवि किसी की डस कर गई, तड़पा बहुत कैसा आघात है।।
जैन कवि जिनसेन था मोहित हुआ, महापावन देवि'मरु' के रूप पर,
रहे कालिदास मर्यादित नहीं,जगत जननी उमा के रूप पर।।
अकिंचन कवि भी मारा गया,चाँदनी सम रूप की असिधार पर,
कौन है जो घाव को सहला सके,आँचल को झले कुछ प्यार से!!!!
सुधा सक्सेना(पाक रूह)

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22 HOURS AGO

"चलो ,फिर चलें स्कूल"
बीत गयी गर्मी की छुट्टी,नया क्लास, बस्ता और पट्टी।
सखी-मिलन की रटन उठी,मन पीता खुशियों की घुट्टी ।।

मिलते थे,अपनी सखियों से,मस्ती गर्मी की,बतलाते थे।।
क्या क्या ननिहाल में किया,बढ़ा चढ़ा कर ,जतलाते थे ।।

जब बजती ,स्कूल की घंटी ,प्रार्थनास्थल पर जाते थे ।
रघुपति राघव राजाराम और राष्ट्र गान दोहराते थे ।।

आम्र बगीचा था स्कूल में,लंगूर समूह में वहाँ पर रहते,
मानव सा व्यवहार वे करते,नलका खोल पानी वह पीते।।

मध्याह्न में टिफिन छीनकर ,पेड़ों पर वह चढ़ जाते ,
खाते-पीते टिफिन फेंक कर ,बालाओं को मुख चिढ़ाते।।

गुस्सा बहुत आता था क्योंकि ,भूखे हम सब रह जाते ,
पर उनके बंदर होने से,हँस हँस लोटपोट हो जाते।।

दैनिक जीवन की इबारती,गणितीय जादुई खेल खेलते ,
भाषा विज्ञान और संस्कृत ,शिक्षा तरह तरह से लेते।।

आदरणीया सभी शिक्षिका ,उनकी मैं शिष्या पसंदीदा,
अमूल्य सीख से ही तो ,व्यक्तित्व अपना बनाया संजीदा।

विद्यालय के अद्भुत पल वह,बाल्यकाल के स्वर्ग रहे,
आज भी मेरे व्यक्तित्व में,सितारे बन चमक रहे।।

सब पढ़ें और सब बढ़ें, शिक्षा अभियान का नारा है,
विद्यालय का हर अनुभव ,हर बालक के लिये न्यारा है।।
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)

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YESTERDAY AT 11:20

"जिंदगी इक घुमावदार मार्ग "
घुमावदार पथ पर ,संघर्ष ही बना तराना ,
चलना सीख जीवन की,बस चलते जाना।।

नजर टिकी लक्ष्य पर,मोड़ आये मुड़ते जाना,
न दिखे किरन न सही ,बस चल चलते जाना।।

जिस जिस ने साथ चला ,बख्शी नियामतें,
जिंदगी का कर्ज उतार ,बस चलते जाना ।।

चलना जिसकी जिद में ,रहा हो शामिल सदा,
सुगम या दुर्गम पथ रहा पर,बस चलते जाना ।।

मुड़ मुड़ कर रास्ते ,मंजिल तक पहुँचते हैं ,
सीधा-सपाट नहीं जीवन ,बस चलते जाना।।

संग चल सको तो चलो ,स्वागतम जाने-जाना!
मार्ग दुस्तर ,हाथ में हो हाथ,बस चलते जाना ।।
सुधा सक्सेना(पाक रूह)

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YESTERDAY AT 8:27

शायद कोई कारण था,
जो जन्म लिया इस जग में,
निज गन्तव्य भुलाया मैंने,
तेरे बिन इस जग में।।

स्वार्थ जगत का पूरा करने,
बढ़ता गया दाघ हृदय में ,
तेरा कान्हा संग मिले तो ,
तन मन मिल जाता चंदन में।।

जग लोलुपता से बचने को ,
छाँव ग्रहण की स्वर्ण कलश में,
शायद कोई कारण था जो,
आया गया मैं इस जग में।।
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)

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26 APR AT 8:31

परिंदों की तरह रहना ,
हवाओं के संग बहना,
देर से विवाह करना....पर...
😩😩
देर से विवाह के कारण ,
एक रस्म बढ़ गई...
एक अधेड़ के विवाह का ...
कार्ड पढ़कर आँखे भर आईं,
लिखा था...
मेंहदी के साथ ही ....
डाई की रस्म भी है ,
समय प्रातः 8:50 बजे
😃😃
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)

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26 APR AT 8:17

किस शहर से आ रही , गाँव की सड़क,
किस शहर को जा रही ,गाँव की सड़क।
लगता है आगे ज्यादा न टिक पायेगी यह,
बड़े शहरों में घर बना रही ,गाँव की सड़क।।
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)

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25 APR AT 18:25

मन में रहे न कोई कचोट,
चिंतन कर यदि वोट करोगे ,
एक एक वोट की बनेगी गोट।।

कोई दे गर तुमको नोट ,
उसका वोट तुम लेना घोट।
हँस हँस होना लोटपोट ,
कदापि न देना उसको वोट।।
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)

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25 APR AT 17:06

साधना आराधना की विधा से ,अवगत नहीं मैं,
भाव सुर गीत के शिल्प का, अधिपति नहीं मैं।
मैं तुम्हारा बन पुजारी, कौन सा नैवेद्य लाऊँ?
तुम्हीं बतलाओ, तुम्हारा स्वर मैं कैसे सजाऊँ?
स्वंय निज अभ्यर्थना के ,श्लोक मुझको सुना दो,
प्रिय वाद्य! तुम स्वयं से मेरा परिचय करा दो!!!
प्रिय वाद्य!
साधना में सुगति दो तुम,सुमति दो अभ्यास में,
मिल सके पहचान सुर की,तुम्हारे मधुर स्पर्श में।
ग्रहण कर मुझको अपने,स्वरों का धारक बना दो,
गात के ढ़ीले पड़े सब ,तार मेरे झनझना दो ।।
प्रिय वाद्य!स्वंय से मेरा परिचय करा दो....!
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)

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25 APR AT 11:39

क्या बात है, तुम्हारे हाथ की बनी चाय में,
रोज तुम पिलाओ चाय तो कट जाय वक्त हमारा।।
😆😆

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