गुरुदेव,
प्रति वर्ष की भाँति इस वर्ष भी गुरुदेव को नमन करते हुए कहता हूँ, आपका सहृदय धन्यवाद जो आपने एक अंतर्मुखी प्रभंजनों में संघर्षित बालक के उन कुछ प्रतिभानों को प्रेरित किया जो मेरे लिये चिरकालीन रूप से कल्याणकारी हुआ ।
धन्यवाद की आपने मुझे शिष्यत्व, ममत्व, महत्व दिया।
चरण स्पर्श-
Cybersecurity professional.
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एकाकी मनन !
हम है आज के युवक, परीक्षित, परिष्कृत, एवं परिमार्जित !
भूल गए सब याद रहा बस - मंदिर वहीं बनाएँगे।
पर बीस कदम पर मदिर है एक वहाँ कभी ना जाएँगे॥
कंठी माला की कौन कहे अब कृत्रिम भजन बजाएँगे।
मन से होती है भक्ति ये सोच के खा सो जाएँगे ॥
एक है ईश सदैव से ही, इस बात पे ज़ोर नही देंगे ।
और तुम हो वैसे हम ऐसे इसमें तन-मन सुलगाएँगे ॥
सुनो अभी भी समय शेष है, इष्ट भजो भजते जाओ,
चरण पकड़ कर शरण गहो आनंद करो या दुःख पाओ ॥
परीक्षितः tested, परिष्कृतः refined, परिमार्जित, redesigned !-
छुटकी !
नव जीवन का आरम्भ हुआ जब परिणय सूत्र में गये बंधे ।
फिर भोर भयी जब किया विदा थे भारी हृद सब गले रुँधे ॥
चेहरा दीप्त प्रकाशित था अश्रु की आभा भाती थी !
नयन सजल सब भावभीन ना मुख से कुछ कह पाती थी ॥
लेकर अपना कोलाहल बाहों में सिमटे दूर हुई,
दीप सदन का ज्योति नयन की गृह से दूर विलुप्त हुई ॥
देखा जब तक दिखी छवि क्या अद्भुत रूप धरा था उस दिन ।
छोटी बिटिया घर की गुड़िया देवी सी अनुपम थी उस दिन ॥
मैंने देखा ईश्वर को जाते जाते नयनों में उसके ।
सुखी रहे है यही विनय सत चित् आनंद हृदय में उसके ॥-
अभिमन्यु
आज अभिमन्यु चला है आख़िरी गंतव्य को
आया रथ पर पार्थ पुत्र रण में महा विध्वंस को ।
जाए दृष्टि तक जहां पर शत्रु के मेले लगे,
किंतु भय क्या उसको जिसके हरि स्वयं आगे चले ।
वीर अभिमन्यु की आयु बीस से कुछ कम ही है ।
टिक ना पाता कोई चाहे भट विकट कितना ही है ।
व्यूह अंदर व्यूह मन्यु भेदता ही जाता था,
शत्रु चारों ओर से कोई निकट ना जाता था ।
और फिर जब व्यूह के अंतः पटल पर पहुँचा वो,
आगे जाने राह क्या, बाहर को जाना कैसे हो ?
लेके रथ का चक्र फिर सिंह शत्रु हृद टटोलता,
क़िस्में साहस पैर रक्खे मूक मुख ना डोलता ।
घेर कर मारा सभी ने अँतोगत्वा एकसाथ,
एक बालक से लड़े जब सात राजा एक साथ ।
धर्म शील थे धर्म शून्य सारी यही रणनीति थी ?
सोचने की बात है ये जीत कैसी जीती थी ?-
अंश
प्रश्न: पुत्र कैसा हो ?
