ये जो हालात है मेरे कैसे उसको सुनाया जाए
जो समझना चाहता है सिर्फ उसको समझाया जाए
'मैं-तू-हम' एक दिन सब जुदा होने हैं
फिर ये बता किस बात का शोक मनाया जाए
अश्क अब बचे हैं चुनिंदा आंखों में
एक मसअले पर कब तक दरिया बहाया जाए
हम भी एक दिन ये हुनर सीख जाएंगे
तू एक दफा और सिखा ये दुख कैसे संभाला जाए-
#मौन_नही_मैं
फिर उनकी वापसी की उम्मीद जायज़ नही दिल
एक दफा तुने जिन्हें आँख से छलका दिया।-
तुमको मैं जान भी लेता तो क्या होता
मेरा ही अक्स आहिस्ता-आहिस्ता फना होता
इश्क़ फक्त एक दफा होता तो क्या होता
हर जनाजे़ के पीछे एक जनाज़ा होता
लौट जाता हूं रोज उन लम्हों में
ये खत ना होते तो भला मेरा क्या होता
मोहब्बत ही मोहब्बत होती जहां में तो क्या होता
मज़ीद करार होता या सब तमाम होता
तुम रक़ीब के नही होते तो क्या होता
क्या मैं तब भी लिख रहा होता?-
फिरसे दर्द को लफ़्ज़ों का अभाव है
हंसी मुसलसल होंठों पे छाए जा रही है
है इतनी बेरूखी मोहब्बत वालों के मिज़ाज़ में
शर्म चेहरा छुपाए जा रही है
एक और भूला लौटा है पुराने आशियाने में
कहता है शहर की कमाई खाए जा रही है
दिल - जबां - आँखें, बहुत भारी हैं
ये तो कलम है जो किस्सा सुनाए जा रही है
एक अजनबी से हम फिर मुस्कुराए हैं
फिर नयी मुसीबत गले लगाई जा रही है।-
मैं तुम्हें गुलाब नही दूंगी
दूंगी कई नीम के पौधे
जो वक्त के साथ मुरझाएगें नही
सिर्फ बढ़ेंगे
प्रेम की तरह
मैं नही दूंगी तुम्हें कुछ क्षण की खुशबू
दूंगी शीतल सदाबाहर छांव
जो रहेगी मेरे बाद भी
तुम्हारे बाद भी
हाँ, एक दिन समझ जाएगी दुनियां
बदल देगी प्रेम के प्रतीको को
कर लेगी सृष्टि से प्रेम
ये दुनिया
एक दिन।-
लकड़ी में समाया धुआं
सहेजे रखती है लकड़ी
अपना एक हिस्सा समझ
खुद एक हिस्सा बन
बेजान - खोखली
जबतक नही आती
लपटो की चपेट में
जीते जी बचाना चाहती है
आसमां को
दुष्ट धुएँ से
ठीक वैसे
जैसे
कई प्रेमिकाएं बचा लेती हैं अपने -
प्रेम
प्रेमी
परिवार और
परवरिश को
समाज से।
अवसाद को अपने अंदर समाकर
एक हिस्सा बनाकर।
-
आसमाँ पे हाथ उठाने से क्या होगा
सूखे पत्तों में पानी देने से क्या होगा
जिनसे साँसे थी, वो अब नम्बरों में दर्ज हैं
इस सरकारी निंदा - सहानुभूति - मुआवजों से क्या होगा
धूं - धूं जल रहे हैं अपने श्मशानों में
उसकी चौखट पे मत्था टिकाने से भी क्या होगा
सुना है एक और लहर की चेतावनी है
यार समझो, भैंस के आगे बीन बजाने से क्या होगा।-