Sudhanshu Shekhar   (सुधांशुशेखर)
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कुछ अनकही, कुछ अनसुनी कहानियाँ
Joined 28 August 2016


कुछ अनकही, कुछ अनसुनी कहानियाँ
Joined 28 August 2016
6 HOURS AGO

जैसे हो फैला हुआ सहरा
गर तुम आ जाओ इक बार
हो जाए ये खुशियों से भरा

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11 HOURS AGO

Interpreting Ghalib
क़ासिद के आते आते ख़त एक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में

कब से हूँ क्या बताऊँ जहान-ए-ख़राब में
शब हाय हिज्र को भी रखूँ गर हिसाब में

मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम
साक़ी ने कुछ मिला ना दिया हो शराब में

ता फिर ना इंतज़ार में नींद आये उम्र भर
आने का अहद कर गए आये जो ख़्वाब में

'ग़ालिब' छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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22 APR AT 21:26

तुम जो हो मेरे ख्यालों में

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14 APR AT 17:16

शहर दर शहर

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9 APR AT 10:42

नव वर्ष की सौगात
सुख सम्पदा की बरसात
शुभ हों सबके दिन और रात

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7 APR AT 8:42

बेहद खुश नज़र आई तुम
...
उसके साथ

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7 APR AT 8:34

रहे हम मर के

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7 APR AT 8:32

ख्याली पुलाव पके

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7 APR AT 8:30

हम बहते गए
आरोप भी लगे
हम सहते गए

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7 APR AT 8:26

सुनाई नहीं देती
अब धड़कनें भी

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