Pankaj Soni   (©✍pankaj soni 'pranay')
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pankaj.soni340@gmail.com
Joined 6 December 2016


pankaj.soni340@gmail.com
Joined 6 December 2016
30 APR AT 22:04

संघर्ष तो है
है अगर झोली में असफलता
कुछ तो है
अनुभव,अनुभूति और अनन्त चेतना
सब तो है
फिर,निराश क्यूँ है ?
उठ,खड़ा हो,तब तक चल
जब तक पैरों पर पथ है,
जीवन है तो
कुछ तो है
संघर्ष तो है !!

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29 APR AT 21:47

खिदमतगार होता अगर तुम हाँ कहती
पनाहगाह में होता अगर तुम हाँ कहती

जंगलों में भी कौन महल बनाता है भला
विरानें में बस्ती होती अगर तुम हाँ कहती

नदियों तलाबों का पानी भी पीते है लोग
जुबाँ लबालब होती अगर तुम हाँ कहती

मौत से भी तो किनारा कर लिया है मैंने
जिंदगी आसान होती अगर तुम हाँ कहती

कोई लोग मुझे बताते है,तुम ख़ुश बहुत हो
ख़ुशी में चार चाँद लगते अगर तुम हाँ कहती

प्रेम पत्र आज भी लिखें जाते है ज़ुदा ज़ुदा
कहानी भी लिखी जाती अगर तुम हाँ कहती

किसी दिन इन उन सब बातों का हिसाब करतें
मुलाकात भी तय होती अगर तुम हाँ कहती

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18 APR AT 9:36

लैला मजनूं,हीर रांझा,सोनी महिवाल यूँ ही तो नही
करे खुद को क़ुर्बान इश्क़ महोब्बत में यूँ ही तो नही

कौन कौन हुआ जो यह दमखम दिल में रखता है
मेरा भी तो जीने से पहले मर जाना यूँ ही तो नही

कौन,तुम?,तुम भी हो क्या?तुम भी क्या तुम हो
तुम्हारा होना इस कतार में नामजद यूँ ही तो नही

ठीक है,तुम्हारी महोब्बत स्वीकार,हुकुम स्वीकार
आएं जो दिल दर पर महोब्बत लिए,यूँ ही तो नहीं

अगर इजाज़त हो तो,पैग़ाम तुम्हारे दिल को देते है
मुझ को भी स्वीकार करे धड़कनें जो,यूँ ही तो नहीं

सदियों बाद जब नाम हमारा कोई पुकारे इश्क़ में
इश्क़ की दास्तां में तुम और मैं,हम,यूँ ही तो नहीं

ख़ैर,अभी तो जीने का मौसम है,मुलाकात दुलारी हैं
बिछड़ने की भी बारी,क़ुर्बानी की रवानी,यूँ ही तो नहीं

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17 APR AT 14:04

दाग़,बेदाग़ जिस्म मिलते कहा है
बागों में अब फूल खिलते कहा है

सब तो सब पैसों का खेल है यहां
बिना पैसो के रिश्तें निभते कहा है

पत्थर भी भगवान हो सकते यहा
मंदिर मस्जिद झूठ से चिढ़ते कहा है

माजरा क्या है इस नई दुनियां का
वो पुरानी दुनिया के फ़रिश्ते कहा है

उधार माँग कर लाया था चार दिन
दिनों के बाद भी संग बिछड़ते कहा है

कोई झूठ को ही एक इशारा कर दो
सच्चे,झूठ पर तो बिफरते कहा है

क्या यह ग़ुलामों की बस्ती का घर है
उठे हुए सर बाजारों में निकलते कहा है

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15 APR AT 11:29

मनचाहे से लेकर अनचाहे तक का सफ़र,महोब्बत तो नही
गुलिस्तां बहार और न काँटो की सेज हो,महोब्बत तो नहीं

पाक रिश्ता भी खुदा से और जुबाँ में फर्क,ये दोहरा चरित्र
गले मिलना और पीठ पर छुरी चलाना,महोब्बत तो नही

हजारों लाखों दीप जले मगर एक दीप में लौ को बाती नही
सूरज निकले और जिस्म को तपिश न हो,महोब्बत तो नहीं

बचपन में एक खेला करते थे लुका-छुपी,ये कैसी सियासत
लुका-छुपी के खेल में तो पर्दाफ़ाश न हो,महोब्बत तो नही

ख़याल जो सौ बार अधूरे रहें,पर ललकार में धार तो रहे
एक वार में ही जो दुश्मन न हो घायल ,महोब्बत तो नही

कारवां क्या,यूँ काफ़िला भी निकलेगा,बिगुल बजने तो दो
जो दुश्मन से जंग हो और शहादत न हों,महोब्बत तो नही

बाजियां हार जीत की,जंग मैदान में,सुलह एक परिवार में
बच्चें हँसते खिलखिलाते न रहे तो महोब्बत तो नही,नही !

