ये है दुनिया इसे अपना न कहो
साथ वालों को पराया न कहो
वो तो मुझसे ही मोहब्बत जो करे
है हक़ीक़त इसे सपना न कहो
मेरी आँखें जिसे ढूँढें वो मिले
सब है दिखता मुझे अंधा न कहो
साथ मेरे कोई भी अब है नहीं
इश्क़ तो है मुझे तन्हा न कहो
पूरी मंज़िल नहीं आई है अभी
मेरी कोशिश को तो आधा न कहो
जब भी 'आरिफ़' से हो मिलना तो मिलो
गर बुरा है अजी अच्छा न कहो-
जब से सीखा है हुनर उल्फ़त का
तब से रखता हूँ जिगर उल्फ़त का
मेरा दिल भी तो हुआ है घायल
हो गया मुझ पे असर उल्फ़त का
जान जाओगे मुझे भी तुम सब
जाम पीओगे अगर उल्फ़त का
दिल का पंछी भी नहीं उड़ सकता
काट दोगे जो ये पर उल्फ़त का
इश्क़ करते हो तो मानो दिल की
मौका मिलता न दिगर उल्फ़त का
मिलने 'आरिफ़' को भी आते हैं सब
कब हुआ है वो मगर उल्फ़त का-
मोमबत्ती की तरह पिघलना भी इश्क़ है,
अपने ही जज़्बात से निकलना भी इश्क़ है।-
कब मिलेगी ये मोहब्बत आपकी
"ज़िन्दगी को है ज़रूरत आपकी"
पास बैठो आप मेरी जान अब
सुन ही लूँगा फिर शिकायत आपकी
नेकी करके ही मिलेगा अब ख़ुदा
सो गई क्या अब इबादत आपकी
दिल को मेरे भा गए हैं सिर्फ़ आप
चाहता हूँ बस मुरव्वत आपकी
दूर मुझसे हो गए हैं आप क्यों
ज़ख़्म देती है अदावत आपकी
आप 'आरिफ़' की तरह कहिए ग़ज़ल
अहले-फ़न में होगी इज़्ज़त आपकी-
दोस्त हमें हँसाते हैं, रुलाते हैं, सताते हैं, मनाते हैं
दिल की भीड़ भरी दुनिया में सबसे ऊपर समाते हैं-
तुम अभी से मुझसे इतना दूर-दूर क्यों हो,
पहले मैं ख़ुद को ज़रा सा कर्ज़-दार कर लूँ!-
वक़्त होकर भी मुझे आस नहीं है
हम-नवा क्यों अब मेरे पास नहीं है
जी रहा हूँ ज़िन्दगी आज यहाँ क्यों
इश्क़ की अब तो मुझे प्यास नहीं है
जिसने मेरा दिल दुखाया है अभी तक
ज़िन्दगी को उस पे भी यास नहीं है
ज़ख़्म गहरे हैं मगर याद नहीं कुछ
दिल में अब भी दर्द कुछ ख़ास नहीं है
लोग 'आरिफ़' से कहेंगे कि नहीं कुछ
दुनिया सब को साथ क्यों रास नहीं है-
ओ ख़ुदा सब पे अपनी नज़र करना
दूर दुनिया से सारा कहर करना
इश्क़ तुझसे सभी ने किया आख़िर
तू भी ख़ुश अब यहाँ हर बशर करना
हर ख़ुशी इनकी इनको मिले हर पल
इस दुआ में तू इतना असर करना
कितने ख़ुश हैं सभी साथ मिलकर के
बस ख़ुशी की तू इन पर लहर करना
धूप में आज 'आरिफ़' रहे बिल्कुल
छाँव का कल तू इस पर शजर करना-
हर हसीना के ग़मों से निकल कर देखा
इश्क़ हमनें इस तरह भी बदल कर देखा
ख़्वाहिशों को छोड़कर हर किसी को चाहा
हर किसी के फूल को फिर कुचल कर देखा
हो गए मशहूर आशिक़ मगर फिर भी हम
ज़िन्दगी में हमनें कितना सँभल कर देखा
दर्द-ए-दिल के बाद अपना नहीं कोई अब
हँसते-हँसते भी ज़हर को निगल कर देखा
अब मोहब्बत खो गई फिर कहीं 'आरिफ़'
जाते-जाते तक सभी से पिघल कर देखा-