विशुद्ध जिजीविषा   (✍️©® अविनाश)
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एक साधारण इंसान जिसके खास बनने की चाह उसके आम होने के यथार्थ से समन्वय बैठाये चलती है।
Joined 7 November 2018


एक साधारण इंसान जिसके खास बनने की चाह उसके आम होने के यथार्थ से समन्वय बैठाये चलती है।
Joined 7 November 2018

और होली,
प्यार में रंगी
और हो ली,
रंगों से प्यार
तो होली,
प्यार का रंग
मिले तो होली।

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केशव, गुडाकेश,
ये कैसा दौर है जो कर्म की पुकार हो
और कैसी ये दौड़ है और स्वधर्म की गुहार हो
चले न मन पे ज़ोर है तो व्यर्थ ना विचार करो
कुछ रहा मुझे झकझोर है गांडीव को स्वीकार करो
दंभ का कर्णकटु शोर है देखो, मैं सर्वत्र व्यापत हूँ
फिर भी सन्नाटा हर ओर है! सहज कर्म से ही प्राप्त हूँ।
केशव, मन शून्य से सराबोर है। गुडाकेश, मैं कर्म से ही प्राप्त हूँ।

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हो मैदान-ए-जंग में
तो तलवारें खनकेंगी
डटे रहो ऐड़ी चोटी ले
कि बाजियां पलटेंगी।

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मैं भयभीत
जब दर्पण अतीत
होश नहीं हुआ व्यतीत
वो शत्रु था या कोई मीत
जख्म हरा, है होता प्रतीत
मैं योद्धा हूँ है लड़ना ही जीत
नहीं मैं नहीं, अब होता भयभीत।

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कुछ अपने छूट जाते हैं
सपनों की तलाश में
कुछ सपने टूट जाते हैं,
है जीवन मधु विष का संगम
कुछ तैरते हैं धारा-प्रवाह
कुछ तैरते डूब जाते हैं।

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बिना लिखे
कलम में पड़ी स्याही
और
मन में पड़ी बातें
सूखने लगती हैं।

सुनो,
लिख दिया करो।

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बेमन मेरा सहारा मत बनो
सुनो मुझे बेसहारा कर दो

बहुत गहरी हैं आँखें तेरी
आओ मुझे किनारा कर दो

देखनी है शुरुआत फिर से
दो अजनबी दोबारा कर दो

ये शौक, ये रंगीनियां बेरंग
मेरा बदरंग गुजारा कर दो

जंजीरें जो घुली हैं हवा में
मुझे रिहा फिर यारा कर दो

तमन्नाओं की चाहत चादर से
दो वही चादर बेचारा कर दो।

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प्रेम भले ही भूख मिटा न सके परंतु ये भूख लगने भी कहाँ देता है।

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कुछ ज़ख़्म आज भी कहाँ भरे हैं
ये बात और है कि दिखते नहीं हरे हैं

फिक्र नहीं मंज़िल की मंजूरी का
सूरज निकला तब से सफ़र में पड़े हैं

शेर चाल सुकून देता है आँखों को
हम भी अमूमन जंग अकेले ही लड़े हैं

हक़ीक़त को गले लगाये फिरते हैं हम
कुछ ख़्वाब कब से दरवाजे पर खड़े हैं

क‌ई बार लेती है ये ज़िंदगी आड़े हाथों
हम भी बेख़ौफ़ अपनी ज़िद पर अड़े हैं।

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She quipped, "There is no future in this relationship."

He wanted to say, "There is a ship in this relation today itself."

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