सोच-समझ कर बना योजना,चक्रव्यूह की रचना कर।
कुचल दिया फन शेष नाग का,उसका ही बिल खुदवा कर।
इच्छा शक्ति देख मोदी की,और सैनिकों का साहस।
पल में फुस्स हुआ आतंकी,आकाओं का दुस्साहस।-
पश्चिम मध्य रेल्वे,कोटा
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16.01.2019
मेरा छंदबद्... read more
जय हिंद....!
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बड़े प्यार से धीरे-धीरे,मधुर लोरियाँ गा-गा कर।
ब्रम्होस मिसाइल ने जा ठोके,खास ठिकाने जा-जा कर।
झुका दिए कुछ ही मिनटों में ,असुर शत्रुओं के यूँ सिर।
उठा नहीं पाएँगें सिर वो,दुश्मन भविष्य में यूँ फिर।-
जितना शीतल पाप विनाशक,
आकर्षक गंगा का जल।
उतना पावन शीतल निर्मल,
होता है माँ का आँचल ।
माँ चरणों में शीश झुका कर,
आशीषें आनगिन पाकर।
असीम शांति का अनुभव होता,
ज्यों गंगा के तट जाकर।-
हिंद देश की सुहागनों की,माँग भरी जिससे जाती।
जिस सिंदूरी कुमकुम से माँ,मुख पर शुभ आभा आती।
सिंदूर गरल वो बन जाता,दुष्ट शत्रु जब वार करें।
इक चुटकी सिंदूर शत्रु को,सर्वनाश कर मार धरे।-
हिंद फौज ने कर दिया,दुश्मन का वो हाल।
खुसुर-फुसुर हैं कर रहे,पाकिस्तानी लाल।
जयहिंद का घोष हुआ,भारत में हर ओर।
देश-भक्त सब नाचते,ठुमक-ठुमक दे ताल।
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धुकुर-पुकुर होने लगी,भारी मचा धमाल।
जब नापाकी खून से,धरा हो गई लाल।
धरा हो गई लाल,लगा मुख पर यूँ ताला।
कहता है शहबाज,यहाँ सब कुछ है आला।
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सब दरवाजे बंद हुए सुन,रोना पाकिस्तान का।
होश उड़े आतंकी के सुन,गाना हिंदुस्तान का।
थके जिसे समझा-समझा कर,नाम उसी का पाक था।
मगर इरादा पाखंडी का,नेक नहीं नापाक था।
आतंकी घटनाएँ नित जो,करता रहता था बड़ी।
दाना-पानी बंद हुआ तो,निकली सारी हेकड़ी।
निर्दोषों का रक्त बहाकर,माने जो निज धाक है।
थर-थर थर-थर काँप रहा अब,दुश्मन वो नापाक है।-
आज अकेला,खुद को पाकर,क्यों बिखरा ?
याद करे क्यों,वो दिन जब तू ,था निखरा ?
रास-रसीला,जीवन जी कर ,वृद्ध हुआ।
वृद्धावस्था,के दुख से क्यों,क्रुद्ध हुआ ?
रंग अनोखे,दिखलाता है,जीवन ये।
कंटक बनकर,चुभ जाता है,जीवन ये।
माया का ये,नर्तन जिसने,जान लिया।
उसने हर दुख,पर इक चादर,तान लिया।
प्रेम प्यार की,प्रीत-रीत की,बात भुला।
मान-मनौवल,हार-जीत की,बात भुला।
अब जीवन के,नये रंग तू ,देख जरा।
जीने के कुछ,नये ढंग तू,सीख जरा।
ललित किशोर 'ललित'
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लुका-छुपी का खेल खेलता,रहा सदा तू जो अब तक।
सोच जरा आतंकी तेरा,खेल चलेगा यूँ कब तक ?
इक दिन तो भरना था तेरे,पाप-कर्म का ये मटका।
पाक नहीं तू झेल सकेगा,हिंद-देश का अब झटका।-
वार करो मत रहो निरंतर,उन्हें डराते मोदी जी।
सीमा पर नित अफवाहें बस,रहो उड़ाते मोदी जी।
नींद न आए रातों में उन,आतंकी आकाओं को।
रहो काटते धीरे-धीरे,उनकी सब शाखाओं को।
बिना युद्ध ही वे आतंकी,रहें काँपते थर-थर-थर।
सिंधु नदी में कूद पड़ें वो,शीश कलम खुद का कर-कर।
बदला अपना पूरा होगा,बिना युद्ध ही मोदी जी।
सिंधु नदी में जब उनका ही,रक्त बहेगा झर-झर-झर।
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