QUOTES ON #उद्घोष

#उद्घोष quotes

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15 AUG 2020 AT 10:44



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19 MAR 2021 AT 15:51

शेष गए अधिशेष है बाकी।
कल कल क्षण क्षण बीत रहा,
जीवन का ये पल है व्यापी।
हुआ उद्भव, उद्घोष वहीं, कि
जन्म हूॅं, अवतार नहीं।।

हुआ पुष्पण् एक नव जीवन का।
जो छाया मौसम था रंगो का।
उल्लास भी था, थे उमंग वहीं, कि
जन्म हूॅं, अवतार नहीं।।

कई आए कई बीत गए, हैं कई
अभी आने को बाकी।
निर्मल सा बहता ही चलूं,
बन जीवन के सुख दुख का साथी।
आगाज है ये, है अंत भी कहीं, कि
जन्म हूॅं, अवतार नहीं।।

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22 JUL 2019 AT 19:28

"अपनी बात करना" कितना आसान है।
कभी औरों की "जुबान, बन कर देखना,
"अपनी बोझ सबकी" अपने ही सर पर है
कभी "दूसरों पर अहसान" कर के देखना ।।
सपने तुम्हारे कितने भी बड़े हों,राह में
पड़े खाली कटोरियों से अपनी आँखें मत सेकना,,
तेरी हवेली चाहे कितनी भी बड़ी हो,
एक बार किसी झोपड़ी का मेहमान बनकर देखना,,
तेरा पेट चलता हो,तो उस जलती पेट के लिए,
एक बार रातों की नींदों में
बेबस भूख की इम्तेहान बनकर देखना ।।
अमीरी अगर तलबगार हो तेरा तो, सच में
असहाय पीड़ितों के दर का भगवान बनकर देखना,,
दुवाएँ तो लाख लगती है, मंदिरों मस्जिदों में,
पर किसी कुंठित लाचार को सन्मान देकर देखना ,,
अपनी पहचान के लिए दुनिया मरती है, सजदे में
पर तुम किसी अजनबी का पहचान बनकर देखना,।।

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3 FEB 2019 AT 9:45

#उद्घोष

नव नवल-कंठ, मन अतुर पंख, तन उलझ-पुलझ, कान बजत शंख..

नित नयन स्वप्न, कर अथक प्रयत्न, मिले मनकी मुराद, कर सारे यत्न..

हर राह कठिन, न कोई राह आसान, तू छू सकता उसे, जहाँ उड़े आसमान..

तू दिव्य ज्योति, बन परम ज्योति, तू चमक दमक, महके हर सोती..

तू जलधि लाँघ, मत जल्दी लाँघ, कर देर सवेर, चीर दुर्योधन जाँघ..

ना चीर हरण, बन पीर हरण, मन की वेदना, तन का हरण..

एक कुटिल नारि, जैसे कुटिल ब्याध, मत पड़ तू फेर, सिर्फ लक्ष्य साध..

सब भूल भूलैया, मन रास रचैया, करे जादू टोना, मत सुनना भैया..

जीवन का लक्ष्य, है अंतिम छोर, मत डिगना कभी, ना टूटे डोर..

उड़े जैसे पतंग, तुम उड़ना वैसे, बन करके मतंग, तुम मिलना सबसे..

एक आखिरी ख्वाहिश़, बनकर जग में, रहना संग सबके, बहना रग में..!

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1 NOV 2021 AT 10:48


नवनीत कपोल नयन चंचल तुम चन्द्र-सी छवि हो मदने!
उद्धोष करें सब तारक-दल तुम चन्द्र-सी छवि हो मदने!

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26 JUL 2019 AT 22:39

संगी-साथियों की तरह
मैंने कभी मेरी कविताओं,
उद्घोषों,और महत्वाकांक्षाओं के
भविष्य की चिंता नहीं की...
क्योंकि मैं भलीभांति जानता हूँ कि
जटिल उद्घोष,
निजी महत्वाकांक्षाऐं,
और कविताऐं रहेंगी हमेशा,
जर्जर गठ़री में,
आशा के वफादार पैबंद की तरह !
जिसके गर्भ में रखी
महत्वाकांक्षाऐं मेरी निजी हैं ,
कविताऐं हैं आत्मज् समाज के लिऐ
जो है पूर्णत: काल्पनिक गठ़री के बाहर ;
और उद्घोष और वक्तव्यों का
कहना तब ही सार्थक है
जब सुनना,
प्राथमिकताओं में हो,
औपचारिकताओं में नहीं...!!

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दीये का जलना
उद्घोष करना है
कि रौशन करोगे
तो जलते रहना है।
दीये से लिपटकर
बाती का संग होना
उद्घोष करना है
कि प्रेम में रहना है
तो जलते रहना है।
घी व तेल का जलना
और स्वयं का अर्पण
उद्घोष करना है
कि जुड़ कर रहना तो
तिल तिल के जलना है।

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18 AUG 2023 AT 16:02

सर्वदा देशप्रेम का
करते रहे उद्घोष ।




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21 AUG 2018 AT 12:54

ईश्वर !!!
तुम्हारा रूदन...
उद्घोष था,,,, (उदघोष पढे़)
मेरे पितृत्व का...
तुम्हारी मुस्कुराहट देख
खिलखिला उठी जिंदगी मेरी
तुम्हारा स्पर्श ....
ताउम्र मुझे....
गुदगुदाता रहेगा
तुम्हारे कदम....
जब कभी भी लडखडाए...
मैं उस वक्त थाम लुंगा
हाथ तुम्हारा...
हाँ,,,, मैं वादा करता हूँ
और,,,, तुम...
तुम करो ये वादा
ना करोगे कभी स्त्रीत्व का मान-मर्दन
बनोगे सहारा,,, बेसहारों का
रहोगे तत्पर,,,, देश-सेवा में
करोगे नाम रोशन....
मेरा..... ||

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30 JAN AT 20:44

सातों गगन में गूँजे, ऐसी जयकार उठाते हैं।


शत्रु का हृदय चीर दे जो, ऐसा उद्घोष लगाते है।।


करके सिंह गर्जना, अरिदल का दिल दहलाते हैं।


आओ भारत माता की रक्षा में, अपना शीश चढ़ाते हैं।।

देवेन्द्र पनिका

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