ओ प्रिय!
बस तेरे नाम की खुशबू है
मेरी तहरीर में अब-
में तुमसे, मेरा जीवन तुमसे
जीवन की कस्मकस को आशियाना है तुमसे
इस जीवन को मिला वो श्रृंगार, है तुमसे
इस ना समझ की समझ है तुमसे
गुस्से में भी मिला वो प्यार, है तुमसे
कांधे पे बैठकर मेले की हर खुशी है तुमसे
हर डगर पे इन नन्हे हाथों को मिला वो सहारा, है तुमसे
मेरी मंज़िलें है तुमसे
जीवन पथ को मिली वो रोशनी, है तुमसे
कुछ अन कही सी, कुछ अनसुनी सी बातें है तुमसे
जो कभी न जता पाया वो प्यार, है तुमसे
अब कुछ दूरियाँ है तुमसे
शायद कभी पुरे होंगे ये फासले, है तुमसे
में तुमसे, मेरा जीवन तुमसे
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कोइ आया है मुद्दत बाद मुझे सुलाने
गुनगुनाता है मोहब्बत का गीत
कुछ इस कदर
जैसे मां गुनगुनाती हो कोई लोरि-
महकती हूं
तेरी बदन की
ख़ुशबू में,
जैसे मैं तेरी
पश्मीने की लोई हूं-
हजार मजबूरियां थी उसको ना करने की
मैं उस नादान को एक सच्चा झूठ भी न बोल सका-
यक़ीनन
मैं जानता हूँ
तेरे लौट के आने पे खुशी होगी मुझे
तेरे चले जाने के गम से ज्यादा
यक़ीनन
उससे ज्यादा कुछ है दुनिया में तो
वो है तेरे लौट के आने का इंतज़ार-
मेरे झूठे वादों की गठरी है मेरे सर पे
मैं चाहता हूँ की कुछ खुल के गिर जाए-
She resides so deep in me
Whenever I try to pop her
My heart says Stack Underflow,
Whenever I try to push someone
My heart says Stack Overflow-
कब आप तुम बने, कब तुम से फिर आप बने
ओ पिया, झिझक होनी लगी है अब आप से मिलने में
कब दिने रात बने, कब रात से फिर दिन बने
ओ पिया, झिझक होने लगी है मुझे शाम के ढलने में
कब अजनबी हमसफ़र बने, कब हमसफ़र से अजनबी बने
ओ पिया, झिझक होने लगी है मुझे तुझे याद करने में
कब कलि फूल बने, कब फूल से फिर कलि बने
ओ पिया, झिझक होने लगी है मुझे तेरा इंतज़ार करने में
कब सच झूठ बने, कब झूठ से फिर सच बने
ओ पिया, झिझक होने लगी है मुझे तेरा ए'तबार करने में
कब 'अनिल' शायर बने, कब शायर से 'अनिल' बने
ओ पिया, झिझक होने लगी है मुझे तेरा नाम लिखने में-