लिखना सरल तो नही,
महज़ तत्क्षण, सहज है
घटनाओं के फलस्वरूप
केवल वैचारिक उपज है
मात्र साधारण प्रतिक्रिया,
प्रक्रिया परंतु असहज है
निःसंदेह पुरज़ोर प्रयास है
अभिव्यक्ति को दर्शाने का
अनकही कोई आवाज है
समझने के परे, समझ है
लिखना सरल तो नही
महज़ तत्क्षण, सहज है-
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तजुर्बा ज़िंदगी का निचोड़ देता हूँ
फ़क़त ... read more
हुआ इल्म सब सहने के बाद
तमाम ख़्वाब, दहने के बाद
चमक आँखों की, तुमसे ही
है नमी, अश्क़ बहने के बाद
बड़ी सादगी से, हाल है पूछा
हूँ ख़ामोश, तेरे कहने के बाद
अपनेपन का दम जो भरते थे
मिलते नही ,घर ढहने के बाद
हो गया क़त्ल, वो शख्स शायद
कुछ बरस, तुम में रहने के बाद
Dr. Rajnish kumar-
देखो तुम से ज़्यादा, तुम्ही से
इस कदर वाक़िफ़ हूँ ,अब मैं
तुमने खुदसे भी बयां न किया
राज़ वो भी है, मैंने सुन लिया
यूँ मुँह फेरने से क्या मतलब है
तन-मन, पावँ मेरी ही तरफ़ है
चलो ये बेरुख़ी भी माफ़ तुम्हे
सज़ा देंगे हमें संग गुज़ारे लम्हें-
परेशां हर शख्स मिला, क्या कहूँ
सोचता हूँ अपना गिला, क्या कहूँ
सवाल एक खंगालता रहता है, दिल को
उम्र भर की है वफ़ा, अब सिला क्या कहूँ
वहमो फ़रेब है, चीखो पुकार से बरपा
शोरोगुल में सच किसने सुना, क्या कहूँ
कबीला गुज़र गया रौंद कर मेरा आशियां
सदर पूछता है, क्यों हुए तबाह, क्या कहूँ
मुकर्रर वक़्त गुज़रा जहाँ में आखिर,'राज',
अब साथ कौन है खुद के सिवा, क्या कहूँ
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ज़िन्दगी आज फिर, मुझसे इक और सौदा कर
मेरा ख़्वाब लेकर, तू उसकी ख्वाहिश अदा कर
बख़्श हौसला उनको, जिनकी उम्मीद है कायम
ये ज़ख्म सकूँ है मेरा, बेसबब न इनकी दवा कर
प्यास, इश्क़,अमल सब रूह तलक उतर गया है
जलने को क्या है बाकी, चाहे जितनी हवा कर
शक्लोसूरत से है,यहाँ बुतों के दरम्यां रिश्ते,"राज"
कर रहम ज़रा, अब रूह को रूह का हमनवां कर-
ज़रा-ज़रा मैं हर रोज़ ही मरता रहा
सितम हर एक, बर्दाश्त करता रहा
हाय ! कभी रब में महबूब ना देखा
महबूब को ही, खुदा समझता रहा
झूठा वो नाम, उम्र भर जपता रहा
भूला राह-ए-मंज़िल, भटकता रहा
हरि बिन कौन बना आसरा,"राज"
जाने किसके पैरों में ,झुकता रहा !
Dr.Rajnish kumar-
तिल-तिल कर, मरदा रेहा
ज़ुल्म ,हर इक जरदा रेहा
हाय रब नु सजन न जान्या
सजना विच रब, लब्दा रेहा
चूठा ओह नाम जपदा रेहा
जाने कौन, लड़ फड़दा रेहा
मालिक बिन कोई ना,"राज"
होर ही पैरां, सिर तरदा रेहा
Dr.Rajnish kumar-
खुद ही, खुद की, ज़मानत करवाई है
वरना चाहतों की निज़ामत, दुहाई है
ज़हन ने इश्क़ समझा बस इक बुत को
कण-कण में नायाब अमानत समाई है
हर छह से इश्क़ जिसे, वही फ़रिश्ता है
उन्ही की बदौलत, सलामत अच्छाई है
शानो-शौकत कब तलक है, बरकरार
आख़िर इसकी ही क़यामत परछाईं है
तालीम ने तो जाहिल ही रखा, तां उम्र
बे-इल्म हुआ "राज" ज़ेहानत आई है-
आहें बेअसर, दुहाई बेकार जाती है
हर उम्मीद, तजुर्बे से हार जाती है
मोहताज, इतना ना हो कोई कभी
बिन तेरे, ये ज़िंदगी बेज़ार जाती है
देखा था ख़्वाब, जो फूलों से भरा
हसरतें वही, फ़क़त ख़ार खाती है
बेफिक्री हर दफ़े चुभी है दिल को
मगर निगाहें वहीं हर बार जाती है
कैसी गुज़र, हो रही बसर ,"राज"
साँसे अश्कों सी ज़ार ज़ार जाती है-
मिट गया आशियाँ, उजड़ गयी दुनिया
दिल ने बसा लिया, फिर से नया जहाँ
यादों की भूल-भुलैया,
आँखे चाहे हुई दरिया
यकीं मानो, कसम से
संग जीने का है ज़रिया
हो जाते कैसे फ़नाह, बाकी थे इम्तिहाँ
दिल ने बसा लिया, फिर से नया जहाँ
वही लम्हों का ख़ज़ाना है
रोज़ाना उन्हें ही बिताना है
यकीं मानो, कसम से
ये भ्रम, सच से सुहाना है
नाकबूल अर्ज़िया, रंग कुछ लाई दुआ
दिल ने बसा लिया, फिर से नया जहाँ-