Pankaj Soni   (©✍pankaj soni 'pranay')
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pankaj.soni340@gmail.com
Joined 6 December 2016


pankaj.soni340@gmail.com
Joined 6 December 2016
28 SEP AT 16:40


जिंदगी खूबसूरत हो और इश्क़ में इंकलाब हो
कुछ ऐसा सोचते किसी के लिए तो मलाल हो

हम है कि रातभर अधसोये अधजगें सपने देखे
उन्हें भी कभी तो हमारे इन ख्वाबो का दीदार हो

मसला नहीं कि बात नहीं होती,मुलाकात नहीं होती
न होने को जो तक़रार नहीं होती उसका हिसाब हो

भूले भटके कब कभी ऐसा वैसा जो कुछ हो जाता है
देर न हुई अब तो लेकिन बात पुरानी का अंदाज हो

किस क़दर हलचल मची रहती है यहां वहां दिल में भी
देखकर दुनियां शर्माती है औऱ जवां लफ़्ज़ों को साथ हो

अंदाजा है कि वो यहीं रहते है गली के नुक्कड़ मकाँ में
चलते चलते कभी दिखे तो इशारों इशारों में पहचान हो

कोई शुक्रिया,कोई नाराज़गी,वक़्त की चौखट से निकले
अरसे बाद लौटे ज़माने में मेरी एक मुस्कुराहट स्वीकार हो !

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3 SEP AT 8:32




चाँद सितारों सा जो चमकता है चेहरा तुमसा लगता है
सूरज को तकता रहा भरी दुपहर दिन तुमसा लगता है
महोब्बत के कायल लोग वाह वाह करते रह गए तुमसें
बातों ही बातों में बेहिसाब ख़्वाब मेरा तुमसा लगता है
ज़िन्दगी को कौन मरने से पहले यहां वहां को रखता है
मेरा ईमान,मेरा ज़मीर अब तुम्हारे कदमों सा लगता है
तस्वीर को दीवार पर चुनवां भी दूँ लेकिन मजे की बात
दीवारों का रंग भी मुझको अब तो तुमसा नूर लगता है
कहने की बातें तो कब,जब,तब,इससे उससे तो कह दूँ
लेकिन अब तो मेरा दिल तुम्हारे बिना कहाँ को लगता है

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2 JUL AT 12:52

आयतें न निभाह कर औऱ खुदगर्ज़ रहने दे
मैं मुसाफ़िर हूँ मुझे तेरे मर्ज के क़रीब रहने दे
मैंने क्या नहीं औऱ क्या क्या न मांगा ख़ुदा से
मक़्क़ा मदिना छोड़ मुझको फ़क़ीरी में रहने दे
मुसस्सल इतना तो तेरा मेरे पास रहना बनता है
कुछ न बन सके तो मुझको तेरा चाँद रहने दे
इस बार के रोज़े साथ खोलें मग़र किसे मंजूर
कुछ भी न हो सके तो पाक़ मुसलमाँ रहने दे
इतनी दे मुझ को दिल में ज़गह कब्र जितनी
जो यह भी न हो तो मुझकों इंसान तो रहने दे !

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22 JUN AT 10:19


मिल तो जाते है मग़र इज़हार नहीं मिलते
इक़रार मिलते है मग़र इंकार नहीं मिलते

कहीं का कहीं को कुछ तो मिलता ही है
हो आमने सामने मग़र इसबार नहीं मिलते

चलते चलते मन की ताक झाँक होती है
होती है सुगबुगाहट मग़र इश्तहार नहीं मिलते

कौन इशारा दे अब मिलने मिलाने को
मिल भी जाएं दोनों मग़र इंतज़ार नहीं मिलते

लहुँ है कि रिसता बहुत है उसकी तरफ़
तरफ़ से होती है बातें मग़र एकतार नहीं मिलते

ख़ू में भी दोस्ती है बहुत गहरी इकतरफ़ा
दोस्तियां बहुत है मग़र इतवार नहीं मिलते

इजाज़त हो तो इज़हार,इक़रार,इंकार से मिल लूँ
सुना है ये मिलते है मग़र इक़सार नहीं मिलते !