उत्तर:
ममता धाए माँ धरे ध्यान तब कोमल करुण सुभाषी हों ।
जब आए समर फिर कर प्रणाम नित आयुध के परिभाषी हों ।।
सुत प्रभाव में स्तम्भ सदन का सुत स्वयं तात अनुयायी हो ।
हो स्वभाव से मृदुभाषी, संयमी व स्वाभिमानी हो ।।
पुत्री कैसी हो ?
उत्तर:
और सुता वह जो स्वरूप माता के सनातन रीती की ।
सुता सृजन में स्वयं ब्रम्ह और सुता धरातल प्रीति की ।।
एक सुता वह सीता थी और एक सुता थी सावित्री ।
मंत्रारंभ और मंत्र जप में है प्रधान माँ गायत्री ।।-
#जीवन
बंद कर लोचन सकल ये दृश्य देखना चाहता हूँ,
छण एक बीतता है नहीं की तंद्रा टूटती जाती है।
उदित रवि प्रारम्भ हुआ कर दोनो से धन का अर्जन,
देव यही प्रारब्ध यही है धन अर्जन फल मृदु गर्जन।
है लक्ष्मी जब तक वाम पक्ष में सम्मान सकल ही मिलता है ।
है अधिक प्रवीण पर वित्तविहीन तो संग कोई ना दिखता है ।
किंतु कथा ये नहीं नयी ना ही ये सत्य नया सा है,
है द्रव्य सुवर्ण इस लोक के केवल, बाद ना सिक्का चलता है ।
फिर बाद ना सिक्का चलता है, कर्म फलित हो खिलता है,
कर्म प्रधान है जीवन पर मन का पहिया ना रुकता है ।
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प्रिय गुरुवर,
गुरु पूर्णिमा के पावन दिवस पर
प्रति वर्ष की भाँति इस वर्ष भी
हम अपना आभार प्रकट करना चाहते हैं !
धन्यवाद,
हमारे जीवन को दिशा देने के लिए
हमारे ऊर्जा को दिशा देने के लिए
हमारे कठिन समय में बात करने के लिए ।
धन्यवाद शब्द छोटा है
पर आभार के भाव से भरा है ।
आशा है आप कुशल मंगल हैं !
और सदैव प्रसन्न रहे
यह कामना भी है ।
आपके अनेक शिष्यों
में से एक शिष्य,
- अंकित-
क्रिकेट खेलने वाला दिन !
दिन की शुरूवात
तड़के हाथ मुँह धोकर निकलने से होती है ।
सुबह शांत मद्धम हवा चेहरे पे थपकी देती है,
मन में आगे होने वाले खेल की अनंत सम्भावनाएँ
और कदम बढ़े जाते हैं ।
तब तक,
जब तक आगे खेल का मैदान नही आता ।
खेल शुरू
जोश हर घड़ी बढ़ता है,
हर ओर से हो हल्ला हर पल कुछ नया..
आशाएँ ! यथार्थ ! रोमांच !
वापसी
का रास्ता और फिर वही मद्धम हवा।
शरीर में होती हल्की सनसनाहट
जो अभी अभी बीते खेल की वजह से है ।
मन शांत है, हार या जीत से फ़र्क़ नही !
एक और सुबह अच्छा क्रिकेट खेलने की संतुष्टि ।
हर जश्न से ऊपर !
क्रिकेट !-
#आनंद
एक बड़े से कमरे में बैठे लोग,
जहां कोई किसी को नही जानता ।
एक कमरे में कई दुनिया एक साथ पूरी गति पर हैं ।
सब अपनी धुन में,
सब अपनी व्यवस्था में ।
तभी, कमरे में एक ओर से श्री शब्द चल निकला...
देखते ही देखते सबके मुख में
और सबके हृदय में मधुर गुंजन होने लगा ।
श्री लय पर सबके तन झूमने लगे..
हाथों से हवा में आकृतियाँ बनाते लोग
जो अब तक अकेले थे, साथ हो लिए..
कमरे में जहां शांति थी
अब लयबद्ध गायन है..
कितना अद्भुत ?
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