ℝ𝕒𝕛 𝕊𝕠𝕟𝕚   (राज सोनी)
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Joined 27 October 2019


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जेठ की दोपहरी में तेरा रूमानी सा ख़्याल आया है,
धूप में भी जैसे तेरा ही दिलकश सरूर सा छाया है।

तेरे लबों की नमी याद आई है, लू के थपेड़ों के बीच,
प्यासे होंठों पर तेरा नाम की ठंडक से मुस्कुराया है।

छत की तपती सीलियों पर बैठा हूँ मैं, तन्हा तेरे लिए,
तेरे बिना हर कोना जैसे तपता वीराना सा पाया है।

झोंका कोई गरम हवा का जब भी छुआ है बदन से,
लगता है तूने ही कानों में कुछ तरन्नुम गुनगुनाया है।

तेरे ख्याल की छांव में ये तपता सूरज भी हार गया है,
जेठ के दिन में शीतल चांदनी सा तेरा ख्याल आया है।

तुम जो अगर मिल जाए तो लू भी लगे ठंडी राहत सी,
वर्ना ये जेठ जैसे सीने में धधकती आग सा समाया है।

तेरा नाम लिखा, जेठ की गर्मी की पसीने की बूंदों में,
हर लम्हा तुझसे मिलने का गर्मी ने बहाना बनाया है।

पलकों पे रखा है मैंने तेरी हर छोटी छोटी सी ख्वाहिश,
धूप में भी इन ख्वाबों ने पलकों को तरबतर भिगोया है।

तेरी खिलखिलाती हँसी में छुपा है बादलों का सुकून,
तेरा नाम ही जेठ के आग बरसते मौसम को बहलाया है।

जेठ के महीने में "राज" भीग जाता तेरी यादें के साये में
तू अगर साथ है तो जेठ का हर दिन सावन बन जाया है। _राज सोनी

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तेरे नाम लिखे खतों के साथ था वो रूमाल,
महसूस करूँ तुझको, बस यही था रूमाल।

तेरे जाने के बाद बस जो रह गया मेरे पास,
ना तस्वीर, ना निशानी, बस यही है रूमाल।

पहली मुलाक़ात में जो अदला बदली किया,
अब भी महकता है गुलाब सा तेरा रूमाल।

कभी आँसू पोंछे, कभी हँसी समेटी थी मैने,
इश्क की इबारत की गवाही है यह रुमाल।

तेरी साड़ी से गिरा था या तूने खुद ही छोड़ा,
अनमोल तोहफा रख लिया तेरा वो रूमाल।

भीगे मौसम में जब भी तन्हा बैठा करता हूँ,
अपने चेहरे पर रख लेता हूँ तेरा यह रूमाल।

ना कोई तेरी खैर खबर, ना तेरा कोई पैग़ाम,
ढूंढता हूँ तुमको इसमें जो तुम्हारा दिया रुमाल।

कितने शिद्दत से "राज" तेरा ख्याल रखता हैं,
तपते बादल में भिगो के रखता हूँ ये रुमाल। _राज सोनी

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YQ इस संसार में
भांति भांति के लोग

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बयां कर दिया हाल–ए–दिल, कुछ बचा है तो और बताओ,
मैं तो हूँ खुली किताब, कुछ और लिखना है तो और बताओ।

हर अल्फाज़ में है बस तेरा फ़साना, हर शय में तेरी परछाई,
हर तरीके से जता चूका हूँ, कुछ बाकी रहा तो और बताओ।

तेरे हर वादे पर किया मैंने यकीं, जब भी जो भी तुमने कहा,
एतबार में अगर रह गई कमी तो बेहिचक तुम और बताओ।

हर नियत समय पर मैं मिलता हूँ, भले ही कुछ देर के लिए,
मुलाक़ात में हो गर कमीबेशी तो कैसे मिलूं मैं और बताओ।

हर तीज त्यौहार पर मैं होता हाजिर तेरे कुछ कहने से पहले,
हर दिन मेरा त्यौहार, कोई बाकी त्यौहार है तो और बताओ।

हर पूजा पाठ में तू है शामिल, रब के बराबर मैं तुम्हे रखता हूँ,
मेरी आराधना, मेरी प्रार्थना, ओर इबादत है तो और बताओ।

सब संगी साथी पूछ रहे कब से, अब तो उसका नाम बता दो,
नाम का इशारा दे चुका, खुल्मखुला बताना तो और बताओ।

इंतजार की घड़िया करती टिक टिक, बेसब्र न कर अब तो तुम,
"राज" ने संकल्प ले रखा है, कुछ और मन्नत है तो और बताओ।
राज सोनी

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मिलना जुलना मेरा रोज का है पर दिल की बात बाकी रही,
कहने को तो सब कह दिया पर एक मुलाकात बाकी रही।

ख्वाहिशें से सब जता चुका जो तुम्हे लेकर मैंने सोचा था,
कुछ ख्वाहिशें मुकम्मल हुई पर कुछ ख्वाहिश बाकी रही।

खत तुम्हे बेशुमार लिखे जब जब तुम्हारी तलब होने लगी,
मन के भाव लिख दिए पर प्रेम की लिखावट बाकी रही।

सारे जमाने को खबर है कि हम एक दूसरे के हो चुके पर,
मिलने की रस्म की मेरे नाम की मेंहदी लगानी बाकी रही।

जब भी सवाल प्रेम का किया, पलकें लज्जा से झुक गई,
ख़ामोशी से हाँ कर चुकी पर तेरा मुँह से हाँ बाकी रही।

चाँद नित रोज निखरता रहा जैसे प्रेम हमारा पूर्णमासी का,
नम आँखों से हर रात कटी, तेरे इंतजार में नींद बाकी रही।

