YQ इस संसार में
भांति भांति के लोग-
और जीवन के उत्तरार्द्ध में हूँ!
गलती से ... read more
बयां कर दिया हाल–ए–दिल, कुछ बचा है तो और बताओ,
मैं तो हूँ खुली किताब, कुछ और लिखना है तो और बताओ।
हर अल्फाज़ में है बस तेरा फ़साना, हर शय में तेरी परछाई,
हर तरीके से जता चूका हूँ, कुछ बाकी रहा तो और बताओ।
तेरे हर वादे पर किया मैंने यकीं, जब भी जो भी तुमने कहा,
एतबार में अगर रह गई कमी तो बेहिचक तुम और बताओ।
हर नियत समय पर मैं मिलता हूँ, भले ही कुछ देर के लिए,
मुलाक़ात में हो गर कमीबेशी तो कैसे मिलूं मैं और बताओ।
हर तीज त्यौहार पर मैं होता हाजिर तेरे कुछ कहने से पहले,
हर दिन मेरा त्यौहार, कोई बाकी त्यौहार है तो और बताओ।
हर पूजा पाठ में तू है शामिल, रब के बराबर मैं तुम्हे रखता हूँ,
मेरी आराधना, मेरी प्रार्थना, ओर इबादत है तो और बताओ।
सब संगी साथी पूछ रहे कब से, अब तो उसका नाम बता दो,
नाम का इशारा दे चुका, खुल्मखुला बताना तो और बताओ।
इंतजार की घड़िया करती टिक टिक, बेसब्र न कर अब तो तुम,
"राज" ने संकल्प ले रखा है, कुछ और मन्नत है तो और बताओ।
राज सोनी-
मिलना जुलना मेरा रोज का है पर दिल की बात बाकी रही,
कहने को तो सब कह दिया पर एक मुलाकात बाकी रही।
ख्वाहिशें से सब जता चुका जो तुम्हे लेकर मैंने सोचा था,
कुछ ख्वाहिशें मुकम्मल हुई पर कुछ ख्वाहिश बाकी रही।
खत तुम्हे बेशुमार लिखे जब जब तुम्हारी तलब होने लगी,
मन के भाव लिख दिए पर प्रेम की लिखावट बाकी रही।
सारे जमाने को खबर है कि हम एक दूसरे के हो चुके पर,
मिलने की रस्म की मेरे नाम की मेंहदी लगानी बाकी रही।
जब भी सवाल प्रेम का किया, पलकें लज्जा से झुक गई,
ख़ामोशी से हाँ कर चुकी पर तेरा मुँह से हाँ बाकी रही।
चाँद नित रोज निखरता रहा जैसे प्रेम हमारा पूर्णमासी का,
नम आँखों से हर रात कटी, तेरे इंतजार में नींद बाकी रही।
चले आओ मेरे चिलमन में सफर प्रेम का अब आगाज़ करें,
अब सबकुछ मुकम्मल करें जो जो प्रेम की रस्मे बाकी रही।
"राज" तो अब अनमना सा है बिना तेरे गर्म तीखे तेवर से,
गुस्सा नाराजगी फिर से जता, तेरी ढेरों शिकायत बाकी रही। _राज सोनी-
सतरंगी रंग से रंगी वो इस बार की होली,
रग रग में रंग कर वो इस बार मेरी हो ली।
भीगी चुनर भीनी महकी, भीगी इस होली,
भाव भंगिमा के भंवर में वो मुझ में खो ली।
अब भी अबीर अशेष है कि आने को होली,
अनुरक्ति आसक्ति से वो मेरे अंक में आ ली।
छुप छुप छलकाती रंग बन छनछन सी होली,
छज्जे की ओट से मुझ पे छुईमुई सी छा ली।
प्रिया प्रियतमा बन खेली पिचकारी से होली,
पिया पथ पर रख के पग, वो मुझको पा ली।
बाहुपाश में हो कर बोली बहक जा इस होली,
बरसती प्रेम बारिश में वो बीज प्रेम का बो ली।
हृदय हर के वो हर्षित, हद तोड़ी दी इस होली,
हुई हया से वो हरी, कह दी मै तुम्हारी हो ली। _राज सोनी-
अमृत भूमि प्रयागराज जन चेतन आध्यात्मिक का संगम,