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20 JUN AT 9:52

देख सकता है सबकुछ अनदेखा करके
कोई तो हो ज़िन्दगी में एक पेचा करके

रंग बदलते लोग मिलते है इस जहान में
कोई आएं औऱ ले जाएं मुझे कैदा करके

रहूँ या न रहूँ बाक़ी ज़िन्दगी कौन जाने
इक पल को कोई तो मिले जुनैदा करके

बेहोश,बेहाल,बेज़ान इक ही दिल तो है
दिल है तो दिल मिला ले वायदा करके

किसने कहा कि अब जिंदा मर चुका हूँ
कोई मेरी जान बख्श दे मेरा फायदा करके

इतनी रहमत तो कभी मौला से न माँगी
जो तुम सुन सको तो सुनना कायदा करके

अगली बार अगली महोब्बत का वादा नहीं
डर तो रहा हूँ महोब्बत से ही आपदा करके

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18 JUN AT 14:43


बारिशों में इक घरौंदा बनाते हो इश्क़ बहाते हो
कैसे ख़ुद्दार हो आग जलाते हो दिया बुझाते हो
कोई हसीन ख़्वाब क्या तुम पर हँसता रह गया
जो ख़ुद रोते रोते दूसरों को भी बेज़ा रुलाते हो
उम्र के हर छोर औऱ मोड़ पर कोई खड़ा मिलेगा
न जाने तुम किस किस को यूँ ही पुकार लगाते हो
मैं न कहता था कि यह दुनियाँ बड़ी मतलबी है
तुम दुनियाँ को दुनियादारी का पाठ सिखाते हो
रहने दो बहुत हुआ या हद में रहा करो,करो इश्क़
इश्क़ करते करते मुझसे इश्क़ की हामी करवाते हो

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17 JUN AT 10:49



चाटूकारिता की भाषा मुझ को नहीं आती
तोहमते कि सभ्य भाषा मुझ को नहीं आती

उम्र गुज़र गई हर किसी को चाहने में यारों
नाते-रिश्तेदारों की भाषा मुझ को नहीं आती

कोई रूठा है तो किसी का जिक्र तक नहीं
मग़र जी हजूरी की भाषा मुझ को नहीं आती

कोई खफ़ा है मुझसे औऱ खफ़ा हूँ ख़ुद से
ख़ुद से ख़ुदा की भाषा मुझ को नहीं आती

अदना सा इंसान हूँ और इंसान ही बने रहने दो
क्या कहूँ की शैतान की भाषा मुझ को नहीं आती

दो ग़ज ज़मीं का ही मसला है सबका सबसे
सबसे अलग कोई भाषा मुझ को नहीं आती

जिंदा हूँ तो दिल का कुछ कह लेने दो हुजूर
मरने के बाद कब्र की भाषा मुझ को नहीं आती !

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16 JUN AT 14:41

दुहाई दे औऱ जान बख्श दे
कोई मेरा इज़हार बख़्स दे
कौन कहता है तख़्त चाहिए
कोई मेरी तलवार बख्श दे
महोब्बत मेरी सरजमीं है
ख़ुदा दो ग़ज जमी बख्श दे
मैं लिखूँगा औऱ बज़्म है मेरी
इरादतन ख़िलाफ़त बख्श दे
जो कुछ न हो सके तो इश्क़
मेरी इज़्तिरार को बख्श दे
होशोहवास में तो कहता हूँ
तू मेरा इक़रार ही बख्श दे !

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13 JUN AT 17:43

ज़ुबानी बड़ा बेदर्द बेहया ख़ानदान में कोई
कोई एक है जो बत्तमीज ख़ानदान में कोई

होगा ऐसा वैसा कैसा जो कुछ लिखता है
मग़र अज़ीज़ से अधिक ख़ानदान में कोई

कहना है कि बड़ा बेशर्म औऱ बदजात कोई
नूर की लिहाज़ा चमकते है ख़ानदान में कोई

ख़ैर की अब तो सब अपने अपने रस्ते ख़ानदान
ख़ानदानों में कब कोई रहता है खानदान में कोई

बड़ा मसला है कि कब कोई बदलता है जनाब
जो न बदले वो ही तो होता ख़ानदान में कोई

यह बात तो बुज़ुर्ग कहते कहते ही तो मर गए
बुजुर्गों की लाठी सँभालता है ख़ानदान में कोई

अना ऐसी की बदचलन होने के हर दाग़ झेले
मग़र ख़ानदानी को निभाता है ख़ानदान में कोई

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30 MAY AT 16:07

तुम्हारी मुस्कुराहट को
दुनियाँ की किसी भी भाषा में
लिखा तो जा सकता था,लेकिन
ठीक वैसे ही,मैं मुस्कुरा दिया !

अब सोचता हूँ
मुस्कुरा देना,बेहतर अनुवाद था ?

मैं,तुम्हारी मुस्कुराहट को
आत्मसात करके
बार बार मुस्कुरा भी तो सकता था !

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