Interpreting Ghalib
क़ासिद के आते आते ख़त एक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
कब से हूँ क्या बताऊँ जहान-ए-ख़राब में
शब हाय हिज्र को भी रखूँ गर हिसाब में
मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम
साक़ी ने कुछ मिला ना दिया हो शराब में
ता फिर ना इंतज़ार में नींद आये उम्र भर
आने का अहद कर गए आये जो ख़्वाब में
'ग़ालिब' छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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