Niharika Karan   (© निहारिका)
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Joined 10 November 2016


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Joined 10 November 2016
8 MAR 2022 AT 13:12

स्त्रियां प्रेम में सिर्फ़ देना जानती हैं
या यूं कहें की प्रेम की पराकाष्ठा होती हैं स्त्री
अपने लिए किसी से कभी कुछ मांग नहीं पाती
ईश्वर की सबसे स्वार्थरहित कृति

वैसे लगता है मुझे कभी कभी
शायद ईश्वर भी तो स्त्री नहीं?
क्योंकि वो भी तो बदले में
कभी कुछ नहीं मांगता!

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20 JAN 2018 AT 11:40

जब दिल की कश्ती माज़ी के दरिया में उतर यादों के भंवरजाल में फँसती है, तब किनारा दूर होते हुए भी पास नज़र आता है।
तब 'जो डूबा सो पार हुआ' को सच मानने वाला एक अजीब लड़का...
सच में डूब जाता है!

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14 JAN 2018 AT 19:07

कुछ भी नहीं दरमियां सिवाय तकल्लुफ़ात के
चंद बातें थीं फक़त और वो भी जाती रहीं

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30 DEC 2017 AT 17:26

And you my love!
are the sunshine
entering my shady world
just like fireflies enter dark woods
and enlighten it
with their magical, floating light
making it look like a beautiful dream
and ensuring that fairytales exist.

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25 SEP 2017 AT 23:36

Usne kaha pyaar hai tumse
Aur yehi jumlaa-e-hairat ho gya...


#lostwordsmith

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15 SEP 2017 AT 13:55

as the daylight enters my room
and i try to open my eyes
my eyelids are too heavy to rise
they are drowning
under the weight of your dreams
my pillow-
it knows what my illusions were
and my heart skips a beat
i feel your presence
entwined with my memories
your scent stamped on my soul
it makes me smile
even if you aren't around

last night
love was around
my love
you were my muse
and today
you are my poetry

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12 JUL 2017 AT 15:30

जो फूल
अपनी शाख से टूट कर
गिर जाया करते हैं,
वो न चमन के ही रहते हैं
और न धूल के!

सूख कर मुर्झाया करते हैं;

वो फूल...
जीते-जी मर जाया करते हैं

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11 JUN 2017 AT 1:24

इश़्क में तेरे मैं कुछ इस कदर बर्बाद हुआ,
हर दर सजदा किया तुझे पाने को...

दर-दर भटका, टकराया,
टूटा और ख़ाक हुआ।

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4 MAY 2017 AT 10:28

एक अमलतास का पेड़
जो तुमने लगाया था,
हमारे आँगन के बीच...
आज तुम्हारे जाने के बाद
पीले फूलों से लदे हुए,
सभी की वाह-वाही बटोर रहा है;
नज़रें नहीं हटती हैं मेरी भी;
एक टक देखे जाती हूँ बस।

यकायक ख़्याल मेरे
भंग हो जाते हैं
मानो एक नींद से जैसे जागी हूँ मैं;
मानो इस पेड़ के फूलों की ओट में
छिपे हुए, चुपचाप देख रहे हो मुझे।

रंग प्यारे हैं मुझे
ये जानते थे तुम,
कहते थे रंग हमेशा रहने चाहिए,
मैं रहूँ चाहे न रहूँ;
कहो रंग भरती रहोगी न?

और उस अमलतास को देख,
मैं अपने क्षणभंगुर जीवन में
कुछ रंग भरने चल देती हूँ।

देख कर यूँ मुझे
जहाँ कहीं भी हो तुम,
खुश हो रहे होंगे...
है न?

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13 MAR 2017 AT 21:29

अगर होली के रंगों की तरह लोगों के रंग भी दिखाई दे पाते तो न जाने कितने रिश्ते टूट जाते और कितनों से मोह छूट जाते।

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