"अब तक प्रेमिकाओं का
कोई घर नहीं बना...
वे सदैव लोगो की
जुबानों पर ही रहीं!"-
ओ मेरी पनीली आंखों के तैरते ख्वाब....
सुनो!
तुम लौट आओ ना...
मुझे बस इक बार तुम्हारी हथेलियों में
मोरपंख से अपने सपनो की
लकीरें बनानी है।-
"जिस आंच से परिपक्व होते है तमाम जीवन....
ईश्वर ने हर आंगन में मां नाम की वो धूप बोई है"-
दुनिया में
शायद कुछ
गिने लोग ही होंगे
या
नहीं भी होंगे
जिन्होंने किसी का जाना
महसूस नहीं किया होगा
और
किसी के जाने पर
अंदर से निष्क्रिय नहीं
हुए होंगे।-
मेरे मन ने तुमसे प्रेम करते वक्त कभी समुंदर सा लेनदेन नही चाहा,उसने सिर्फ तुमसे प्रेम किया और....
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दुनिया में कुल कितने रंग होंगे?
दुःख और सुख बस दो?
या दुःख,सुख और प्रेम तीन?
या दुःख,सुख,प्रेम और क्रोध....चार?
या दुःख, सुख, प्रेम,क्रोध और मोह....पांच?
या दुःख,सुख,प्रेम,क्रोध,मोह,त्याग.... उफ्फ अनगिनत?
या मन आत्मा सिर्फ इतने?
कुछ भी तो समझ नही आता दुनिया क्या है,लोग कौन है,सबसे खास हम क्या है,हमारा उद्देश्य क्या है,क्या हम वो काम बखूबी कर रहें है जिसके लिए हम आए है या हम कहीं से आएं ही नही है और न हम कहीं जायेंगे ..??
उफ्फ ये कश्मकश.....-
.....कभी लगता है
सारे आईने तोड़ दूँ
बंद कर आंखे
सांस गहरी इक छोड़ दूँ
राज खोलूँ की अब भी है
तुमसे मोहब्बत
और तुम्हारी आंखों में
खुद का चेहरा छोड़ दूं,
कभी दांतों तले
उंगली दबाना भूल जाऊं
दुनियादारी,अफवाह और
सारा फसाना भूल जाऊं
भूल जाऊं की पहले भी
तुम्हें महसूस किया है
और गले लगूं ऐसे की
वापस जाना भूल जाऊं!!
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