Rana   ("मन की बातें" a.Rana)
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Joined 23 May 2018


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13 APR AT 9:13

इक तरफ से तुम आओ, इक तरफ से हम आते हैं
जैसे पहले थे अजनबी... चलो, फ़िर वैसे बन जाते हैं,
जय हो अबके क्या पता, प्रेम की द्यूत शाला में
फ़िर खेलते हैं दांव "प्रिय", फ़िर किस्मत अजमाते हैं,
पानी से पानी की लहरों की, व्यर्थ की है यह स्पर्धा
किनारों से लगकर, चंद छींटे कहां कुछ पाते हैं,
पतंग की हवा से, क्या पता अब के निभ जाए
काटने से बेहतर, क्यों ना इसे मिलकर उड़ाते हैं,
मैं भीगने बैठा हूं, तुम खोलो जुल्फों के मेघ "प्रिय"
इस विरह की बारिश को, फ़िर संग अंग लगाते हैं,
समय ने छोड़ दिए हैं, उम्र के अबाधित तीर "प्रिय"
अब क्या पता कब किसको, यह अपना निशाना बनाते हैं,

तितलियों सी ख़ामोशी, स्मृतियों के गुलशन पे बैठी है
"प्रिय" आ जाओ तुम खुशबू बनकर, तुम्हें सूखे फ़ूल बुलाते हैं!!

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11 APR AT 8:56

उम्मीदों की इक झील बची है
और अरमानों का इक झरना भी है अंदर,
...पर थक चुकी है उम्र की कश्ती
और अभी पार करने को है
ख्वाइशों का इक विशाल समुंदर,

के कुछ केश सफ़ेद हैं प्रश्न पूछते
और आईना है उत्तर अभिलाषी
जब खिली खिली है मुस्कान अधर पर
फिर क्यों हल्की हल्की है नयन उदासी,

मैं सोचूं, काश वहां पे कुछ उपज होती
जिस "भू" पर प्राण छूटते हैं
हर सावन जब सब हरित हुआ है
फिर मरघट में क्यूं नहीं अंकुर फूटते हैं!!

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7 APR AT 8:19

हो जाता है स्वप्नों से प्रेम मुझे, गाढ़ अथाह बार बार यूं ही
...पर टूटे टूटे रह जाते हैं, वो नयनों में हर बार यूं ही,

आपस में मिलने को, घर के कमरे आतुर हैं
पर जाने क्यों आ जाती है, बीच में यह दीवार यूं ही,
पहले ही सूचित करते हैं आंखों की पलकों के स्पन्दन
के अब के भी बीतेगी, पतझड़ सी बहार यूं ही,

जीवन की इस रणभूमि में, सारे ही शत्रु अपने हैं
बस खड़ा हूं लेके, मैं हाथों में तलवार यूं ही,
ह्रदय के तरकश में, कुछ प्रेम के पुष्प मिले
फिर जाने क्यों देह पे, सब कर जाते हैं वार यूं ही,

लौट कहां अब आयेंगे, लोग गए जो जीवन से
पर मैं बस करता रहता हूं, निर्विराम इंतजार यूं ही,
नई पत्तियों ने हर ली, सूखे पत्तों की स्मृतियां
शायद चलता होगा, ईश्वर का यह संसार यूं ही!!

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6 APR AT 8:29

विरह में बहते नैनों के जल सा
ईश्वर का हर फ़ैसला शुद्ध होता है,
मन की कलह का कोई नहीं है दोषी
"मनुज",अपने सुख-दुःख का उत्तरदायी ख़ुद होता है,
पत्थरों में भी बीज, अंकुरित हो जाते हैं
कोई कहां किसी की खुशियों के विरुद्ध होता है,
मन संग ख्वाबों ख्वाइशों की सेना सजी है
पर, जिन्दगी से अकेले ही युद्ध होता है!!

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4 APR AT 16:25

एक उम्र, और यह सुख-दुःख का झंझट
...काश, रास्ता जीवन का साधारण होता,
बिना बोझ बहते जल सा...,
....या रूप हवा सा धारण होता,

प्रभु का अनुमोदन और प्रेम प्रलोभन
काश, जीने का और भी कोई कारण होता,
...लाख उपाय, चैन लोटा ना पाए
काश, कमबख्त... स्मृतियों का कोई निवारण होता,

....अंतर्द्वंद्व, मैं कैसे लिख दूं
काश, इस मन मनुवंतर का कहीं कोई उच्चारण होता,
सुना है, होते हैं उसके दिव्य दर्शन
काश, ऐसा मेरे समुख भी कोई उदाहरण होता!!

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3 APR AT 17:25

अपने आप कमीजों के काजों से अब बटन खुल रहे हैं
बड़ी खूबसूरती से, घुटे-घुटे अब बदन खुल रहे हैं,

....मुस्कुरा कर, मुझसे कहता है आईना
जनाब, उम्र को कम करने के अब सारे जतन खुल रहे हैं,

हो गई होगी, गेंदे के फ़ूल सी शायद वो भी अब "कलिका"
....हृदय में फ़िर जिसकी स्मृतियों के चमन खुल रहे हैं,

फ़िर बात छिड़ी है, बेफिक्री-फुर्सतों की
भरे हुए फ़िर... पुराने, जख्म खुल रहे हैं,

यह उम्र के किस दौर से गुजर रहा हूँ "मैं" ज़िन्दगी
के रास्ते हो रहे हैं बंद, औऱ मेरे क़दम खुल रहे हैं...!!

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30 MAR AT 19:55

"क्षमा याचना.... "



Please read in caption....!!

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18 MAR AT 21:54

सब मिट रहा है शनैः शनैः, वो फुलवारियां, वो सहरा घने
...दूर दूर तक स्मृतियों के, हैं दूर दूर तक, मरुस्थल बने,

मन में है एक विरक्तता, हर तरफ़ है... रिक्क्ता
फिर दिल की धड़कनों संग, कौन है यह थिरकतता,

...मृदुल मधुर रात है, पर श्रवण बांसुरी का विलाप है
है जग प्रतीत कंदरा, यह समुख किस तरह की बात है,

एक अदृश्य सा कोलाहल है, ...प्रत्येक दिशा बेहाल है
हूं चल रहा धीमी गति, पर तन फिर भी शिथिल निढाल है,

स्मृतियों से हरण कर..., यूं तो तुझे मन मुस्कुराए स्मरण कर
...पर जाने लगे हैं आंसू वेइंतहा, क्यों खामोशियों में खनकने,

सब मिट रहा है शनैः शनैः, क्या फुलवारियां क्या सहरा घने
दूर दूर तक स्मृतियों के, हैं दूर दूर तक, मरुस्थल बने...!!

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17 MAR AT 10:07

रह गई "जिंदगी", इक दग़ा बनकर...
आखिर, जीना ही निकला, मरने की वजह बनकर,

देखते ही देखते लोग फूलों से...
....खुशबुओं में उड़ गए, हवा बनकर,

ताउम्र दिल के दर्द कम ना हुए
खामखा, हम लिपटे रहे जख्मों से दवा बनकर,

सुख-दुःख की ख़ुदा की इस कचहरी में
अफसोस, रह गए मूक हम गवाह बनकर,

कुछ ख़्वाब-ओ-ख्वाइशों के जुर्म सावित हुए
और फिर कटी सारी उम्र सज़ा बनकर...!!

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16 MAR AT 9:00

अलविदा "बहना"....

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