Anupama Jha   (© Anupama Jha)
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Joined 7 March 2017


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Joined 7 March 2017
15 MAY 2022 AT 7:42

नमी आँखो की, खुद से छुपा रही हूं मैं ,
हुनर को अपने, इस तरह दिखा रही हूं मैं ।

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15 JAN 2022 AT 11:18

दिल की बातें लिखी
और खत खुला रहने दिया
था न पर्दा कोई ज़माने से
सुख दुख का मैंने हिस्सा किया।
न बनती थी बातें
न हँसते थे लोग
हाल संदेशा पहुँचाने का
लोगों ने मुझे ज़रिया किया।
गुज़रा वक़्त,
खतों का मौसम बदला
बदले लिखनेवाले,
मैं बस अब किस्सा हुआ ।
-©अनुपमा झा





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2 OCT 2021 AT 21:18



ढाक, शंख ,की आवाज़
अपने संग लाया है।
हरसिंगार लगे हैं झड़ने
छोटे होते दिन पर
लंबी रातों का साया है।

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1 JUL 2020 AT 16:15

मन का आँगन ,लीपे बैठी हूँ
देहरी पर दीप जलाए बैठी हूँ।

उम्मीद वाली जुगनुओं को
आँखों में सजाए बैठी हूँ।

उमस भरे दिवस के अवसान पर
बावली हवाओं को संभाले बैठी हूँ।

नेह सागर से कितने ही
यादों के सीप बटोरे बैठी हूँ।

आ जाओ अब कि मरु में
गुलमोहर,अमलतास के रंग लिए बैठी हूँ।
©Anupama Jha



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6 JUN 2019 AT 11:53

ज़ख़्म सूखा और धरा को हरा होना चाहिए

पानी आँखों से नहीं, नदियों में बहना चाहिए

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16 DEC 2018 AT 12:05

जरूरी नहीं
सब गोरी स्त्री सुंदर हो
कुछ काली भी होती है
मन के मिट्टी पर
कल्पना के कपास उगाती है,
और
उड़ा देती है
अपने शब्दों को
फाहे में संभाल
आसमां की ओर
कभी
संभाल लेता है आसमां
उन वजूदों को
कभी
बरस भी जाता है
आदतन
और फिर
दब जाती हैं
हो जाती हैं भारी
वो सुंदर ,काली स्त्री.....

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14 DEC 2018 AT 20:35

प्रेम किसी को गुलाबी,
किसी को आसमानी दिखा,
मैंने जब भी देखा यह मिट्टी सा दिखा।
भुरभुरा नहीं,भंगुर नहीं
सशक्त,सबल
सारी भावनाओं का भार
उठाते दिखा.....

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29 AUG 2021 AT 11:17

भर देती है
उम्मीदों वाली -धूप

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28 AUG 2021 AT 11:14



Cool breeze in the sultry weather

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11 AUG 2021 AT 12:11

(हाइकु)

जीवन रेखा
अपनी मनमौजी
चलती वक्र

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