YQ Sahitya   (श्रीलाल शुक्ल)
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Joined 28 June 2018


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9 MAR 2022 AT 22:51

भंग पीनेवालों में भंग पीसना एक कला है, कविता है, कार्रवाई है, करतब है, रस्म है। बस टके की पत्ती को चबाकर ऊपर से पानी पी लिया जाए तो अच्छा-खासा नशा आ जाएगा, पर यह नशेबाजी सस्ती है।

आदर्श यह है कि पत्ती के साथ बादाम, पिस्ता, गुलकन्द, दूध-मलाई आदि का प्रयोग किया जाए। भंग को इतना पीसा जाए कि लोढ़ा और सिल चिपककर एक हो जाएँ, पीने के पहले शंकर भगवान की तारीफ़ में छन्द सुनाये जाएँ और पूरी कार्रवाई को व्यक्तिगत न बनाकर उसे सामूहिक रूप दिया जाए।

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9 MAR 2022 AT 22:41

मय से मीना से ना साक़ी से ना पैमाने से
दिल बहलता है मेरा आपके आ जाने से

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9 MAR 2022 AT 19:42

वास्तव में सच्चे हिंदुस्तानी की यही परिभाषा है कि वह इंसान जो कहीं भी पान खाने का इंतज़ाम कर ले और कहीं भी पेशाब करने की जगह ढूँढ ले।

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9 MAR 2022 AT 17:27

छत पर बरामदे में एक ढेले से बँधी हुई जो गंदी सी एक पुड़िया ज़मीन पर पड़ी थी, वह बाद में प्रेमपत्र साबित हुई।

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9 MAR 2022 AT 16:46

गाँव के किनारे एक छोटा-सा तालाब था, जो बिलकुल 'अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है' था।
गन्दा, कीचड़ से भरा-पूरा, बदबूदार।
कीड़े-मकोड़े और भुनगे, मक्खियाँ और मच्छर, परिवार नियोजन की उलझनों से उन्मुख, वहाँ करोड़ों की संख्या में पनप रहे थे और हमें सबक दे रहे थे कि अगर हम उन्हीं की तरह रहना सीख लें तो देश की बढ़ती हुई आबादी हमारे लिए समस्या नहीं रह जाएगी।

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9 MAR 2022 AT 16:27

"कई बार गच्चा खाया है। बाद में इस नतीजे पर पहुँचा कि सब ऐसे ही चलता है। चलने दो। सब चिड़ीमार हैं तो तुम्हीं साले तीसमारखाँ बनकर क्या उखाड़ लोगे और अब तो यह हाल है रंगनाथ बाबू, कि तुम कुछ कहो तो हाँ भैया, बहुत ठीक! और वैद्यजी कुछ कहें तो हाँ महाराज, बहुत ठीक! और रुप्पन बाबू कुछ कहें तो हाँ महाराज, बहुत ठीक! पहलवान जो कहो, सब ठीक ही है।"

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9 MAR 2022 AT 14:24

राह चलते आदमी ने रंगनाथ को समझाया, "जमींदार
था तो जूता लगाता था : उसने समझाया कि हिन्दुस्तान साला भेड़ियाधँसान मुल्क है। बिना जूते के काम नहीं चलता। जमींदारी टूट गई है, जूता चलना बन्द हो गया है, तो देखो, सरकार को खुद जूतमपैज़ार करना पड़ता है। रोज़ कहीं-न-कहीं लाठी या गोली चलवानी पड़ती है। कोई करे भी तो क्या करे? ये लात के देवता हैं; बातों से नहीं मानते। सरकार को भी अब ज़मींदारी तोड़ने पर मालूम हो गया है कि यहाँ असली चीज़ कोई है तो जूता...

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9 MAR 2022 AT 13:37

एक पुराने श्लोक में भूगोल की एक बात समझाई गई है कि सूर्य दिशा के अधीन होकर नहीं उगता। वह जिधर ही उदित होता है, वही पूर्व दिशा हो जाती है। उसी तरह उत्तम कोटि का सरकारी आदमी कार्य के अधीन दौरा नहीं करता, वह जिधर निकल जाता है, उधर ही उसका दौरा हो जाता है।

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9 MAR 2022 AT 13:09

अगर हम खुश रहें तो गरीबी हमें दुखी नहीं कर सकती और गरीबी को मिटाने की असली योजना यही है कि हम बराबर खुश रहें।

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9 MAR 2022 AT 12:57

शिवपालगंज शहर न था, बल्कि देहात था
जहाँ, बकौल रुप्पन बाबू,
"अपने सगे बाप का भी भरोसा नहीं",
और जहाँ, बकौल सनीचर,
"कोई कटी उँगली पर भी मूतनेवाला नहीं है।"

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