तुम्हारा स्कूल से आना-जाना,
सफेद यूनिफॉर्म में वो शांत सा शर्माना।
मुझे देखते ही हल्की सी मुस्कान,
फिर नज़रों को झुकाकर चुपचाप चले जाना।
जुलाई की बारिश में यूँ भीग जाना,
गिरती बूँदों से चेहरा और भी सज जाना।
भीगे बालों को उँगलियों से पीछे हटाना,
और तुझे देख हवा का भी थम जाना।
वो छोटे कदम, तेरी अनचाही खामोशियाँ,
छतरी के बावजूद भीगती तेरी नादानियाँ।
बारिश तो अब भी आती है छूने को मुझे,
पर ना वो स्कूल है... ना तू... ना वो कहानियाँ..।-
✍️✍️✍️
ना हम लेखक है, ना है शायर, शौक था लिख... read more
तेरी मौजूदगी ने मुझे हर बार तराशा है।
जब भी तुझसे होकर आया हूँ,
कुछ ओर निखर कर आया हूँ।-
पिता के पास शिकायतों का हक़ नहीं होता,
ना थकने की इजाज़त,
ना रुकने की मोहलत।
वो चलता रहता है चुपचाप,
कभी बेटे की ज़रूरत बनकर,
कभी बेटी का सहारा बनकर,
अपने अरमानों को खामोशी से कुचलते हुए,
पर खुद के लिए कभी जी नहीं पाता…!-
ज़ख़्म कहां हैं, ये किसी को क्या बताएँ,
दर्द चुपचाप लहज़ों में उतर आया है।-
लाइफ में एक व्यक्ति
ऐसा जरूर होना चाहिए
जो Fail होने पर भी
हमारे अथक प्रयासों के लिए
हमें गले लगा ले।😌-
क्या हम सच में खुश हैं? 🤔
आजकल हर किसी के पास कुछ न कुछ है—
बेहतर नौकरी, बड़ा घर, महंगी गाड़ी,
लेकिन फिर भी हमारी खुशियों का स्तर
क्यों गिरता जा रहा है?
सोशल मीडिया पर
एक परफेक्ट जिंदगी दिखाना आसान है,
लेकिन असलियत इससे काफी अलग है।
हम जितना ज्यादा हासिल करते हैं,
उतना ही खाली महसूस करते हैं।
ऐसे में हमें सोचना चाहिए,
क्या यह वही है जो हम चाहते हैं?
क्या सच मे बाहरी दिखावा हमें
दीर्घकालिक खुशी दे सकता है?-
खिड़कियों से झांकते दृश्य
हर पल बदलते अपने नजारे
कहीं खेतों का सीना खालीपन से भरा
कहीं लहलहाती फ़सलें भरती रंग हरा
कभी आते हैं जंगल कई रहस्यों को लिए
कभी शहर की रोशनी में दिखते सपने नए
पहाड़ की ऊंचाइयों ने झकझोरा कई बार
नदी के गीत ने सिखाई निरन्तरता हर बार
ट्रैन के सफर पर हैं, कई तरह की कहानियां
हर जीवन में चलती हैं, कई तरह की आंधियां-
कभी जलता हुआ भोजन
कभी धुँधला होता पन्ना
फिर भी चूल्हे की आंच पर
पक रहा है बड़ा सपना-
यात्रा से केवल स्थान ही नहीं बदलते
बदल जाते हैं कई बार दृष्टिकोण भी-
पूल तो सिर्फ चोटियों को जोड़तें हैं
पहाड़ों को जोड़ती है उनकी गहराइयां-