मुझको ना दो फर्ज़ की तालीम, मैं बेजार हूँ अपनी मुफलिसी से।
जरा तफसील से बताओ कि कैसे मिटे ये मेरी दौलत की तिश्नगी।-
अज्ञात अज्ञानी
(अज्ञात अज्ञानी)
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Joined 22 April 2021
4 HOURS AGO
28 APR AT 8:13
अपने हुस्न पर इतना इतराना अच्छा नहीं,
वक्त की आँधियों में हस्तियाँ मिट जाती हैं।-
22 APR AT 6:21
मुसीबतों से कह दो कि आहिस्ता से ना आया करो,
आखिर जमाना भी देखे मेरी ज़िन्दगी का तमाशा।।-
19 APR AT 20:32
गर पलटकर जवाब देना होता, तो कब का दे चुके होते,
हमारे लफ्जों को बर्दाश्त करना तुम्हारे बस की बात नहीं।-
19 APR AT 20:23
मैं शुक्रगुजार हूँ तेरी अहसान फरामोशी का,
यहाँ हर कोई नेकियों के काबिल नहीं होता।-
16 APR AT 6:06
यहाँ कौन किसका कहना मानता है साहिब,
सब खुदा बनकर बैठे हैं अपने शबिस्तान में।-
15 APR AT 23:02
खुदगर्जियाँ भी अच्छी रहती है सांस लेने के लिए,
मगर सिर्फ सांस लेना भी जीना नहीं होता साहिब।-
15 APR AT 22:40
ये जो तू मुझे अपना दुश्मन मान बैठा है ना,
शुक्रगुजार हूँ तेरा जो इस लायक समझा है।-