ना जाने क्यों लोग ज़रा-ज़रा सी बातों पर बिखर जाते हैं
यहाँ तो मुकम्मल ज़िंदगी बिखरी है, और हमें परवाह तक नहीं!-
मैं और आप " लिखने वाले हैं।
वक्त, लम्हे... read more
ऐसा छोड़कर गया वो शख़्स मुझको बीच राह
कि सारी उम्र मैं सफर ही करता रह गया!-
नाराज़गी उसकी नफ़रत में तब्दील हो गई
मनाते-मनाते उसको खुद से ही रूठ गए हम!-
माना कि तेरे बिना रूका नहीं जाता
मगर बस, अब मज़ीद झुका नहीं जाता!-
दिल दुखता है मेरा भी,इंसान की ज़ात से जुदा नहीं हूँ मैं
और हर बार तेरे गुनाह माफ़ करती जाऊँ ,ख़ुदा नहीं हूँ मैं!-
बस यही इक ग़म मुझे खाए जा रहा है
कि वो भूल गया है.....
और मुझे याद आए जा रहा है!-
उम्मीद फ़िज़ूल है कि होगा कोई तेरे ग़म में शरीक
शहर है ये.. नहीं रखता कोई किसी की ख़बर यहाँ!-
तेरे सौ सवालों पर मेरा बस एक ही जवाब है
'ज़िंदगी' तू अधूरी भी खराब थी,तू मुकम्मल भी खराब है!-
दरख़्तों को भी अब ये समझ जाना चाहिए
कि परिंदे फ़कत परवाज़ के शौकीन होते हैं!-
वादा करो कि अब कोई वादा नहीं करोगे
बे-वफ़ाओं पर मर मिटने का इरादा नहीं करोगे
माना कि भरोसा ज़रूरी है रिश्तों में मगर
मुहब्बत में ऐतबार हद से ज़ियादा नहीं करोगे
ख़ता है कि मैंने अपना माना तुम्हे अपनो से भी ज़्यादा
क्या मालूम था दिल दुखाकर भी पछतावा नहीं करोगे
जैसे हो वैसे ही मिलना अबकी बार किसी से
वादा करो कि अच्छे होने का दिखावा नहीं करोगे
मुहब्बत कोई उधार तो नहीं जो लौटाना ज़रूरी हो
तुम करते रहो 'शालीन' पर अब उस से तकादा नहीं करोगे!— % &-