#जीवन
बंद कर लोचन सकल ये दृश्य देखना चाहता हूँ,
छण एक बीतता है नहीं की तंद्रा टूटती जाती है।
उदित रवि प्रारम्भ हुआ कर दोनो से धन का अर्जन,
देव यही प्रारब्ध यही है धन अर्जन फल मृदु गर्जन।
है लक्ष्मी जब तक वाम पक्ष में सम्मान सकल ही मिलता है ।
है अधिक प्रवीण पर वित्तविहीन तो संग कोई ना दिखता है ।
किंतु कथा ये नहीं नयी ना ही ये सत्य नया सा है,
है द्रव्य सुवर्ण इस लोक के केवल, बाद ना सिक्का चलता है ।
फिर बाद ना सिक्का चलता है, कर्म फलित हो खिलता है,
कर्म प्रधान है जीवन पर मन का पहिया ना रुकता है ।
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3 DEC 2019 AT 17:22
2 JUL 2021 AT 0:35
हज़ार गांठें और पैंतीसवीं वर्षगांठ
(शादी की सालगिरह पर पढ़िए आपबीती)
अनुशीर्षक में-
15 JUN 2019 AT 13:01
पल में "है" को "था" में बदल देता है
ज़िन्दगी जीवन व्याकरण कुछ यूँ सबको समझा देता है-
11 MAR 2020 AT 18:39
जीवन से ऊब कर
व्यक्ति मृत्यु की ओर दौड़ता है
लेकिन मैं जानती हूँ
कि मैं मृत्यु से भी ऊब जाऊँगी एक दिन
इसलिए
मुझे तलाश है उस संसार की
जो जीवन और मृत्यु के उस पार है
क्योंकि
इस पार तो केवल दो ही चीजें हैं
श्वासों का बोझ और मृत्यु का भय-
23 APR 2019 AT 8:34
कहाँ जटायु रावण से अब लड़ता है
नहीं लखन अब राम के पीछे चलता है।
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12 MAY 2019 AT 13:51
पिता कहते थे
जीवन से जुड़ा पहला आदमी माँ की तरह सुन्दर होता है !-
6 MAR 2019 AT 17:10
यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है
- दुष्यंत कुमार
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