QUOTES ON #सानिध्य

#सानिध्य quotes

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17 MAR AT 7:00

तुम्हारा स्पर्श, सूर्यकांत मणि-सा,पिघलती मैं, सौंधी धूप-सी,
मृदुल पवन-से आलिंगन में, मैं हूँ बसी मधुरिमा, गंध रूप-सी।

तुम्हारे ये नयन, शरद चाँदनी-से,भीगती मैं, मधु ज्योत्स्ना-सी,
अधरों की छूअन, रस सरिता-सी,बहती मैं, स्वर रागिनी-सी।

तुम्हारी स्मिति,रजत प्रभा-सी,निखरती मैं, कुसुमित रूप-सी,
स्नेहसिक्त उस दृष्टि पथिक में,लहरती मैं, कोमल स्वरूप-सी।

तुम्हारे चरणों की थिर गूँज,गूँजती मुझमें दिव्य नाद रूप-सी,
स्पर्श तुम्हारा, तप्त अर्चना-सा,जागती मैं,चैतन्य नर्म धूप-सी।

सपनों की नव वीणा साज बन मैं,बँधी तुम्हारी मधुर थाप-सी,
तुम ज्योति बनो,मैं बाती,जलती रहूँ, मुकुलित नयन दीप-सी।

तुम हो गगन के दिव्य नयन,मैं धरा फूलों से सुवासित वादी सी,
संलयन के इस पावन क्षण में, मैं हूँ बसी बस तव सानिध्य-सी।

तुम्हारी वाणी,कोकिल तान-सी, महकती मैं,मधुमय गीत-सी,
भावों की सरिता में बहती, मैं हूँ रची उत्कीर्ण प्रणय प्रीत-सी।

तुम्हारा चिंतन, गहन सागर-सा, डूबती मैं,मोती की साध-सी,
प्रेम ज्ञान के उस दिव्य आलोक में, मैं हूँ जगी दिव्य बोध-सी।

तुम्हारी छाया, वट वृक्ष-सी, पोषित मैं तुझ में परावलंबी सी,
सुरक्षित तेरे स्नेह भुजदण्ड में, रहती मैं थमी शांत भीड़-सी।

अनुरक्ति तेरी है निष्काम यज्ञ-सी, अर्पित मैं, पावन भेंट-सी,
हूँ समर्पित उस कर्म पथ पर, मैं हूँ दृढ़ संकल्पित चेतना-सी।

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16 NOV 2021 AT 8:07

जीवन में तलाश करो एक ऐसे व्यक्ति की जो पारस पत्थर की तरह आपको छू जाए और आपका भाग्य बदल दे।

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15 JUN 2021 AT 18:09

अपनी छत से,
कम से कम उसे देख लेते थे,
कमबख्त बीच में कोई,
हमसे ऊंचा मकान बना बैठा।

#सानिध्य

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14 DEC 2017 AT 8:00

आज दो साल हो गये आपके बगैर,
फ़िर भी यूँ लगता हैं
जैसे कल की ही तो बात हैं
जब भी मन बेचैन हो जाता हैं
वो आपकी गोद में
सर रखना याद आता हैं
आपका यू सर पर हाथ रखना
फिर मेरी गलती पर समझाना
जब भी याद आता हैं बड़ी माँ
सच में वो लम्हा मुझे बहुत रुलाता हैं
जब भी थक जाती हूँ,
तो आपकी छवि देख लेती हूँ
आपका डांटना और फिर
हलका सा मुस्काना बहुत याद आता हैं
मन भर आता हैं मेरा आपके बगैर
अब तो किसी से हाल-ए-दिल
भी नहीं कहा जाता है
एक इंसान हैं मेरे जीवन में
जिसके रूप आपकी परछाई दिखती हैं
सच बताऊँ तो वो बिलकुल
आप सी लगती हैं
उसकी ममता, स्नेह, प्रेम,
क्रोध सब आपसा है
जिसे आपने ही मेरे
लिये ही तो भेजा हैं
कुछ अपनापन सा हैं
उसमें और यू लगता लो
जैसे आपका ही सामने खड़े हो

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18 FEB 2020 AT 22:16

क्यों सानिध्य ये जाता नहीं
जा मैके से मेरा बचपन उठा के लेके आ।

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28 NOV 2020 AT 15:40

पा लेता हूँ
सानिध्य तुम्हारा
जब तुम मेरी कविताओं के
साथ होती हो।

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30 JUN 2017 AT 13:01

मृत्यु सानिध्य में,
प्रेम दीक्षा पा ली मैंने,
लाख जतन हैं अब,
मृत्यु पाने में........!

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23 MAR 2020 AT 20:32

बड़े दिनों के बाद आज
तुम्हारे सानिध्य में मिले पल
कल तुमसे दूर थे शायद
पता नहीं फिर मिलेंगे कल

माता - पिता ने था तुमको सजाया
कंकड़ - पत्थर से तुम्हें घर बनाया
रिश्तों को अब तुम संवारते हो
घर, क्या मुझे पहचानते हो ?

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4 NOV 2020 AT 18:37

प्रेम अक्सर झंकृत होता है
तड़के किंवाड़ के सांकल से,,,,,

कृपया
आगे अनुशीर्षक में पढे़

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27 MAR 2017 AT 20:28

बाह्य अंग पर आडंबर
भीतर रंग विहीन शून्य सा
क्षुब्ध मन की पीड़ा है
अनवरत चलती श्वांसें
औपचारिकता का संसार यहां
अंतर्मन में व्याप्त बहुत कुछ
सहज नहीं परिभाष्य
संपर्क संवाद अभाव में
सुखद सानिध्य अप्राप्य

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