कृपा करो माता रानी,चरणों में शीश नवाती हूँ। आज पधारो मेरे घर ,मैं मन से तुम्हें बुलाती हूँ।। सजा लिया सुंदर मन्दिर,अब घी की जोत जलाती हूँ। आओ सिंह सवारी पर,मैं भजन आप के गाती हूँ। दैत्यों का है दमन किया,देवों को दिया सहारा है। तुमने बलशाली माता, इस जग को सदा उबारा है। दयाशील माँ दुख हरनी,सुख भक्तों पर बरसाती है। दिल से उन्हें पुकारो तो,माँ दौड़ी-दौड़ी आती है।।
वर्ष नव आरंभ होगा,चैत्र का शुभ मास है। है परम पावन महीना,देश में विश्वास है।। भक्ति संयम चैत्र में हो,पर्व शुभ आते रहे। माँ भवानी को मनाते,राम-धुन गाते रहे।।
प्रतिपदा पर घट रखें हम,मात का पूजन करें। शुद्ध मन उपवास रख लें,भक्ति से यह मन भरें।। पूजते नौ देवियों को,नित्य श्रद्धा भक्ति से। दें खुशी वरदान में माँ, भक्त को निज शक्ति से।।
शुक्ल नवमी को मनाते,राम जन्मोत्सव सभी। पूजिये मन भावना से,कष्ट मिट जाएँ अभी।। पूर्णिमा हनुमान जी का,अवतरण हम मानते। देव की महिमा अनूठी,सब मनुज ही जानते।।
पूछती है आज की माँ, परवरिश कैसे करूँ। हठ बहुत बच्चे करें सब,धैर्य मैं क्योंकर धरूँ।। पालना दो-एक बच्चा ,क्यों कठिन इतना हुआ। सोच कर अचरज करें हम,है समस्या बन छुआ।।
एक तो अब साथ रहना,चाहते अक्सर नहीं। और कुछ मज़बूर यूँ हैं ,नौकरी लगती कहीं।। हैं अकेले और अनुभव,कुछ नहीं माँ बाप को। एक केवल है सहारा, नौकरों का आपको।।
आप अपने ही बड़ों की ,जब करो अवहेलना। किस तरह बच्चे समझ लें,है सरल सब झेलना।। धैर्य संयम किस तरह वो,सीख पाएँगे कहो। आप बच्चों के लिए ही,संग अपनों के रहो।।
मस्तानों की आई टोली,आ कर चिल्लाई 'है होली'। मैं भी थोड़ा चिढ़ कर बोली,समझो मत मुझको तुम भोली।। अभी-अभी फागुन है आया,क्यों तुमने यूँ शोर मचाया। करूँ परीक्षा की तैयारी,समझो तुम मेरी लाचारी।। बनूँ सफल मेरी अभिलाषा,मात-पिता भी रखते आशा। बाद परीक्षा के हमजोली,खूब करेंगे हँसी ठिठोली।। पिचकारी का खेल करेंगे,उसमें पक्का रंग भरेंगे। मारेंगे हम यूँ गुब्बारे,अच्छे अच्छे हम से हारे।। भाँग पकौड़े मन भाएँगे ,लड्डू गुजिया भी खाएँगे। रंग बिरंगी होगी टोली,खूब मनाएँगे हम होली।। दीप्ति अग्रवाल