Devendr Panika   (Devendra panika)
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Joined 15 May 2019


Joined 15 May 2019
10 MAR AT 14:31

फर्क नहीं पड़ता, कौन साथ है और कौन साथ छोड़ गया।।

जिसे जितनी जरूरत, वो मुझसे उतना ही रिश्ता जोड़ गया।।

हम तो आईना है, लोगों को चेहरे उन्हीं के दिखाते रहे।

जिसे पसंद न आया, वही पत्थर उछालकर हमें तोड़ गया।।
देवेन्द्र पनिका

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1 MAR AT 11:31

सम्मान सदा जग में बड़ा है, जिसने हमको जन्म दिया।।

फल मिलता वही जगत में बन्धु, जिसने जैसा कर्म किया।।

अपना शत्रु वही बनाते, औरों को जिसने मर्म दिया।।

मृत्यु पर भी अमर हुआ वो, जिसने अपना धर्म जिया।।

देवेन्द्र पनिका

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21 FEB AT 9:55

पता नहीं लोग झूठ बोलने का हुनर कहाँ से लाते हैं।

कैसे वो आईने में अपना चेहरा देख पाते हैं।।

धोखे के वजूद में, खड़ी करते हैं वो इमारत अपनी।

जिनसे तैरना सीखते हैं, वो उन्हें ही डुबाते हैं।।

पर याद रखें वो, उसकी नजर सब पर रहती है।

समय की मार से यहां, कोई नहीं बच पाते हैं।।

अपना लिखा हाथों में, नसीब नहीं बन पाता।

जो दिया है किसी को तुमने, वही लौटकर वापस आते हैं।।

देवेन्द्र पनिका

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18 FEB AT 8:18

बनो ऐसे कि, किसी को तुम्हारी भी जरूरत हो।

जिन्दगी जितनी भी हो, पर खूबसूरत हो।।

ईंट की दीवारों को कोई नहीं पूजता है।

मंदिर वही जिसमें भगवान की मूरत हो।।

और क्या ही मिलना चार शक्ल रखने वालों से।

ढूढो उसे जिसकी सीरत के जैसी ही सूरत हो।।

देवेन्द्र पनिका

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30 JAN AT 21:12

कभी दीवारों को घर अपना, वो बना उसी में समा गए।
कभी राणा शिवा बहादुर बनकर, अंगद सा पांव जमा गए।।
अरे महलों के सुख को जो ठोकर से, धूल बनाया करते थे।
उनकी रज को भारतवासी, शीश पर अपने धरते थे।।

बड़ी कठिन तपस्या है, हिन्दू होंने की गौरवगाथा।
ऐसे लालों के माथे को चूमें, स्वयं जननी भारतमाता।।
जो माताएं हमारी महलों में, जौहर की ज्वाला जलाती थी।
धर्म के मान की खातिर स्वाभिमान से, वो जौहर कर जाती थी।
इसलिए हमेशा कहता हूं कि, ये जो माथे पर तिलक लगाते हो।
उसी जौहर के भस्म का तेज है जो, खुद को हिन्दू कह पाते हो।।

देवेन्द्र पनिका

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30 JAN AT 21:02

पर क्या केवल तुमसे या हमसे ही, धर्म सुरक्षित हो पायेगा।


केवल अपने ही घर से, भारत विश्व गुरु हो जाएगा।।


धर्म के लिए निष्ठा से, हर हाथ पकड़ कर चलना होगा।


देने को उजियारा धर्म की खातिर, दीप सरीखे जलना होगा।।

देवेन्द्र पनिका

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30 JAN AT 20:55

बलिदान हुए जो रण बेदी में, वो भारत माँ के बेटे थे।


अपनी माता की रक्षा में, वो शीश भी अर्पण कर देते थे।।


उनका ही उपकार रहा, जो ये माथे पर तिलक लगाते हो।


माथा ऊंचा छाती चौड़ी करके, हिन्दू हूँ गर्व से ये बताते हो।।

देवेन्द्र पनिका

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30 JAN AT 20:50

जिस माटी की रक्षा को, बलिदान करोड़ों हो गए।


रण में लड़ते लड़ते वो, माता के चरणों में सो गए।।


धन्य हमारा जीवन इस माटी का तिलक लगाने से।


कभी कदम न पीछे करना, उनका कर्ज चुकाने से।।

देवेन्द्र पनिका

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30 JAN AT 20:44

सातों गगन में गूँजे, ऐसी जयकार उठाते हैं।


शत्रु का हृदय चीर दे जो, ऐसा उद्घोष लगाते है।।


करके सिंह गर्जना, अरिदल का दिल दहलाते हैं।


आओ भारत माता की रक्षा में, अपना शीश चढ़ाते हैं।।

देवेन्द्र पनिका

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16 JAN AT 11:53

गंगा की हर डुबकी में, जातिभेद बहाना है।

इस महाकुंभ में जाकर, अब हिन्दू ही बाहर आना है।।

मिटा दो सब जाति भेद, अब गलती नहीं दोहराना है।

हर हर महादेव जयघोष लगाकर, भस्म तिलक लगाना है।।

सोए रहे हैं वर्षों जो, कह दो अब समय नहीं सोने का।

हम अब हिन्दू, हम एक रक्त, यह भाव सभी में जगाना है।।

✍️✍️✍️
देवेन्द्र पनिका

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