ना जाने क्यों लोग ज़रा-ज़रा सी बातों पर बिखर जाते हैं
यहाँ तो मुकम्मल ज़िंदगी बिखरी है, और हमें परवाह तक नहीं!-
मैं और आप " लिखने वाले हैं।
वक्त, लम्हे... read more
ऐसा छोड़कर गया वो शख़्स मुझको बीच राह
कि सारी उम्र मैं सफर ही करता रह गया!-
नाराज़गी उसकी नफ़रत में तब्दील हो गई
मनाते-मनाते उसको खुद से ही रूठ गए हम!-
माना कि तेरे बिना रूका नहीं जाता
मगर बस, अब मज़ीद झुका नहीं जाता!-
वो शख़्स जो मुझे अपनी ज़िन्दगी मे रखना ही नही चाहता है
आखिर क्यों मेरे दिल से निकल नही पाता है!-
यूँ तो रास्ते तक भूल जाती हूँ मैं मगर.......
वो इक शख़्स हर वक्त मेरे ज़ेहन में रहता है!
-
दिल दुखता है मेरा भी,इंसान की ज़ात से जुदा नहीं हूँ मैं
और हर बार तेरे गुनाह माफ़ करती जाऊँ ,ख़ुदा नहीं हूँ मैं!-
बस यही इक ग़म मुझे खाए जा रहा है
कि वो भूल गया है.....
और मुझे याद आए जा रहा है!-
उम्मीद फ़िज़ूल है कि होगा कोई तेरे ग़म में शरीक
शहर है ये.. नहीं रखता कोई किसी की ख़बर यहाँ!-
तेरे सौ सवालों पर मेरा बस एक ही जवाब है
'ज़िंदगी' तू अधूरी भी खराब थी,तू मुकम्मल भी खराब है!-