तुम बरसती रहो-------
भीगता मैं रहूँ ----------
तुम हंसती रहो ---------
देखता मैं रहूँ ----------
हाय कस्तूरी यूँ --------
केश फहराओ ना ------
दिशाएं महक जाएंगी।
हवाएँ चहक जाएंगी।
तुम खामोश रह --------
मुस्कुराती रहो ----------
अधर रस अपना -------
टपकाती रहो ----------
वक्त थम जाएगा।
कंपन बढ़ जाएगा।
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प्रथम शिक्षक : मां ( धरती )
द्वितीय शिक्षक: पिता ( आकाश))
तृतीय शिक्षक: परिवार ( मुख्य तारे)
चतुर्थ शिक्षक : समाज ( तारे)
पंचम शिक्षक : गुरू ( चांद)
छठा शिक्षक : मित्र गण, प्रेरणा दाता, अन्य ( प्रकृति)
सभी को शिक्षक दिवस की ढेरों शुभकामनाएं
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जीवन की सच्चाई है आंसू
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बिन शब्दों वाली लिपि हैं आंसू।
भावों की अभिव्यक्ति हैं आंसू।
चक्षु कोणों से निर्झर झरने वाले,
एहसासों की प्रतिलिपि हैं आंसू।
पूरी रचना कैप्शन में,
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फेरी है नजर तूने नजारों से क्या कहें।
तश्वीर पास तेरी इशारों का क्या करें।
बेशक तुझको भूलना हम चाहते हैं पर,
दिल में है बसी तेरी उन यादों का क्या करें।
होना न चाहो मेरा ये तुम्हारी मर्जी है,
पर रातें डरा रहीं हैं उन रातों का क्या करें।
डूबता ही जा रहा प्रिय तेरे ही ख्वाब में
ये आंसू ही नहीं रूकते किनारों क्या करें।
मिटाना चाहते तेरी निशानियों को पर,
किताबों में रखी तेरी चिट्ठियों का क्या करें
साथ उसके देख आंखें देख न पायीं,
जब उसकी हो चली फिर बवाल क्या करें।
जवाब मिल गया हमें सारे सवाल का,
जब छोड़ ही चली गई तो इंतजार क्या करें।
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उनकी खामोशियों ने यूँ कुछ कहा,
मेरी खामोशियों ने सब सुन लिया।
मेरी नजरों से गुस्ताखियाँ कुछ हुईं,
उनकी नजरों ने स्वागत मेरा किया।
गालों की लालिमा मुस्कुराने लगी,
मेरे अधरों ने झट कांपते छू लिया।
मौनता से भरे बिखरे परिदृश्य में,
प्यार के झोके ने तरबतर कर दिया।
हवा चलने लगी हुआ मदहोश मैं,
मेरी बांहों ने खुलकर स्वागत किया।
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दर्द दे दो मुझे तिलमिलाता रहूँ,
के यादों में तुझको बसाता रहूँ।
मिले जख्मों पर मुस्कुराता रहूँ,
के ख्वाबों में तुझको बुलाता रहूँ।
संबधों में कुछ खट्टा मीठा भी हो,
के रूठती तुम रहो मैं मनाता रहूँ ।
प्रेम में द्वंद्व हो खींचातानी भी हो,
के नजरों से नजरें मिलाता फिरूं।
इश्क़ हो पर कुछ शिकायत भी हो,
के मुहब्बत के दीये जलाता फिरूं।
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इस भरी दुनिया में कहाँ कोई सगा है,
जिनको संभाला वही गिराने में लगा है।-
तुम्हें सोंच हम मुस्कुराने लगे हैं
ख्वाबों को अपने जगाने लगे हैं।
दीदार जब से तुम्हारा हुआ है
तेरी राग संग गुनगुनाने लगे हैं-
सोचते थे कि
हम जिंदगी जी रहे हैं।
परन्तु अब लग रहा है कि
जिंदगी हमें जी रही है।
हम जीने लायक ही कहाँ थे,
यूँ तो मरने लायक भी नहीं हैं।
न हम सुकून में जी सकते,
न ही औरों को
सुकून में देख सकते।
शायद इसी लिए जीने का जिम्मा
जिंदगी ने अपने हाथों में ले लिया।
हमें गौड़ बना दिया ,
हमारे हाथों
कंकाल सरीखे विचरण
करते रहने का जिम्मा दे दिया-
वो चल रहे हैं साथ
हाथों में डाले हाथ
मन से मन की दूरी
दिल्ली और मसूरी
फासलो में आज
हाय! कैसी मजबूरी
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