Pankaj Soni   (©✍pankaj soni 'pranay')
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pankaj.soni340@gmail.com
Joined 6 December 2016


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22 JUN AT 10:19


मिल तो जाते है मग़र इज़हार नहीं मिलते
इक़रार मिलते है मग़र इंकार नहीं मिलते

कहीं का कहीं को कुछ तो मिलता ही है
हो आमने सामने मग़र इसबार नहीं मिलते

चलते चलते मन की ताक झाँक होती है
होती है सुगबुगाहट मग़र इश्तहार नहीं मिलते

कौन इशारा दे अब मिलने मिलाने को
मिल भी जाएं दोनों मग़र इंतज़ार नहीं मिलते

लहुँ है कि रिसता बहुत है उसकी तरफ़
तरफ़ से होती है बातें मग़र एकतार नहीं मिलते

ख़ू में भी दोस्ती है बहुत गहरी इकतरफ़ा
दोस्तियां बहुत है मग़र इतवार नहीं मिलते

इजाज़त हो तो इज़हार,इक़रार,इंकार से मिल लूँ
सुना है ये मिलते है मग़र इक़सार नहीं मिलते !

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20 JUN AT 9:52

देख सकता है सबकुछ अनदेखा करके
कोई तो हो ज़िन्दगी में एक पेचा करके

रंग बदलते लोग मिलते है इस जहान में
कोई आएं औऱ ले जाएं मुझे कैदा करके

रहूँ या न रहूँ बाक़ी ज़िन्दगी कौन जाने
इक पल को कोई तो मिले जुनैदा करके

बेहोश,बेहाल,बेज़ान इक ही दिल तो है
दिल है तो दिल मिला ले वायदा करके

किसने कहा कि अब जिंदा मर चुका हूँ
कोई मेरी जान बख्श दे मेरा फायदा करके

इतनी रहमत तो कभी मौला से न माँगी
जो तुम सुन सको तो सुनना कायदा करके

अगली बार अगली महोब्बत का वादा नहीं
डर तो रहा हूँ महोब्बत से ही आपदा करके

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18 JUN AT 14:43


बारिशों में इक घरौंदा बनाते हो इश्क़ बहाते हो
कैसे ख़ुद्दार हो आग जलाते हो दिया बुझाते हो
कोई हसीन ख़्वाब क्या तुम पर हँसता रह गया
जो ख़ुद रोते रोते दूसरों को भी बेज़ा रुलाते हो
उम्र के हर छोर औऱ मोड़ पर कोई खड़ा मिलेगा
न जाने तुम किस किस को यूँ ही पुकार लगाते हो
मैं न कहता था कि यह दुनियाँ बड़ी मतलबी है
तुम दुनियाँ को दुनियादारी का पाठ सिखाते हो
रहने दो बहुत हुआ या हद में रहा करो,करो इश्क़
इश्क़ करते करते मुझसे इश्क़ की हामी करवाते हो

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17 JUN AT 10:49



चाटूकारिता की भाषा मुझ को नहीं आती
तोहमते कि सभ्य भाषा मुझ को नहीं आती

उम्र गुज़र गई हर किसी को चाहने में यारों
नाते-रिश्तेदारों की भाषा मुझ को नहीं आती

कोई रूठा है तो किसी का जिक्र तक नहीं
मग़र जी हजूरी की भाषा मुझ को नहीं आती

कोई खफ़ा है मुझसे औऱ खफ़ा हूँ ख़ुद से
ख़ुद से ख़ुदा की भाषा मुझ को नहीं आती

अदना सा इंसान हूँ और इंसान ही बने रहने दो
क्या कहूँ की शैतान की भाषा मुझ को नहीं आती

दो ग़ज ज़मीं का ही मसला है सबका सबसे
सबसे अलग कोई भाषा मुझ को नहीं आती

जिंदा हूँ तो दिल का कुछ कह लेने दो हुजूर
मरने के बाद कब्र की भाषा मुझ को नहीं आती !

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16 JUN AT 14:41

दुहाई दे औऱ जान बख्श दे
कोई मेरा इज़हार बख़्स दे
कौन कहता है तख़्त चाहिए
कोई मेरी तलवार बख्श दे
महोब्बत मेरी सरजमीं है
ख़ुदा दो ग़ज जमी बख्श दे
मैं लिखूँगा औऱ बज़्म है मेरी
इरादतन ख़िलाफ़त बख्श दे
जो कुछ न हो सके तो इश्क़
मेरी इज़्तिरार को बख्श दे
होशोहवास में तो कहता हूँ
तू मेरा इक़रार ही बख्श दे !

