अज्ञात अज्ञानी   (अज्ञात अज्ञानी)
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Joined 22 April 2021


Joined 22 April 2021

मुझको ना दो फर्ज़ की तालीम, मैं बेजार हूँ अपनी मुफलिसी से।
जरा तफसील से बताओ कि कैसे मिटे ये मेरी दौलत की तिश्नगी।

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अत्याचार की परिभाषा बताने वाले
खुद ही अत्याचार कर गए।

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अपने हुस्न पर इतना इतराना अच्छा नहीं,
वक्त की आँधियों में हस्तियाँ मिट जाती हैं।

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मुसीबतों से कह दो कि आहिस्ता से ना आया करो,
आखिर जमाना भी देखे मेरी ज़िन्दगी का तमाशा।।

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उसने मुझको लाइलाज मर्ज बताया,
मैंने खुदकुशी कर इलाज कर दिया।।

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गर पलटकर जवाब देना होता, तो कब का दे चुके होते,
हमारे लफ्जों को बर्दाश्त करना तुम्हारे बस की बात नहीं।

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मैं शुक्रगुजार हूँ तेरी अहसान फरामोशी का,
यहाँ हर कोई नेकियों के काबिल नहीं होता।

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यहाँ कौन किसका कहना मानता है साहिब,
सब खुदा बनकर बैठे हैं अपने शबिस्तान में।

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खुदगर्जियाँ भी अच्छी रहती है सांस लेने के लिए,
मगर सिर्फ सांस लेना भी जीना नहीं होता साहिब।

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ये जो तू मुझे अपना दुश्मन मान बैठा है ना,
शुक्रगुजार हूँ तेरा जो इस लायक समझा है।

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