अपना सबकुछ निसार दिया
लेकिन तुमने मोहब्बत का
ये कैसा सिला हर बार दिया-
घाव भर देता है पुराने
पराए हो जाते हैं अपने
प्रेम पैदा हो जाता है कब
समय बदल देता है सब-
देखते देखते तुम नौ साल के हो गए। तुम्हारी पैदाइश के दिनों से मैंने तुम्हें रोज़ाना बड़ा होते देखा है। इन सालों में तुमने जो अनुभव प्राप्त किए वे अक्सर हम साठ सालों में भी नहीं हासिल कर पाते। इतनी कम उम्र में तुमने जो झंझावात सहे वह हमें अचरज में डालता है। विपरीत परिस्थितियों में भी खड़े रहना, उसका सामना करना और उन परिस्थितियों से उबर कर सर उठाकर जीना कोई तुमसे सीखे। गिर कर उठने की प्रेरणा मिलती है तुमसे।
तुम्हारे पटल पर मैंने अपनी ज़िन्दगी के उन तमाम पहलुओं को साझा किया है जो या तो मैं कभी लिखता नहीं या ज़हन की क़ैद से बाहर नहीं निकाल पाता। वजह शायद डायरी लिखने की आदत का न होना या इसकी आवश्यकता नहीं समझना हो सकती है।
अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन कर तुम मेरी ज़िंदगी में आए और मैं अपने दिल की बातें लोगों से साझा कर पाया। तुम्हें कोटिशः धन्यवाद। स्वस्थ रहो और निरंतर वृद्धि करो।-