चले आओ मेरे चिलमन में सफर प्रेम का अब आगाज़ करें,
अब सबकुछ मुकम्मल करें जो जो प्रेम की रस्मे बाकी रही।

"राज" तो अब अनमना सा है बिना तेरे गर्म तीखे तेवर से,
गुस्सा नाराजगी फिर से जता, तेरी ढेरों शिकायत बाकी रही। _राज सोनी

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सतरंगी रंग से रंगी वो इस बार की होली,
रग रग में रंग कर वो इस बार मेरी हो ली।

भीगी चुनर भीनी महकी, भीगी इस होली,
भाव भंगिमा के भंवर में वो मुझ में खो ली।

अब भी अबीर अशेष है कि आने को होली,
अनुरक्ति आसक्ति से वो मेरे अंक में आ ली।

छुप छुप छलकाती रंग बन छनछन सी होली,
छज्जे की ओट से मुझ पे छुईमुई सी छा ली।

प्रिया प्रियतमा बन खेली पिचकारी से होली,
पिया पथ पर रख के पग, वो मुझको पा ली।

बाहुपाश में हो कर बोली बहक जा इस होली,
बरसती प्रेम बारिश में वो बीज प्रेम का बो ली।

हृदय हर के वो हर्षित, हद तोड़ी दी इस होली,
हुई हया से वो हरी, कह दी मै तुम्हारी हो ली। _राज सोनी

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अमृत भूमि प्रयागराज जन चेतन आध्यात्मिक का संगम,
छलका अमृत, हुआ देवत्व, हुआ तब यह दुर्लभ संगम।

देश विदेश में हुआ चर्चित, खींचे चले आए जैसे चुंबक
उमड़ पड़ा अथाह जन सैलाब मनभावन दृश्य विहंगम।

रज पद स्पंदन सनातन गौरव स्वर्ग सम त्रिवेणी परिवेश,
आस्था की डुबकी, तन मन प्रफुल्लित, आत्मिक जंगम।

पुण्य सलिला तीर पर, यज्ञ अनुष्ठान की प्रज्वलित लौ,
जैसे देव स्वर्ग से अनुभूदित हर क्षण आशीर्वाद हृदयंगम।

वैचारिक नैतिक सात्विक से ओतप्रोत सर्वस्व सर्वत्र ओर,
जो बने हिस्सा भाग्यशाली, आधि व्याधि तज हुए सुहंगम।

हर एक के जीवन में होता यह प्रथम और अंतिम अवसर,
जीवन सुफल, दुःख दर्द निष्फल, जैसे यह मोक्ष आरंगम।

आत्मशुद्धि, वैचारिक मन मंथन का सुव्यस्थित आश्रय,
नश्वर तन का अटल अंतिम सत्य, यही संगम यही मोक्षम

सदियों से बना यह अति उत्तम दुर्लभ खगोलीय संयोग,
बहुचर्चित, दिव्य, अलौकिक इस महाकुंभ का शुभारंभ।
_राज सोनी

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सोने के कंगन एक तरफ, तेरे ये लाख के कंगन एक तरफ,
पायल की रुनझुन फीकी जब कंगन की खनक एक तरफ।

काँच की चूड़ियाँ है चुगलखोर, ये पगली चुगली कर देती है,
पहनाऊंगा तुम्हे लाख के कंगन बाकी शोर शराबा एक तरफ।

एक तरफ मुझे बेसब्री है तेरे दिल में मेरा ठिकाना बनाने की,
पहन के आना लाख के कंगन, बाकी रस्म रिवाज एक तरफ।

भले ही मुझ से ढेरों शिकायत हो, तो भी तेरा माथा चूमूँ मै,
ये लाख के कंगन तेरे ही है, बाकी सोलह श्रृंगार एक तरफ़।

सबसे रूबरू होकर देख लिया, करीब से मैंने परख लिया,
कंगन पहनने को सभी आतुर पर तेरे मुक़ाबिल एक तरफ।

तेरी कलाई की खबर हरदम रही, माप नाप का अंदाजा था,
तेरी कलाई में लाख के कंगन तो सोने में सुहागा एक तरफ।

तेरा चंदा, तेरा सूरज, तेरा जमाना तो अब हम क्या कीजे,
तेरे लाख के कंगन में मेरी दुनियाँ बाकी कायनात एक तरफ।

"राज" बन जाए तेरा मणियार तो मेरा गुजारा हो जायेगा,
एक तरफ तेरी कलाई, बाकी खुदा की खुदाई एक तरफ।

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2 OCT 2024 AT 8:39



कुछ लापरवाह, कुछ बेफिक्र, कुछ बेखबर होते है,
बेटे मां बाप के सामने जानबूझ के बेपरवाह होते हैं।

पता है उसे घर के हालात, मां बाप की चिंता फिक्र,
बिन कहे अपनी ख्वाहिशों को सूली पर चढ़ा देते है।

खबर है उसे की उस पर है ढेरों उम्मीदें मां बाप की,
जिम्मेदारियां छोटी उम्र से ही सीखने लग जाते है।

शिकायत, उलहाना, नाखुशी मिलती हैं रोज घर से,
यह तो बेटे होने का है इनाम, वो स्वीकार करते है।

रहना होगा उसे दो पीढ़ियों की बीच कड़ी बनकर,
एक को समझना और दूसरे को समझाना पड़ता है।

कड़ाई की परवरिश से तप के हो जाते है कुंदन से,
बेटे से पहले तुम पुरुष हो ये अनकहा समझ जाते है।

जब बेटा बनता पिता तब तलाशता खुद को बेटे में,
हर बेटे की यही कहानी क्योंकि बेटे ऐसे ही होते हैं।

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