24 MAY AT 9:00

वक़्त होकर भी मुझे आस नहीं है
हम-नवा क्यों अब मेरे पास नहीं है

जी रहा हूँ ज़िन्दगी आज यहाँ क्यों
इश्क़ की अब तो मुझे प्यास नहीं है

जिसने मेरा दिल दुखाया है अभी तक
ज़िन्दगी को उस पे भी यास नहीं है

ज़ख़्म गहरे हैं मगर याद नहीं कुछ
दिल में अब भी दर्द कुछ ख़ास नहीं है

लोग 'आरिफ़' से कहेंगे कि नहीं कुछ
दुनिया सब को साथ क्यों रास नहीं है

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17 MAY AT 9:00

ओ ख़ुदा सब पे अपनी नज़र करना
दूर दुनिया से सारा कहर करना

इश्क़ तुझसे सभी ने किया आख़िर
तू भी ख़ुश अब यहाँ हर बशर करना

हर ख़ुशी इनकी इनको मिले हर पल
इस दुआ में तू इतना असर करना

कितने ख़ुश हैं सभी साथ मिलकर के
बस ख़ुशी की तू इन पर लहर करना

धूप में आज 'आरिफ़' रहे बिल्कुल
छाँव का कल तू इस पर शजर करना

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14 MAY AT 9:00

हर हसीना के ग़मों से निकल कर देखा
इश्क़ हमनें इस तरह भी बदल कर देखा

ख़्वाहिशों को छोड़कर हर किसी को चाहा
हर किसी के फूल को फिर कुचल कर देखा

हो गए मशहूर आशिक़ मगर फिर भी हम
ज़िन्दगी में हमनें कितना सँभल कर देखा

दर्द-ए-दिल के बाद अपना नहीं कोई अब
हँसते-हँसते भी ज़हर को निगल कर देखा

अब मोहब्बत खो गई फिर कहीं 'आरिफ़'
जाते-जाते तक सभी से पिघल कर देखा

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2 MAY AT 10:00

रोज़ उसको चाहता हूँ अब मोहब्बत के लिए
सोचता हूँ आज भी हर शब मोहब्बत के लिए

अज़्मतों से इश्क़ उसकी आज भी करता हूँ मैं
बन गया वो सिर्फ़ मेरा रब मोहब्बत के लिए

इक इबारत हुस्न उसका इक इबारत ख़ुद है वो
भूल जाता हूँ सभी मज़हब मोहब्बत के लिए

सुर्ख़ होंठों पर मुझे भी इश्क़ दिखता ही रहा
चाल क़ातिल और उसके लब मोहब्बत के लिए

आशिक़ाना बात उसकी दिल में घर वो कर गई
जो भी उसके पास है वो सब मोहब्बत के लिए

ख़्वाहिश-ए-दिल क्या है 'आरिफ़' आज उसको दे बता
चल ज़रा सा तू भी कुछ फिर दब मोहब्बत के लिए

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26 APR AT 9:00

लम्हा-लम्हा जोड़ कर नग़्मा बना लिया
बस ग़ज़ल को इस तरह तन्हा बना लिया

ज़िन्दगी की भीड़ में रस्ते बदल गए
तीरगी को आज कल अपना बना लिया

बे-ख़बर था इश्क़ से जाता रहा उधर
दर्द-ए-दिल को नोच कर ताज़ा बना लिया

बे-बसी की चोट भी मिलती रही मुझे
बस उसे ही याद का हिस्सा बना लिया

ज़िन्दगी को इस क़दर 'आरिफ़' किया अलग
जिस्म अपना बेच कर मुर्दा बना लिया

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23 APR AT 9:00

हुआ दिल दीवाना तेरे पास आकर
भुलाया ज़माना तेरे पास आकर

मोहब्बत तो नस-नस में हाज़िर है मेरी
मिला अब बहाना तेरे पास आकर

निगाहों की बातें वो ख्वाबों की रातें
नहीं कुछ छुपाना तेरे पास आकर

कहानी हमारी ही सुनती है दुनिया
नए गुल खिलाना तेरे पास आकर

जो 'आरिफ़' से तुमको हुई है मोहब्बत
वो सब कुछ है पाना तेरे पास आकर

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10 APR AT 16:54

अभी मोहब्बत बना रहा हूँ
तभी निगाहें चुरा रहा हूँ

तबाह कुछ भी हुआ नहीं है
गुनाह अपने छुपा रहा हूँ

मुझे तो मेरी अना ने मारा
नज़र में ख़ुद को गिरा रहा हूँ

ख़ुशी के आँसू बता के इनको
वफ़ा का बदला चुका रहा हूँ

जफ़ा को ख़ुद में मिला के 'आरिफ़'
सफ़ीर ख़ुद को बता रहा हूँ

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6 APR AT 14:22

कौन किसको अब रुलाए ज़िन्दगी में
आँसुओं को क्यों गिराए ज़िन्दगी में

लोग मिल मिलकर दग़ा करते रहे हैं
पास किसको अब बुलाए ज़िन्दगी में

मंज़िल-ए-ग़म हर तरफ़ है हम जिधर हैं
अपने भी समझो पराए ज़िन्दगी में

शहर-ए-उल्फ़त की तलब है आशिक़ों को
हम-नवा भी दिल दुखाए ज़िन्दगी में

दर्द-ए-दिल आज 'आरिफ़' को हुआ क्यों
ज़ख़्म किस किस से छुपाए ज़िन्दगी में

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5 APR AT 17:46

ख़ुलासा कुछ मोहब्बत का किया होता
ज़हर फिर क्यों जुदाई का पिया होता

मिले हैं ज़ख़्म दुनिया से मुझे पल-पल
बिठा कर पास उनको भी सिया होता

हिक़ारत की नज़र मुझपर रखी तुमने
समझने का कभी मौक़ा दिया होता

मोहब्बत तो तुम्हारे दिल में अब भी है
मुक़र्रर वक़्त तो मुझसे लिया होता

वफ़ा 'आरिफ़' के ख़ातिर भी बचा लेते
वफ़ादारी से मैं भी फिर जिया होता

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3 APR AT 13:15

कौन आए हमसे मिलने अब रुलाने के बाद
कोई अपना घर नहीं है इस ज़माने के बाद

ज़िन्दगी चलती रही, रुकती रही है हर साल
मौत आती ही नहीं है ज़ख़्म खाने के बाद

बद-नसीबी भी हमारी रोज़ हँसती है हम पे
फिर रुलाती है हमें जम के हँसाने के बाद

राज़-दारी का सिला हमको मिला है हर बार
दूर हम से ही हुआ दिल, पास आने के बाद

दर्द अपना काश 'आरिफ़' भी छुपाए इक बार
याद आते हैं सभी फिर से भुलाने के बाद

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