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12 APR AT 9:33

कदम दो कदम ही सही,साथ चलो तो सही
एक बार झूठ ही सही,प्रेम है,कहो तो सही

यार आज क्यूँ इतने रूठे रूठे से लग रहे
प्रेम करता हूँ तुमसे,बात ये सुनो तो सही

पल दो पल के मेहमान है हम भी तो यहां
मेजबानी को जिंदगी में साथ चलो तो सही

हो सकता है यह परमेश्वर का ही फैसला हो
मैंने कर दिए है दस्तख़त तुम पढ़ो तो सही

ठीक है तुमको भी होंगे उन्हीं प्रभु के दर्शन
कुछ देर के लिए मेरी बाहों में रहो तो सही

ना,बिल्कुल ना,मैं कभी भी झूठ नही बोलता
ठीक है,तुम्हे पाने को बोला,अब हंसो तो सही

नाराज़गी भी ज्यादा अच्छी नही होती जानां
सज़ा के भुगतान को एक बोसा भरो तो सही

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7 APR AT 16:45

गुपचुप,चुपचाप और सन्नाटे में तकिए के नीचे से तस्वीर निकाल घँटों तुझे देखता हूँ
मुरशद,तू ही बता की एक झूठे सपने में न जाने क्या क्या अधूरा सच देखता हूँ

तू तो कहता था,मिलेंगे,आज मिलेंगे,कल मिलेंगे,कभी न कभी मिलेंगे,मिलेंगे जरूर
मिलने की इस झूठी आस में पथराई आँखों से आते जाते न जाने कितने चेहरे देखता हूँ

एक ही तो वादा था,अधूरा था,तेरा था या मेरा था,दोनों का ही तो गुनाह था
किताब के पन्ने उलट पलट किसी ग़ज़ल में उस गुनाह की सज़ा देखता हूँ

यूँ तो चहरों के आधे-अधूरे फलसफे है बहुत मेरे पास दिल बहला लेने को
पर जब भी तुम्हें देखता हूँ तो मेरे हर फलसफे के लिए तुझे मुक्कमल देखता हूँ

चलों जो आज बात चली है तो तुमको बतला देता हूँ, कसूरवार कोई नही था
और जो अब मैं चलने लगा हूँ तो चलने से पहले ख़ुदा की तरफ देखता हूँ  !!

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7 APR AT 11:12

भूले भटके उससे पूछता हूँ कि कुछ बाक़ी है
वो अनमने मन से कहता है कि सब बाक़ी है

किसी और संग बाहों में बाहें लेकर चलता है
मेरा फेरों की आग पर चलना अभी बाकी है

मैंने पूछा नहीं उसके शरीर से मिलने का पता
देह को छोड़ उसकी आत्मा को छूना बाक़ी है

मुद्दतों से तो वो कह रहा इस बार मिलन होगा
औऱ मेरा भी स्वर्ग से मिलने का ख़्वाब बाक़ी है

वो सिरफिरा अपनी बात से मुकरता भी नहीं है
और मेरा भी उसकी जिद्द पर मर जाना बाक़ी है

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6 APR AT 14:38

ये क्या सुना,मैंने तुमसे क्या कहा था एक झूठ
मैं तुमको जा रहा छोड़कर,मैंने कहा एक झूठ

ये क्या ही बुरा हाल बना लिया तुमने खुद का
ग़ुस्से में बिल्कुल अच्छी नही लगती एक झूठ

ये क्या तो मेरा नादान इश्क़ है बस तेरे लिए
तुमने मेरे इश्क़ को निक्कमा कहा एक झूठ

कसमें ख़ाकर कहता हूँ किसी तरफ न देखूँगा
तुमको भी कभी मुड़कर न देखूँगा एक झूठ

ये जो तुम मुझे बातों में बहला फुसला लेती हो
मैंने तुम को तो कल मासूम कहा था एक झूठ

अब तो इतना कुछ हो गया है आशिक़ी में जानां
किसी और में आशिक़ी के ख़्वाब देखे एक झूठ

झूठी झूठी बातों का कारवाँ कैसा चल पड़ा है
तुम न रहो,मैं न रहूँ,ये आशिक़ी न रहे सब झूठ

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3 APR AT 20:58

कोई होश नही,कोई मदहोश नही,बेख़बर तो बिलकुल तक नही
नही,नही,नही,वो किसी भी देश का तो सुल्तान तक नही

आज ख़बर,कल अख़बार,यहाँ तो कोई सूचना तक नहीं
अच्छा,आज किसी भी देश का सुल्तान तो जिंदा तक नही

सबसे बड़ा तो यह गुनाह,क़लम हाथ मे देनी तक नही थी
और,हाथों में तलवार दे दी,अब तो कोई सुल्तान जिंदा तक नही

कोई झूठी भूल-चूक हुई हो तो एक झूठी माफ़ी बक्श देना
चश्में में तो मेरे झूठ को पल के लिए तो एक जगह तक नही

आओं,मिलों हमसें,अब हम तो कोई किसी के सुल्तान नहीं
बेज़ुबान परिंदो में कोई उड़ान भर सकें वो भी आवाज़ तक नही

क्या ही खूब लिखते हो,लिखते को भी कभी सुनते हो क्या
हम तो सुने को गैर-सुना कर दे,ऐसे भी कोई सुल्तान तक नही

बंजर है,बंजर थी,और हृदय की धरती,बात तो क्या करते हो
खंज़र थी,ख़ंजर है,खंजर हृदय की दास्तान,आवाज़ तक नही

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