Manoj Paswan   (#mp)
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कोई मेरा बूरा करें वो कर्म उसका,
मैं किसी का बूरा ना करू ये धर्म मेरा।
Joined 15 March 2019


कोई मेरा बूरा करें वो कर्म उसका,
मैं किसी का बूरा ना करू ये धर्म मेरा।
Joined 15 March 2019
4 MAR 2023 AT 9:04

अच्छे भावों से युक्त होकर
किसी के प्रति कठोर वचन बोलने
वाला व्यक्ति ही अपना होता है,
न कि वे जिनके भाव बुरे हों
और बाहर से बड़ी अच्छी बातें करते हों,
हमारी खूब प्रशंसा करते हों
और हमें प्यार से सहलाते हों।

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4 MAR 2023 AT 8:50

सु_प्रभात

सफल मनुष्य बनने से बेहतर है -
गुणी मनुष्य बनने का प्रयास।




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4 MAR 2023 AT 8:32

हमें हमेशा अपनी वर्तमान योग्यताओं
का सही आकलन करना चाहिए
और घमण्ड में आकर किसी तरह
का मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए

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21 FEB 2023 AT 22:33

प्यार शादी का सौदा नहीं है,
यह तो दूसरे के हाथों में जीवन का वह समर्पण है-
जहाॅं ग़म, शिकायत, पीड़ा व ऑंसू का जीवन भर कोई स्थान नहीं होता।

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28 DEC 2022 AT 14:01

संस्कृति विचारों
की दासता से मुक्त करती है।
प्रज्ञा पन्थों की दासता से मुक्त करती है।
कला यन्त्रों की दासता से मुक्त करती है।
सभ्यता रुढ़ियों की दासता
से मुक्त करती है।

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28 DEC 2022 AT 13:49

माता-पिता
श्राद्धा और विश्वास के मूर्त्तरुप हैं।
दूसरों के सुखों से सुखी होना प्रेम है।
दूसरों के दु:खों से दु:खी होना करुणा है।

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20 DEC 2022 AT 16:42

ज़िन्दगी एक उत्सव है तथा
परमात्मा का द्वारा दिया जीवन एक बड़ा उपकार है।
मानव-जीवन परमात्मा की एक सर्वश्रेष्ठ कृति है।
परमात्मा का दिया ये जीवन रुपी उपहार
हमें सहज स्वीकार है।

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18 DEC 2022 AT 15:30

बिना इज्ज़त का रिश्ता मतलब बिना रुह का शरीर,
जब दो लोगों में प्यार न हो एक-दूसरे के लिए इज्ज़त न हो,
हर हालात में एक-दूसरे का साथ देने का जज़्बा न हो,
तो वह रिश्ता टूट जाता है।
क्योंकि रिश्ते बहुत ही नाज़ुक होते है
एक खुबसूरत एहसास होते हैं।
रिश्ते एक हल्के से पौधे कि तरह होते हैं
जिसे संभाल कर नहीं रखा जाए,
जिसे सहेज कर न रखा जाए,
तो एक न एक दिन मुरझाकर मर ही जाएगें।
जीवन में पैसे कुछ पल की खुशी दे जरुर सकता है,
लेकिन जीवन में रिश्ता रुपी खुशी खरीद नहीं सकता।

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14 OCT 2022 AT 22:25

प्राकृतिक चिकित्सा सर्वाधिक प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है।
जीवन के प्रारम्भ एवं विकास के साथ ही प्राकृतिक चिकित्सा का उद्भव एवं विकास हुआ। इतिहासकारों के अनुसार ईसा से पाॅंच हजार वर्ष पूर्व लिखे ग्रे वैदिक वाङ्मय में प्रकृति के पंच महाभूतों की वैज्ञानिक चिकित्सकीय महता पर प्रकाश डाला गया। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में प्राकृतिक चिकित्सा से सम्बन्धित अनेक सूत्र तथा मंत्र हैं। विश्व के कोने -कोने में प्रचलित अनेक लोकोक्तियाॅं तथा कहावतें, जैसे- 'सौ दवा एक हवा', 'बिन पानी सब सून', 'जल ही जीवन है', 'धरती माॅं है', 'शरीर माटी का पुतला है', 'क्षीति जल पावक समीर', 'पंचतत्त्व से बना शरीर', 'मिट्टी पानी धूप हवा, सब रोगों की एक दवा ' आदि कहावतें प्राकृतिक चिकित्सा की प्राचीनता को दर्शाती हैं।
सत्रहवीं शताब्दी के अन्त में प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति जर्मनी से प्रारंभ होकर यूरोप होते हुए सारी दुनिया में छा गयी। जर्मनी के लुई कुने, एडल्फ जुस्ट, फादर नीप, विस्त्रेज प्रिस्निज, अमेरिका के केल्लाग, हेनरी लिण्डलहार, इंग्लैंड के हैर बेन्जामिन, स्टेनलीफ आदि चिकित्सकों ने प्राकृतिक चिकित्सा को जन -जन तक पहुॅंचाया।
भारत में प्राकृतिक चिकित्सा को बनाने में महात्मा गाॅंधी का विशेष योगदान है।

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14 OCT 2022 AT 21:46

स्वास्थ्य रहना स्वाभाविक है।
मात्र मनुष्य को छोड़कर सभी प्राणी स्वास्थ्य रहते हैं। जहाॅं जानवर मनुष्य के सम्पर्क में आये, वे भी बीमार रहने लगे। जंगली जानवरों के लिए किसने अस्पताल बनाया है,
वे हमेशा स्वस्थ रहते हैं।
वे शानदार तरीके से जीते हैं तथा मरते भी शानदार तरीके से हैं।
वे अपनी आयु का पूर्ण भोग करते हुए शरीर जीर्ण-शीर्ण एवं जर्जर होने पर त्याग देते हैं, वैसे ही जैसे वस्त्र पुरना होने पर उसे त्याग दिया जाता है।
किसी जानवर को आपने चश्मा लगाते हुए, टूथ-ब्रश करते हुए देखा है? इन जानवरों की ऑख तथा दाॅंत खराब क्यों नहीं होते? क्या मनुष्य की ऑंखें प्रकृति ने कमजोर बनायी हैं। जंगली वनस्पतियाॅं, वृक्ष, पौधे, कभी बीमार नहीं होते।
आदमी को छोड़कर प्रक‌ति की गोद में विचरण करने वाले प्राकृतिक जीवन जीने वाले कोई भी वनस्पति जीव-जन्तु तनाव में नहीं होते, बीमार नहीं होते। मनुष्य ने अपने आपको इतना निरीह एवं कमजोर बना लिया है कि वह स्वस्थ्य, सुखी एवं शांति से रहने के बदले बीमार, दु:खी, बेचैन तथा तनाव में रहता है।

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