अपनी मंज़िल को पाने निकला ,
मैं जीत को गले लगाने निकला ,
मेरे सीने में एक आग सी लगी है ,
हर बुराई को मैं जलाने निकला ,
मेरा मज़ाक उड़ाते हो , उड़ा लो ,
मैं तुम्हारे होश उड़ाने निकला ,
भारत को जीताने की कसम खाई ,
उसी कसम को मैं निभाने निकला ,
जीत की ऐसी लत लगी "Virat" ,
हर किसी को अब हराने निकला ,
मैं अपनी मंज़िल को पाने निकला ...-
Pratik Raj Mishra
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Gazalkaar, Poet, Software Engineer, Patriot, Foodie.
आज के ज़माने में फ़िज़ूल का आदमी हूँ ,
क्य... read more
आज के ज़माने में फ़िज़ूल का आदमी हूँ ,
क्य... read more
Joined 26 May 2017
23 OCT 2022 AT 18:23
2 APR 2022 AT 1:03
टूट जाती है मेरी आस बस इक ही इतवार में
जाने शबरी ने कैसे उम्र काटी होगी इंतज़ार में-
23 FEB 2022 AT 15:58
पूछो मत तुम हाल मेरी बेताबी का
दिल पे ताला , पता नहीं है चाभी का-
3 NOV 2021 AT 0:05
जैसा बनाना चाहा, वैसी ही बन गई
मिट्टी कितना करती है कुम्हार पे भरोसा-
9 MAY 2021 AT 21:14
दुनिया में एक फरिश्ता सबसे जुदा देखा
जब भी मां को देखा , लगा की खुदा देखा-
23 APR 2021 AT 14:05
घूम रहे बुद्धिजीवी के भेष में
चूतियों की कमी नहीं है देश में-
7 FEB 2021 AT 22:26
If I could go back in time, I would have fucked up in a different way.
-
27 JAN 2021 AT 12:39
तुम्हारी ज़ुल्फें , मेरे हाथ , और रात
लबों पे लब , कायनात , और रात
आंखों से हो , सारी बात , और रात
रोज़ तुम , मेरे साथ , और रात-