26 APR AT 9:00

लम्हा-लम्हा जोड़ कर नग़्मा बना लिया
बस ग़ज़ल को इस तरह तन्हा बना लिया

ज़िन्दगी की भीड़ में रस्ते बदल गए
तीरगी को आज कल अपना बना लिया

बे-ख़बर था इश्क़ से जाता रहा उधर
दर्द-ए-दिल को नोच कर ताज़ा बना लिया

बे-बसी की चोट भी मिलती रही मुझे
बस उसे ही याद का हिस्सा बना लिया

ज़िन्दगी को इस क़दर 'आरिफ़' किया अलग
जिस्म अपना बेच कर मुर्दा बना लिया

-


23 APR AT 9:00

हुआ दिल दीवाना तेरे पास आकर
भुलाया ज़माना तेरे पास आकर

मोहब्बत तो नस-नस में हाज़िर है मेरी
मिला अब बहाना तेरे पास आकर

निगाहों की बातें वो ख्वाबों की रातें
नहीं कुछ छुपाना तेरे पास आकर

कहानी हमारी ही सुनती है दुनिया
नए गुल खिलाना तेरे पास आकर

जो 'आरिफ़' से तुमको हुई है मोहब्बत
वो सब कुछ है पाना तेरे पास आकर

-


10 APR AT 16:54

अभी मोहब्बत बना रहा हूँ
तभी निगाहें चुरा रहा हूँ

तबाह कुछ भी हुआ नहीं है
गुनाह अपने छुपा रहा हूँ

मुझे तो मेरी अना ने मारा
नज़र में ख़ुद को गिरा रहा हूँ

ख़ुशी के आँसू बता के इनको
वफ़ा का बदला चुका रहा हूँ

जफ़ा को ख़ुद में मिला के 'आरिफ़'
सफ़ीर ख़ुद को बता रहा हूँ

-


6 APR AT 14:22

कौन किसको अब रुलाए ज़िन्दगी में
आँसुओं को क्यों गिराए ज़िन्दगी में

लोग मिल मिलकर दग़ा करते रहे हैं
पास किसको अब बुलाए ज़िन्दगी में

मंज़िल-ए-ग़म हर तरफ़ है हम जिधर हैं
अपने भी समझो पराए ज़िन्दगी में

शहर-ए-उल्फ़त की तलब है आशिक़ों को
हम-नवा भी दिल दुखाए ज़िन्दगी में

दर्द-ए-दिल आज 'आरिफ़' को हुआ क्यों
ज़ख़्म किस किस से छुपाए ज़िन्दगी में

-


5 APR AT 17:46

ख़ुलासा कुछ मोहब्बत का किया होता
ज़हर फिर क्यों जुदाई का पिया होता

मिले हैं ज़ख़्म दुनिया से मुझे पल-पल
बिठा कर पास उनको भी सिया होता

हिक़ारत की नज़र मुझपर रखी तुमने
समझने का कभी मौक़ा दिया होता

मोहब्बत तो तुम्हारे दिल में अब भी है
मुक़र्रर वक़्त तो मुझसे लिया होता

वफ़ा 'आरिफ़' के ख़ातिर भी बचा लेते
वफ़ादारी से मैं भी फिर जिया होता

-


3 APR AT 13:15

कौन आए हमसे मिलने अब रुलाने के बाद
कोई अपना घर नहीं है इस ज़माने के बाद

ज़िन्दगी चलती रही, रुकती रही है हर साल
मौत आती ही नहीं है ज़ख़्म खाने के बाद

बद-नसीबी भी हमारी रोज़ हँसती है हम पे
फिर रुलाती है हमें जम के हँसाने के बाद

राज़-दारी का सिला हमको मिला है हर बार
दूर हम से ही हुआ दिल, पास आने के बाद

दर्द अपना काश 'आरिफ़' भी छुपाए इक बार
याद आते हैं सभी फिर से भुलाने के बाद

-


1 APR AT 21:01

आँख से पर्दा हटाओ, तो हटा कर बोलो
काश मुझको भी कभी अपना बना कर बोलो

दिल की धड़कन में समाते हो सुनो तो हमदम
आज लब पर नाम मेरा तुम सजा कर बोलो

तुमसे मिलकर ही मुझे भी चैन मिलता है अब
तुम भी मुझको अपने दिल में बसा कर बोलो

पत्थरों में जान होती है, मोहब्बत कर लो
बोलते हैं वो कभी तुम दिल लगा कर बोलो

दर्द अपना अपने अंदर ही छुपा रक्खा है
आँसुओं को आज अपने भी बहा कर बोलो

रोज़ 'आरिफ़' ही मोहब्बत अब करेगा क्या?
तुम भी इक दिन हाथ अपना भी बढ़ा कर बोलो

-


30 MAR AT 10:00

गिराओ न मुझको अपनी आँखों में दिलबर
मिलूँगा नहीं फिर दिल की राहों में दिलबर

तुम्हारे लिए ही होश आया है मुझको
भरो तो ज़रा अब अपनी बाहों में दिलबर

मोहब्बत हमारी साथ होगी हमारे
रखो हाथ अपना मेरे हाथों में दिलबर

गुलाबों सी खिलती रोज़ अपनी मोहब्बत
न होती कभी फिर चोट काँटों में दिलबर

गले अब लगा लो याद 'आरिफ़' अगर है
कभी तुम भी कर लो बात ख़्वाबों में दिलबर

-


28 MAR AT 10:00

चले आओ प्यार दूँगा रोज़ तुमको
गले का इक हार दूँगा रोज़ तुमको

ख़ुशी की कोई वजह मत ढूँढना तुम
सभी ख़ुशियाँ वार दूँगा रोज़ तुमको

तुम्हारा दिल रोज़ मुझको याद कर ले
दिलों का वो तार दूँगा रोज़ तुमको

मोहब्बत तुम आज मुझसे करके देखो
मेरे दिल का सार दूँगा रोज़ तुमको

कहीं 'आरिफ़' फिर न तुमको मिलने वाला
ख़ुशी दिल के पार दूँगा रोज़ तुमको

-


25 MAR AT 10:00

ज़िन्दगी में कुछ दुखों का ग़म न करना
बस किसी भी बे-वफ़ा को हम न करना

चल सको तो तुम भी उसके साथ चलना
पर मोहब्बत तुम दिलों में कम न करना

दिल से जिसको चाहते हो बोल देना
रूठ कर फिर आँख उसकी नम न करना

जब तुम्हारे पास कोई ख़ुश नहीं हो
भूल जाना फिर उसे हमदम न करना

ज़ख्म ख़ुद के तुम छुपाना रोज़ 'आरिफ़'
रहना ख़ुश तुम वक़्त को मरहम न करना

-


Fetching Arif Alvi Quotes