छलका अमृत, हुआ देवत्व, हुआ तब यह दुर्लभ संगम।
देश विदेश में हुआ चर्चित, खींचे चले आए जैसे चुंबक
उमड़ पड़ा अथाह जन सैलाब मनभावन दृश्य विहंगम।
रज पद स्पंदन सनातन गौरव स्वर्ग सम त्रिवेणी परिवेश,
आस्था की डुबकी, तन मन प्रफुल्लित, आत्मिक जंगम।
पुण्य सलिला तीर पर, यज्ञ अनुष्ठान की प्रज्वलित लौ,
जैसे देव स्वर्ग से अनुभूदित हर क्षण आशीर्वाद हृदयंगम।
वैचारिक नैतिक सात्विक से ओतप्रोत सर्वस्व सर्वत्र ओर,
जो बने हिस्सा भाग्यशाली, आधि व्याधि तज हुए सुहंगम।
हर एक के जीवन में होता यह प्रथम और अंतिम अवसर,
जीवन सुफल, दुःख दर्द निष्फल, जैसे यह मोक्ष आरंगम।
आत्मशुद्धि, वैचारिक मन मंथन का सुव्यस्थित आश्रय,
नश्वर तन का अटल अंतिम सत्य, यही संगम यही मोक्षम
सदियों से बना यह अति उत्तम दुर्लभ खगोलीय संयोग,
बहुचर्चित, दिव्य, अलौकिक इस महाकुंभ का शुभारंभ।
_राज सोनी-
सोने के कंगन एक तरफ, तेरे ये लाख के कंगन एक तरफ,
पायल की रुनझुन फीकी जब कंगन की खनक एक तरफ।
काँच की चूड़ियाँ है चुगलखोर, ये पगली चुगली कर देती है,
पहनाऊंगा तुम्हे लाख के कंगन बाकी शोर शराबा एक तरफ।
एक तरफ मुझे बेसब्री है तेरे दिल में मेरा ठिकाना बनाने की,
पहन के आना लाख के कंगन, बाकी रस्म रिवाज एक तरफ।
भले ही मुझ से ढेरों शिकायत हो, तो भी तेरा माथा चूमूँ मै,
ये लाख के कंगन तेरे ही है, बाकी सोलह श्रृंगार एक तरफ़।
सबसे रूबरू होकर देख लिया, करीब से मैंने परख लिया,
कंगन पहनने को सभी आतुर पर तेरे मुक़ाबिल एक तरफ।
तेरी कलाई की खबर हरदम रही, माप नाप का अंदाजा था,
तेरी कलाई में लाख के कंगन तो सोने में सुहागा एक तरफ।
तेरा चंदा, तेरा सूरज, तेरा जमाना तो अब हम क्या कीजे,
तेरे लाख के कंगन में मेरी दुनियाँ बाकी कायनात एक तरफ।
"राज" बन जाए तेरा मणियार तो मेरा गुजारा हो जायेगा,
एक तरफ तेरी कलाई, बाकी खुदा की खुदाई एक तरफ।-
कुछ लापरवाह, कुछ बेफिक्र, कुछ बेखबर होते है,
बेटे मां बाप के सामने जानबूझ के बेपरवाह होते हैं।
पता है उसे घर के हालात, मां बाप की चिंता फिक्र,
बिन कहे अपनी ख्वाहिशों को सूली पर चढ़ा देते है।
खबर है उसे की उस पर है ढेरों उम्मीदें मां बाप की,
जिम्मेदारियां छोटी उम्र से ही सीखने लग जाते है।
शिकायत, उलहाना, नाखुशी मिलती हैं रोज घर से,
यह तो बेटे होने का है इनाम, वो स्वीकार करते है।
रहना होगा उसे दो पीढ़ियों की बीच कड़ी बनकर,
एक को समझना और दूसरे को समझाना पड़ता है।
कड़ाई की परवरिश से तप के हो जाते है कुंदन से,
बेटे से पहले तुम पुरुष हो ये अनकहा समझ जाते है।
जब बेटा बनता पिता तब तलाशता खुद को बेटे में,
हर बेटे की यही कहानी क्योंकि बेटे ऐसे ही होते हैं।-
तू नीम सी कड़वी क्यों है, तू निंबोली सी बन जा,
तेरे प्यार से महक जाऊं मैं, तू चंदन सी बन जा।
कीकर के कांटे से है तेरे अल्फाजों की चुभन,
मैं बन जाऊं सांगरी सा, तू खेजड़ी सी बन जा।
माना बेशक तू नशीली सी है महुआ की तरह,