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13 JUN AT 17:43

ज़ुबानी बड़ा बेदर्द बेहया ख़ानदान में कोई
कोई एक है जो बत्तमीज ख़ानदान में कोई

होगा ऐसा वैसा कैसा जो कुछ लिखता है
मग़र अज़ीज़ से अधिक ख़ानदान में कोई

कहना है कि बड़ा बेशर्म औऱ बदजात कोई
नूर की लिहाज़ा चमकते है ख़ानदान में कोई

ख़ैर की अब तो सब अपने अपने रस्ते ख़ानदान
ख़ानदानों में कब कोई रहता है खानदान में कोई

बड़ा मसला है कि कब कोई बदलता है जनाब
जो न बदले वो ही तो होता ख़ानदान में कोई

यह बात तो बुज़ुर्ग कहते कहते ही तो मर गए
बुजुर्गों की लाठी सँभालता है ख़ानदान में कोई

अना ऐसी की बदचलन होने के हर दाग़ झेले
मग़र ख़ानदानी को निभाता है ख़ानदान में कोई

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30 MAY AT 16:07

तुम्हारी मुस्कुराहट को
दुनियाँ की किसी भी भाषा में
लिखा तो जा सकता था,लेकिन
ठीक वैसे ही,मैं मुस्कुरा दिया !

अब सोचता हूँ
मुस्कुरा देना,बेहतर अनुवाद था ?

मैं,तुम्हारी मुस्कुराहट को
आत्मसात करके
बार बार मुस्कुरा भी तो सकता था !

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29 MAY AT 16:06

जाना बड़े ही आराम से की लौटकर आ सको
आ सको तो आना अगर दुनियाँ साथ ला सको
खुद्दार क़िस्म सी होती है बाज़ी भी इश्क़ की
इश्क़ में हार जीत से कुछ अलग तुम गा सको
मेरी दुनियाँ,मेरा आसमाँ और महोब्बत तुमसें है
मेरी गज़लों,नज़्मों औऱ मर्सिया में मुझे पा सको
मौला कुछ तो बता रहा था रिहाई के मसले पर
आज़ाद मेरी रूह औऱ क्या ज़ुल्म तुम ढा सको
लश्कर तुम्हारा,तख़्त तुम्हारा औऱ मैं भी तुम्हारा
क्या पता मेरे अशआर के इंकलाब में छा सको
परवरदिगार की रहमत पर चलती है ये दुनियाँ
उसकी रज़ा के बिना एक निवाला न खा सको

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24 MAY AT 14:21



#समस्त_ऋणों_से_मुक्त_हो_जाऊँगा
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तुम बारिश की बूंद चुनना या बारिश को चुनना
चुनना तुम बादल
तुम खुद को मुझ से एक कदम बड़ा पाओगी
मैं चुनूँगा सूरज या सूरज की किरणों को
या चुन लूँगा पसीना
तपत की थकान से एक कदम झुक जाऊँगा

तुम अपने अक्ष पर खड़ी रहती हुई परिभ्रमण चुनना
लगभग दिन एक में खुद को सहज पाओगी
मैं अपना अक्ष नाम तुम्हारे करके परिक्रमण
तीन सौ पैसढ दिनों में एक साँस पूरी कर जाउँगा

जब भी बात मेरी और तुम्हारी हो तो तुम चुनना भविष्य
जो तुम एक नई पीढ़ी की सौगात दे जाओगी
चुने गए भविष्य को आधार देने के लिए मैं भूत चुन लूँगा
तो मैं अपने समस्त ऋणों से मुक्त हो जाऊँगा !!

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23 MAY AT 14:55


तालियों की गड़गड़ाहट में
मुझे मत ढूंढ़ना
ढूंढ़ना मुझ को अपनी एक
गहरी चुप्पी में
मैं मिलूँगा तुम्हें
एक विचार की तरह
जब,तब तुम जीवन की
उम्मीद छोड़ चुकी होगी
तब,जब तुम्हें एक
नए जीवन की चाह होगी
मिलूँगा एक जीवन की तरह
तब मिलन होगा
मेरा और तुम्हारा !

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