सोचा थोड़ा निभाऊं अपना फ़र्ज़,
'माँ' थोड़ा चुकाऊं तेरी ममता का कर्ज!
निकला ढूंढने और मैं अपनी इच्छा पूरी करने पे अड़ गया,
पर इस जँहा में तेरा स्नेह ढकने को आसमाँ भी कम पड़ गया!-
दरारें थीं दीवारों में, चू रही थी छत, टूट रही थी खिड़की नहीं लिखी,
परदेस में बेटे को, माँ ने ख़त में, कोई भी ख़बर सच्ची नहीं लिखी!-
न समझ तू मुझे अकेला,
मेरे साथ खड़ा मेरा "विश्वास" है।
मेरा आधा रूप ममता का,
तो आधा रूप तेरा "विनाश" है।-
"माँ" जीवन के कड़वे यथार्थ को स्वीकार कर
बड़ा मुश्किल है शहद सी मीठी कल्पनाओं में जीना..,
क़भी क़भी जीवन में तुम्हारी अनुपस्थिति
बहुत खलती है "माँ"
जैसे की आज...,
सोचूँ... काश स्मृतियों की कोई छवि होती
या एहसासों के कंठ होते...
...तो शायद तुमसे आज बात हो पाती!!-
ऋणी हूं मैं मां का
जिसने मुझे दुनिया में लाया ।
जिसने ममता के आंचल में सुलाया,
जिसने बोलना, चलना सिखाया ।।
-
मुझे गिराने की सारी दुनिया की ताकत मंद पड़ गईं
जब मेरे सर पे मेरी माँ की दुआएं चंद पड़ गईं-
मां कबीर की साखी जैसी,
तुलसी की चौपाई सी,
मां मीरा की पदावली सी,
मां है ललित रूबाई सी,
मां आंगन की तुलसी जैसी,
बरगद की छाया सी,
मां कविता की सहज वेदना,
महाकाव्य की काया सी,
मां ममता का मानसरोवर,
हिमगिरि सा विश्वास है,
मां श्रद्धा की आदि शक्ति सी,
कावा है कैलाश है,
मां आषाढ़ की पहली बारिश,
सावन की पुरवाई सी,
मां वसन्त की कुसुम सी,
बगिया की अमराई सी,
मां धरती की हरी दूब सी,
मां केशर की क्यारी है,
पूरी सृष्टि निछावर जिस पर,
मां की छवि न्यारी है,
मां ममता की खान है,
कितना भी लिख दूं कम है मां के लिए,
बस यहीं कह सकती हूं
मां हमेशा साथ रहने वाली भगवान है..!!
:--स्तुति
-
माँ❣️
माँ शब्द पर्याय हैं विश्वास और त्याग का,
बीज हैं इस चराचर सृष्टि के उत्थान का!-
जाे दर्द में रहकर भी दर्द भूला देती है
वाे हस्ती काेई आैर नहीं "माँ" हाेती है-