Krrishna Sharma   ("कृष्णा"🍂)
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Joined 12 January 2018


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7 MAR 2021 AT 19:41

रुकने की भूल बन न सकी हार का सबब,

चलने की धुन ने राह को आसान कर दिया...!!

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30 DEC 2020 AT 16:27

उम्र बाँटने वाले उस ठरकी बुङ्ढे ने
दिन लपेटकर भेज दिये हैं

नये कैलेन्डर की चादर में
इनमें से कुछ तो ऐसे होंगे

जो हम दोनों के साझे हों
पहले उन्हें गिन तो लूँ मैं...!

तब बोलूंगा...
"साल मुबारक"...!

वर्ना अपना पहले जैसा...
"हाल मुबारक"...!!

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15 DEC 2020 AT 10:05

एक बेहद महीन धागा है
तुम में और तुम्हारी प्रतिभा का
अनादर करने वाले तुम्हारे प्रतिद्वंदियों में...!

धागा...जो पूर्णतः अदृश्य है...

धागा...जिसकी आकाश वाणी है--कि
"हे ईर्ष्यालु ,
बेशक तेरा कद लंबा होगा....उसका ऊँचा है"...!!

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6 DEC 2020 AT 9:42

मैं शिला के लेख सा दिखता रहा हूँ
काल चिर की इस कहानी को दिखाने,
उल्लेख कितने ही उकेरे हैं समय ने,
बह गए कितने पनारे पानियों के..;
है जमी काई कई स्थान फिर भी
बदला बहुत कुछ ,मैं मगर टिकता रहा हूँ
मैं शिला के लेख सा दिखता रहा हूँ...!
रेत है कोमल, उसे ज्यों चाहो मोङो,
पर इबारत रेत पर टिकती नहीं है
आरोप है पत्थर पे निष्ठुर होने का भी
पर अटल होने को पत्थर है जरूरी
धर्म जो निश्चित किया है उस पर अडिग हूँ
हर तरफ की तपन मैं सिकता रहा हूँ
मैं शिला के लेख सा दिखता रहा हूँ...!!

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14 SEP 2020 AT 6:07

ऊंचाइयां...*
जिन्हें छूने चले आप,
कुछ रास्तों को पलीते से उड़ा देते हैं कि चढ़ाई के आपके साथी कहीं आपके करीब न हो जाएँ...
भूल जाते हैं कि वहां टिकना नहीं हो पाता
और फिर...
आपके लौटने को राह नहीं रह जाती फिर लौटकर नहीं लोटकर आते हैं आप ...
वहाँ से लुढ़क कर जमींदोज हो जाना होता है...
ओह...!

ऊंचाइयां...**
सुख देती हैं,सुख की साँस नहीं लेने देती
पंजों पर खड़े रहिए,तलवे नहीं टिकने देती
बेहिस,बेमुरव्वत हैं,ऊपर से नीचे धकिया देती हैं
फिर भी दूसरों को अड़ंगा लगा,
उनकी पीठ पर पैर धरकर चढते हैं लोग अनवरत...
ओह...!!

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13 SEP 2020 AT 5:08

क्या होगा सफ़र में
उस सवार का हाल,

लकड़ी के घोड़े पर जिसने,
सीखा है सवारी करना...!!

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10 SEP 2020 AT 1:32

बुलंदियां...
तेरी हिम्मत को आजमाएंगी ;
तू खोने और पाने के,
इस खेल में उदास मत होना...!!

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9 SEP 2020 AT 22:36

कहने को कलमची हो,
आग बुझाने की औकात नहीं तुम्हारी ;
पर आग को और भड़काने में सिद्ध हस्त हो तुम...!
तुम्हारे भडकाए जो
आज भङक गए हैं उनके हाथों आज खून सना है लेकिन सुनो...
वो जो भङक गए हैं वो फिर भी तुमसे बेहतर हैं ...!
उनके सिर पर जो खून सवार हुआ
और जो वो इंसान से एक बार हैवान बने,
जो जला के एक दूसरे का चौबारा,
खून करके किसी का ;
जब सिर से खून उतर जाएगा
फिर बन सकते हैं इंसान दोबारा...!
लेकिन तुम्हारा क्या...?
देश,घर और समाज के गद्दारों
तुम इंसानियत को मारो गोली
सच तो ये है कि
तुम हैवान भी नहीं हो ...!
इंसान का खून करने की औकात नहीं तुम्हारी...!
पर दूसरों का खून करवा के,
लाशें गिनवा के उन लाशों की
आंखें नोंच के खाने वाले गिद्ध हो तुम...!
बस कहने को कलमची हो
पर सच में अपने काम बहुत सिद्ध हो तुम...!!

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8 SEP 2020 AT 19:54

ये क्या है...?
जो बहता है सहज सरल जैसे स्वभावत: बहते हैं बजरे और बादल,

है बहते बहते बदलता, बह जाता बदलते बदलते...!
ये क्या है...?
जो थोड़ा मैं हूँ, थोड़ा तुम और तम थोड़ा ;

जो फूटता है हमसे और हो जाता कभी नदी
कभी दरख्त कभी रंग कोई...!
ये क्या है...?
जो है भाषा में अवर्णनीय,है आँखों में अस्पष्ट और समय में अविरल ;;

ये क्या है...?
जिसका होना है एकसाथ व्याख्याओं के भीतर और बाहर होना...!!

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7 SEP 2020 AT 19:17

भटके हुए...प्यासे यात्री हो ...तो भयानक जंगल से डरकर...बाहर से ही लौट मत जाना...इसे स्वच्छ पानी का सुरक्षा कवच समझना...और तुम चलते जाना...रुकना मत...दरअसल स्वच्छ पानी...जंगल के ठीक बीचों-बीच मिलेगा तुम्हें ...!!

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