अपने आप कमीजों के काजों से अब बटन खुल रहे हैं
बड़ी खूबसूरती से, घुटे-घुटे अब बदन खुल रहे हैं,
....मुस्कुरा कर, मुझसे कहता है आईना
जनाब, उम्र को कम करने के अब सारे जतन खुल रहे हैं,
हो गई होगी, गेंदे के फ़ूल सी शायद वो भी अब "कलिका"
....हृदय में फ़िर जिसकी स्मृतियों के चमन खुल रहे हैं,
फ़िर बात छिड़ी है, बेफिक्री-फुर्सतों की
भरे हुए फ़िर... पुराने, जख्म खुल रहे हैं,
यह उम्र के किस दौर से गुजर रहा हूँ "मैं" ज़िन्दगी
के रास्ते हो रहे हैं बंद, औऱ मेरे क़दम खुल रहे हैं...!!
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