जिस साजन की प्रीत ने,दिल में डेरा डाला।
लिव-इन में रहते हुए,पी थी जिस सँग हाला।
उसका दिल जब भर गया,प्रीत हुई बदरंगी।
सजन खोजने चल दिया,नई प्रीत सतरंगी।-
पश्चिम मध्य रेल्वे,कोटा
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16.01.2019
मेरा छंदबद्... read more
कहीं रिश्ते नहीं आते,कहीं आ कर चले जाते।
कुँआरे हैं कई लड़के,जिन्हें रिश्ते नहीं भाते।
कहीं लड़की कुँआरी है,न चाहे जो कहीं बँधना।
न चाहे ब्याह करना वो,लगे टेढ़ा उसे अँगना।
कहीं लिव-इन लगे प्यारा,कहीं लिव-इन करे धोखा।
नहीं है प्यार रत्ती-भर, मगर लिव-इन लगे चोखा।
अजब है ये तमाशा भी,अजब ये जिस्म का सौदा।
अरे वो ज़िंदगी क्या है,जहाँ संस्कार ही रौंदा।-
किसी का प्यार पाना भी,नहीं आसान है होता।
जिसे दिल प्यार है करता,वही अंजान बन सोता।
न जाने प्रेम-परिभाषा ,न समझे नैन-भाषा वो।
नहीं मालूम ये उसको,किसी की प्रीत-आशा वो।-
न सीखा ज़िंदगी जीना,न सीखा ऐश ही करना।
बिता दी ज़िन्दगी लेकिन,न सीखा प्यार में मरना।
ग़रीबी में बिताए दिन,न सीखा धन कमाना ही।
रहे हम देखते निशि-दिन,बदलता ये ज़माना ही।-
जब जहां जिस मोड़ पर ये,
ज़िन्दगी चुभने लगे।
प्यार की पुरवाइयों की,
आस तब मन में जगे।
मुस्कुराहट जब तड़पती,
मौन अधरों के तले।
तब सुखद अनुभूतियों के,
स्वप्न नैनों में पलें।-
निभाई प्रीत है जिसने,उसी का है सफल जीवन।
न समझा प्रीत को जिसने,न जी पाया असल जीवन।
मिले जो प्यार से सबसे,लिए प्रेमाश्रु अँखियों में।
सखा बन राधिका का वो ,करे नित रास सखियों में।
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सब मित्रों को जाँचा परखा,देखे सब रिश्ते नाते।
सब के अपने-अपने दुख हैं,राग सभी अपने गाते।
कुछ को दुख है संतानों से,कुछ को बड़े-बुजुर्गों से।
कुछ को दुख देती झोंपड़िया,कुछ को दुख निज-दुर्गों से।
कोई लूट रहे अपनों को,कुछ हैं अपनों को प्यारे।
कुछ के टूट गये हैं सपने,कुछ के सपने ही न्यारे।
दिल में हैं अरमान किसी के,तो कुछ के दिल ही टूटे।
कुछ सराहते निज-किस्मत को, कुछ के भाग्य रहें फूटे।
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जितना जाना इस जीवन को,उतना इसने भरमाया।
रहा हमेशा उतना खाली,जितनी सुविधा भर लाया।
यश-वैभव-सुख के सब साधन,साथ न अंत समय जाते।
नाते-रिश्तेदार-मित्र सब,चिता जला वापस आते।-
सुख अरु दुख की परिभाषाएँ,सबकी अलग-अलग होतीं।
कुछ की छोटी-छोटी खुशियाँ, बड़ी आस में नित खोतीं।
कुछ छोटी-छोटी खुशियों से,दिल ही दिल में खुश होते।
ज़िंदादिल जन ग़म पा कर भी,बीज खुशी के नित बोते।
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सिंदूर की महिमा बड़ी। चेतावनी देता कड़ी।
यदि माँग में सिंदूर है। बढ़ता सुहागिन नूर है।
कुछ शत्रु इस सिंदूर के। कट्टर दिवाने हूर के।
अक्खड़ नृशंसी क्रूर थे। छीने कई सिंदूर थे।
सिंदूर की कर बात नर। करता कुठाराघात नर।
उस शत्रु को ललकारता। घर में पहुँच कर मारता।
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