तुम...सही हो,
क्यूंकि मैंने सही माना है तुम्हें।
तुम...मेरा आत्मविश्वास हो,
क्यूंकि मैंने आत्मा का सार माना है तुम्हें।।
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मेरे रक्त की एक-एक बूंद को
तंत्रिका तंत्र की हर एक डोर को...
सूक्ष्मदर्शी से देखोगी तो पाओगी
सिर्फ तुम्हें ही पाओगी..
- सचिन यादव-
तुम्हें देख कर धड़कने थम जाया करती है
मन में इक नई उमंग जग जाया करती है
हमे आपसे प्यार है, तन्हाइयाँ हमे बतया करती है-
हाँ, मैं पढ़ना चाहती हूं...
तुम्हें...!
हाँ, मैं लिखना चाहती हूं...
तुम्हें...!
हाँ, मैं कहना चाहती हूँ...
तुम्हें...!
हाँ, मैं सुनना चाहती हूँ..
तुम्हें...!
हाँ, मैं गाना चाहती हूँ..
तुम्हें...!
हाँ, मैं हंसाना चाहती हूँ..
तुम्हें...!
हाँ, मैं पाना चाहती हूँ..
तुम्हें...!-
जुबान ही सिर्फ जरिया होता है क्या
शब्दों को समझने का....
अगर मैं कहूं... मुझे तुमसे मोहब्बत है तो
इतने हैरान क्यों हो...??
सुनो ना.....कभी शराफत से आंखों में झांक कर तो देखो
हजारों अल्फाज न बिखरे तो कहना.....-
और शायद कुछ भी न दे सकूँ मैं तुम्हें
मगर एक स्वीकृति जरूर दूंगी
जो समाज कभी न दे सका
एक पुरुष को
हां, तुम रो सकते हो..!
जब कभी घिर जाओ
भयानक बेचैनियों या गमों से
मेरी गोद में सिर रख कर
तुम रो सकते हो..!
और मैं समेट लूंगी अपने आँचल में
तुम्हारी आंखों से गिरता हुआ हर दुःख
और शायद धोऊं भी न फिर कभी
अपना वो दुपट्टा..!-
तुम्हें क्या हुआ
किस बात से खफा हो
छोड़ गई मेरा साथ
ख्वाइश यही थी रहूं
उम्र भर तेरे साथ
तुम्हें क्या हुआ
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मैंने ख़ुद को गिरा के कई बार उठाया है तुम्हे..!
और तुमने तो गिरा हुआ ही समझ लिया हमें..!!
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" लो आज तुम्हें भी मांग लिया ख़ुदा से ,
कल रात में पूछ रहे थे क्या चाहिए दुआ से ? "-