मैं बन जाऊं सोमरस, तू बेल द्राक्ष सी बन जा।
अमलतास सी उम्रदराजी अब प्रेमपुष्प खिलने दो,
प्रेम मनुहार कर दूंगा तू कली कचनार की बन जा।
जब भी दिल को छुआ तो हो जाती तू नागफनी
सजा लूंगा मैं मन के द्वारे तू अशोक सी बन जा।
रूखी सूखी सी क्यों अड़ी है, जैसे पेड़ कैर सी तू,
सुस्ता लूं तेरी प्रेम छांव में, तू बरगद सी बन जा।
बातों में आग बरसती जैसे ज्वलनशील कपास सी
मैं बन जाऊं तेरा सूरज, तू सूरजमुखी सी बन जा।
अर्पण समर्पण से भाव तेरे, जेसे तुम हो बेलपत्र,
मैं हो जाऊं तेरे नतमस्तक तू तुलसी सी बन जा।
टेसू के फूलों माफिक रंग, है तेरे हर रंग प्यार के,
लिख दूंगा मै प्रेमकथा, बस तू भोजपत्र बन जा। राज सोनी
हो जा श्राप मुक्त, श्रापित निधिवन के "राज" से,
संपूर्ण प्रेमाहुति वरदायक कल्पवृक्ष सी बन जा।-
चंचल चितवन, चपल, चौकस, चुनमुन सा चांद मेरा,
चाक चौबंद, चित्त चित्री, चश्म–चिराग सा चांद मेरा।
चहक चहक चलती चुस्त चाल, चूड़ी चुनर चंदन सी,
चिरमी चुटीली, चैत्य चेतन, चेहरा चुम्बक सा चांद मेरा
चंपा चमेली, चानिका चारुमति, चमकीली चित्रा सी,
चित्रणी चक्षु, चारुल चतुर्वी, चित्रांगदा सा चांद मेरा।
चिन्नी चिक्की, चहेती चलमा, चित्रंगी, चेत्रा चक्रवती सी,
चऋिश्मा चनगुना, चारुहसा, चिरंतना सा चांद मेरा।
चकोर चाहत, चर्चा चतुराई, चाहत चारी चुलबुल सी,
चहल चहचाती, चकमक चपलता, चांदी सा चांद मेरा।
चमक चंद्रहार, चूड़ामणि, चनिया चोली चंदेरी की सी,
चरक चुन्नी, चलती चरणबद्ध, चिरंतन सा चांद मेरा।
चंद्रमणि, चर्चिका चरित, चंद्रमौली चऋीश चिंतक सी,
चितप्रीत चितलीन, चमनरूप, चंद्रकीर्ति सा चांद मेरा। __राज सोनी-
तुमको सोचा तुमको माना कभी बिन वजह हम मुस्कुरा दिए,
कुछ आंखों में तुम बस गए, कुछ धड़कन में तुम रह गए।
मेरा खज़ाना बस इतना हैं।
बोए थे बीज प्रेम के तन्मयता से बंजर मन मरुस्थल भूमि पर,
कुछ गुलाब बन के महक गए, कुछ बरगद बन के छा गए।
मेरा उपवन बस इतना हैं।
गर मिले कभी वो तो हम बताएं तेरे लिए क्या क्या सोचा था,
कुछ खत अधूरे लिखे रह गए, कुछ खत लिख कर रख लिए।
मेरा कहना बस इतना ही है।
हर तीज त्यौहार पर था इंतजार, तेरी राह को मैं तकता रहा,
कुछ मन्नत अधूरी रह गई, कभी कुछ इबादत अधूरी रह गई।
मेरा फसाना बस इतना ही हैं।
हम तुम मिले या ना मिले यह तो फकत है किस्मत की बात,
कुछ अब भी मैं तुम में हूं तो कुछ अब भी तुम भी मुझ में हो।
मेरा संसार बस इतना हैं।
रंग प्यार के महसूस किए हर मन माफिक मौसम की तरह,
कुछ सावन सी रिमझिम सी, कुछ जेठ की तपती गर्मी सी।
मेरा जमाना बस इतना हैं।
अब आएगी तब आएगी, हर दिन गिन गिन कर गुजार दिए,
कुछ शगुन वक्त पर नहीं हुए, कुछ अपशगुन आड़े आ गए।
मेरा इंतजार बस इतना हैं।
ख्वाहिशों की एक लंबी फेहरिस्त कुछ ख्वाब अधूरे अब भी है,
कुछ पराए मिल के बिछुड़ गए कुछ अपने इंतजार में ठहर गए।
मेरा सफर बस इतना ही हैं।
–राज सोनी-