मुझ तनहा अकेले इंसां को हुजूम का संगी कर दिया
एक तुम्हारे प्रेम के रंग ने कुछ यूँ सतरंगी कर दिया-
जब भी लिखने मैं बैठूँ नाम तेरा लिख जाऊँ
लब खोलूँ तो प्रेम सहित तेरे गुण मैं गाऊँ
जग में कोई नहीं मेरा तेरे सिवा
कि सबसे प्यारा तू है मेरे राम
जनक-दुलारी लक्ष्मण और हनुमत के संग आओ
मेरे मन की अवध पुरी में आकर बस जाओ
मुझको भाता नहीं अब कोई फ़ासला
कि सबसे प्यारा तू है मेरे राम-
अधर गुलाब हैं मुखड़े पे चाँद रक्खा है
प्रतीत होता है अम्बर से कोई उतरा है
अनादि काल से बोझिल घनेरी पलकों पर
बता दो आज मुझे बोझ मदने किसका है
चिकुर घनेरे हैं कुंतल हैं श्याम-वर्णी हैं
चिकुर के मध्य सुगंधित पुष्प-गजरा है
तुम्हारी देह सुगंधित है और इतनी है
कि तुमको सोचने-भर से ही मन महकता है
कि जिसने तुमको न देखा हो' दो घड़ी अपलक
नयन-दो उसके हैं निस्तेज और' वो अंधा है-
अधर गुलाब हैं मुखड़े पे चाँद रक्खा है
प्रतीत होता है अम्बर से कोई उतरा है
अनादि काल से बोझिल घनेरी पलकों पर
बता दो आज मुझे बोझ मदने किसका है
चिकुर घनेरे हैं कुंतल हैं श्याम-वर्णी हैं
चिकुर के मध्य सुगंधित पुष्प-गजरा है
तुम्हारी देह सुगंधित है और इतनी है
कि तुमको सोचने-भर से ही मन महकता है
कि जिसने तुमको न देखा हो' दो घड़ी अपलक
नयन-दो उसके हैं निस्तेज और' वो अंधा है-
बनाओ रील करके फ़ील हमको आज धड़कन में
निखार आएगा पक्का है तुम्हारे रूप यौवन में
नगर की भीड़ मिलने में किसी भी भाँति बाधक हो
मिलो तब हो अगर सम्भव किसी भी कुञ्ज- कानन में-
कहाँ ख़बर है मुझे ये कि किसको प्यारा हूँ?
मुझे तो आज किसी ने भी टैडी न दिया!-
चॉकलेट लाती थी व होठो से खिलाती थी
हाँ,ये सच है उसको मुझसे प्यार बेशुमार था-
दिन में और रात में रहा कीजे
अपनी औक़ात में रहा कीजे
ज़िन्दगी में मेरी रहें न रहें
मेरी हर बात में रहा कीजे
मुझपे जितने भी गुज़रने हैं
सारे लम्हात में रहा कीजे
इल्तिज़ा है कि आप मेरे साथ
पहली बरसात में रहा कीजे
मेरी क़िस्मत में जो है जितनी है
उस मुलाक़ात में रहा कीजे
मुझपे जो मौत ने लगाई है
आप उस घात में रहा कीजे
जिनको आँखें बयान करतीं हों
ऐसे जज़्बात में रहा कीजे-
जहाँ आँखें नहीं जातीं वहाँ ये दिल ही जाता है
अगर आतुर कदम हों तो रस्ता मिल ही जाता है
कभी लगती है ठोकर तो
कभी होता अँधेरा है
मगर सच ये भी है,हर रात
का होता सवेरा है
कि पतझड़ में भी कोई एक गुल तो खिल ही जाता है
अगर आतुर कदम हो तो रस्ता मिल ही जाता है
असम्भव शब्द है केवल
नहीं इसके सिवा कुछ और
पड़े "ज़िद" से अगर पाला
ये दर-दर फिर के माँगे ठौर
कि कोई एक माँझी पर्वतों पर पिल ही जाता है
अगर आतुर कदम हों तो रस्ता मिल ही जाता है-
मैंने इतना ही कहा था कि मोहब्बत है मुझे
देखने लोग लगे आँखों में अचरज भरकर-