Arif Alvi   (आरिफ़ अल्वी)
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आए हो तो कुछ पढ़कर जाना! 😊
Joined 5 February 2019

26 MAR AT 18:01

मुझे भी तुम्हारा कहेगा ज़माना
मोहब्बत जो मेरी पढ़ेगा ज़माना

ज़माने में मैं भी मिलूँगा कहीं पर
जुदा तुमसे कब तक करेगा ज़माना

चले आना मिलने किसी रोज़ मुझसे
सुनो! अब न पीछे पड़ेगा ज़माना

मोहब्बत से हम-तुम जो मिलते रहेंगे
तभी उस ख़ुदा से डरेगा ज़माना

ग़ज़ल जब लिखोगे ज़माने पे "आरिफ़"
तभी याद तुम को रखेगा ज़माना

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19 MAR AT 15:54

दर्द होगा सह लूँगा मरते-मरते
कुछ न कुछ तो कह लूँगा मरते-मरते

छोड़कर तुम जाओगे, जाओ-जाओ
बिन तुम्हारे रह लूँगा मरते-मरते

याद आई कल मुझको गर तुम्हारी
आँख भर कर बह लूँगा मरते-मरते

इश्क़ करके तुम मुझसे दूर जाना
कतरा-कतरा ढह लूँगा मरते-मरते

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12 MAR AT 0:39

इश्क़ है उसको कहा करती थी
सिर्फ़ मुझसे ही वफ़ा करती थी

रोज़ आती थी बहाने करके
जाने क्या-क्या वो सहा करती थी

राज़ गहरे थे निगाहों में तब
दर्द अन्दर ही जमा करती थी

पास आ करके रिझाती मुझको
मेरी पलकों पर रहा करती थी

काश 'आरिफ़' भी समझ लेता सब
इश्क़ उसको ही करा करती थी

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24 FEB AT 19:12

तुमने देखा है सिर्फ़ ख़्वाबों को
तुमने ख़्वाबों में कहाँ देखा है

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6 FEB AT 18:42

कश्तियों को ख़ुद से ही मझधार करके होगा क्या
डूबना जब तय ही है तब प्यार करके होगा क्या

अब मोहब्बत की मुझे भी कुछ समझ तो हो गई
मन में उल्फ़त ही नहीं इज़हार करके होगा क्या

ख़्वाब देखो तुम परी के जब मोहब्बत दिल में हो
गंदी नीयत ले के नइया पार करके होगा क्या

सब की इज़्ज़त बेचते हो जब तुम्हारे मन में हो
झूठ जैसी ये ग़ज़ल अख़बार करके होगा क्या

लोग "आरिफ़" की सुनेंगे ऐसी क़िस्मत अब कहाँ
लफ़्ज़ अपने बेवजह तलवार करके होगा क्या

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5 JAN AT 13:28

जहाँ उल्फ़त का हक़ मुझको चुकाना था
वहाँ नफ़रत का हर दिल में घराना था

चला था इश्क़ करने को जिधर भी मैं
खड़ा ज़ालिम उधर भी ये ज़माना था

करूँ अब इब्तिदा कैसे मोहब्बत की
सुना किस्सा भी उल्फ़त का पुराना था

गुनाहों की मुआफ़ी कब मिली मुझको
कहाँ सज़्दे में सिर मुझको झुकाना था

मिली मुझको मोहब्बत में दग़ा सबसे
ख़ुदा जाने मुझे क्या-क्या कमाना था

तुम्हें पागल समझते हैं सभी "आरिफ़"
अरे! किस-किस को पागलपन दिखाना था

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1 OCT 2023 AT 19:45

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16 SEP 2023 AT 21:16

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4 APR 2023 AT 10:17

फिर इश्क़ जी रहा है मुस्कान के सहारे
मिलता नहीं है कुछ भी इंसान के सहारे

वादा किया था मुझसे रक्खे गा साथ अपने
वादा वो छोड़ बैठा भगवान के सहारे

दिल चीज़ क्या है ये भी बतला दो आज उसको
रहता ये फूल कब तक गुल-दान के सहारे

आएगा पास इक दिन होगी उसे मोहब्बत
समझा रहा हूँ दिल को इमकान के सहारे

'आरिफ़' का हाथ उसने पकड़ा है बेबसी में
चलती नहीं मोहब्बत मीज़ान के सहारे

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31 JAN 2023 AT 9:40

खिलते रहे हैं फूल मोहब्बत के नाम पर
बोये हैं बीज जब भी बगावत के नाम पर

मिलने को रोज़ अब भी बुलाते हैं वो मुझे
करते हैं इश्क़ लोग शरारत के नाम पर

काँटों से बैर करके गुलाबों से दोस्ती
खाओगे ज़ख़्म तुम भी हिफ़ाज़त के नाम पर

उल्फ़त का क़त्ल कर दो निगाहों से आज तुम
धोखाधड़ी है बिकती शराफ़त के नाम पर

किसको दिखाऊँ ज़ख़्म ये 'आरिफ़' बताओ तुम
बहता है रोज़-रोज़ अदावत के नाम पर

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