आज तालाब में झांखकर देखा तो लहरें मचल उठी किताबों के पन्ने बिखरकर जो हवा के झोंके से उड़े थे उनकी याद आ गयी। याद आया जब भारत जल रहा था धर्म के नाम पर जब शोले भड़क रहे थे सन्देह के और लोग दंगे कर रहे थे मचाकर बवाल, याद आया जब लोग एक बलात्कारी को बचाने के लिए दे रहे थे उसे भगवान स्वरूप का नाम। जल रही थी आग,भड़क रही थी चिंगारी मर रहे थे लोग,रो रही थी वो साध्वी। घर उजड़े अनेक पन्नो की तरह उड़ा विश्वास आज फिर समाचार के तालाब में झांकने पर भारत में मची लहर,उमड़ा सैलाब।
जब हर तरह से लाचार होकर, सारी उम्मीदें टूटने के बाद, जब समझ नहीं आता कि ऐसा क्या किया जाये कि खोये हुए सपने वापस मिल जायें... तब उन सपनों को ढूंढते हुए एक अजीब लड़का रोज तालाब को अपलक निहारता है।