हमारे प्रेम को चाँद ने बुना
एहसास के सितारों से सजाया
मगर बुनते बुनते..
आख़िरी गिरह खुली छूट गई
कुछ सितारे निकल कर
ज़मीन पर गिर गये
लोगों ने दुआएँ मांग लीं
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हमारा प्रेम अब उनके हिस्से में चला गया..-
हम बात चाँद की करते रह गए,
हमसे सितारे नाराज़ हो गए…
हम गए अँधेरे को बताने ,
कम्भख्त रात परेशान हो गए…-
फ़लक पर ख़ुशी के सितारे नहीं अब
जो चमके थे पहले हमारे नहीं अब
है आँखों में मेरे भी इश्क़-ए-समंदर
मोहब्बत को फिर भी किनारे नहीं अब
ख़ुदा ने क़यामत सा तुमको बनाया
करें क्या रहे हम तुम्हारे नहीं अब
मैं महका था उस दिन जो देखा था तुमको
क्या आँखों में वैसे नज़ारे नहीं अब
मैं तन्हा नहीं हूँ हुआ हूँ मुसाफ़िर
वफ़ा के ये रस्ते भी प्यारे नहीं अब
कभी तो कहो तुम की 'आरिफ़' तुम्हारा
कि मिलते हैं तुमसे सहारे नहीं अब-
रात जवां हुई,सितारे चमक उठे.
रात ढलने लगी, सितारे धूमिल होने लगे.
इश्क हुआ, मोहब्बत जवां हुई , हम जीतते चले गये.
इश्क़ बनी बाजी, मोहब्बत रूठी, हम हारते चले गए.
गैर तरस खाने लगे, अपने हमपर हंसने लगे.
उसको जिताने में खुद हम जीत से घबराने लगे.-
अब साथ चलना उन्हें भाता नहीं हैं
उनके कंधे पर सितारे लग गये हैं-
यूँ ही नहीं रोज़ सितारे फ़ना होते हैं,
कहीं कोई दिल हर रोज़ टूटता होगा !-
असहनीय पीड़ा को सरलता से ढलते देखा है,
बंजर उपवनों में फूलों को खिलते देखा है!!
नामुमकिन यहाँ कुछ नही करना तब लगा मुझे
जब मैंने किसी दीवाने को सितारें गिनते देखा है !!-
मिहिर थोड़ा आराम फ़रमा, तिमिर आने दे एक दफ़ा
मेरे जीवन में सितारे कितने है गिनने दे एक दफ़ा-
सुना है, आज आसमां में बहुत सितारे टूटेंगे,
सोचता हूँ, किसी एक से तुम्हें मांग लूँ...
मगर जो खुद टूट चुके हैं,
क्या वो दूसरों के टूटे ख़्वाब पुरे करेंगे ?
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