विशुद्ध जिजीविषा   (✍️©® अविनाश)
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सुनो पार्थ, मृत्यु अंतिम छोर नहीं!
Joined 7 November 2018


सुनो पार्थ, मृत्यु अंतिम छोर नहीं!
Joined 7 November 2018

न फख्र हुआ न हुई फिक्र
जिंदगी तेरे रहे ताउम्र हम
तुझे न फर्क कोई न जिक्र।

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He asked her to explain
She did, reducing some pain!

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बेच दिए थे माँ-बाप ने सारे गहने
आँगन ताक रहा है टुक-टुक रस्ता
औलाद गयी पार सात समंदर रहने।

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देखो,
मुझमें जीवन का समावेश ऐसे है
अग्नि में ताप का आवेश जैसे है।।

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सूखे पुराने फूल
मकड़ियों के जाल
बरामदे पर फैले धूल
जो गुजार दी बिना जिये
चुभते हैं जैसे बिखरे हों शूल‌।

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न खुशबू, न रंग, न रूप
जी ले जो मिले
जाने कब ढ़ल जाए धूप।

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कठफोड़वे और पेड़ में
गड़ेरिया और भेड़ में
चिड़ीमार और बटेर में।

सामंजस्य जरूरी है
ग़रीबी और बाजार में
इश्क और इज़हार में
जीवन और व्यापार में।

सामंजस्य ज़रूरी है
कविताऐं और उन
कलम के ठेकेदार में
लूट और चौकीदार में
हाँ, ये जरूरी है
हक और हकदार में।

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Leave me slow
I promise
I shall be back
With bright Sun
And melting snow
For now
Let me go.

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When you breathe in my arms I feel alive, aah! is that love!?

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कट जाएगा अंधेरा जो एक तुम्हारा आगोश हो
तू कलेजा रहना फिर चाहे दुनिया फरामोश हो।

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