कब आप तुम बने, कब तुम से फिर आप बने
ओ पिया, झिझक होनी लगी है अब आप से मिलने में
कब दिने रात बने, कब रात से फिर दिन बने
ओ पिया, झिझक होने लगी है मुझे शाम के ढलने में
कब अजनबी हमसफ़र बने, कब हमसफ़र से अजनबी बने
ओ पिया, झिझक होने लगी है मुझे तुझे याद करने में
कब कलि फूल बने, कब फूल से फिर कलि बने
ओ पिया, झिझक होने लगी है मुझे तेरा इंतज़ार करने में
कब सच झूठ बने, कब झूठ से फिर सच बने
ओ पिया, झिझक होने लगी है मुझे तेरा ए'तबार करने में
कब 'अनिल' शायर बने, कब शायर से 'अनिल' बने
ओ पिया, झिझक होने लगी है मुझे तेरा नाम लिखने में
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