RITU Srivastava   (ऋत्विजा)
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Joined 19 May 2020


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Joined 19 May 2020
30 JUL AT 22:35

लिखे जो पत्र तुझे, प्रियतम! वे केवल लेख तो न थे,
थे प्रेम-निधान के वो मोती,जो हृदय-गर्भ से उगते थे।

स्याही नहीं, वे स्वप्न-सुमन थे, मेरे नयनों में जो झरते,
तेरे नाम के उजास तले,अंतस भाव सुवासित करते।

तेरे स्मरण की मधु छाया, हर शब्द में मैने खूब रचाई,
मौन पंक्तियों में गूँथी हुई , प्रणय-कथा अपनी सुनाई।

जब जब भी लेखनी थामी मैंने,उमड़ा भावों का सागर,
तेरे नाम की मृदु समीर में, गूँजती रस वीणा मन अंदर।

तेरी हँसी, तेरी करुणा, सब पत्र के वर्णों में रची समाई,
हर पंक्ति में तेरे स्पर्शों की मधुर स्मृति हर बार दोहराई।

शब्द बने कुंजों की कलियाँ, सिर्फ तेरा नाम ये संजोए,
स्वप्न-भाषा में ढल कर, प्रेम रागों की माला ये संजोए।

कभी संकोच, कभी मुस्कान , चुपचाप छंदों में बहना,
तेरी सुधि में भीगकर प्रिय, भीतर पुष्प-सा महकना।

तेरा रूप नयन-पट पे उतरा , हर छंद सुधा बन गया,
प्रेम-रंग ने हृदय को छुआ , भाव स्वयं मुखर हो गया।

ना पीर ,ना अवसाद, ना दुःखों की कोई धूमिल छाया,
था बस तुझसे योग का आवाहन हर शब्द में समाया।

होली के सतरंगी सा हया का रंग खत में उतर आया
सुर्ख गालों से गुलाल ले, हर वर्ण पर मैने तो लगाया।

हर हरफ़ थी अर्चना मेरी, हर स्वर में प्रेम प्रण ठहराया,
वह पत्र न था, ऋत्विज़ा की पूर्ण प्रेम-गाथा कहलाया

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27 JUL AT 0:00

शुभ जन्मदिवस
धर्मेन्द्र जी को सादर समर्पित

धर्मेन्द्र जी! आपके नाम में निहित धर्म निहित पुण्य प्रभा,
जग में आप फैलाए सत्य और करुणा ,सभ्यता की छाया।

हंस्य-विलास के सहज स्रोत , हृदय में बसे रहे रस-प्रमोद।
क्षण में रचो आप काव्य सुधा , वाणी में छंदमयी रसधार।

सखा-संबंधों के परम प्रतीक,मित्रों के जैसे संजीवनी स्तुति।
अंतस है देश भक्ति,ज्वलंत अग्नि सी देशभक्ति की साधना।

प्रकृति के प्रिय पुत्र, ये कलावती नंदन है हरियाली के प्रहरी,
संस्कृति के जड़ों से जुड़े सदा, संस्कृति के  निष्ठावान प्रहरी।

जन्मदिवस पावन दिवस पर ,ईश्वर से यही है मंगल-कामना:
जीवन हो शाश्वत यश से युक्त,स्नेह, सद्भाव, सिद्धि से पूर्ण,

धर्मेन्द्र जी! आप यूँ ही रहे प्रकाश-पुंज से,
सदैव अमर, सदैव आदरणीय।

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10 JUL AT 6:30

उसने मेरे हाथ में बाँधा ,उजला सा महकता कंगन बेले का,
प्यार से थामी मेरी कलाई,हौले से पहनाया गहना फूलों का।

चाँदी के कंगन, ठंडी छुवन,जैसे स्पर्श हो चाँद उजालों का,
हर छन-छन में गीत सुनूँ मैं,उसके मधुर से प्यारे बोलों का।

सोने के कंगन दमक उठे,जैसे दृढ़ वादा हो साथ में वर्षों का,
उसके मन की धूप सजी हो,मेरी मांग में सिंदूरी उजालों का।

काँच के कंगन खनक उठे,जैसे संगीत हमारी तीव्र श्वासो का,
हर टुकड़ा उसकी याद बना, चित्र बने कुछ भूले ख़्वाबों का।

लाख का कंगन रंग भरे, जैसे रंग हो मेरे पिया की बातों का,
बिंदिया सी मैं सज जाऊँ,बन जाऊँ छंद उसके गाथाओं का।

मूंगे की लाली कुछ कहती, राज़ छुपे हों दिल के सौग़ातों का,
उसकी आँखों में खो जाऊँ, बन साया उसकी फरमाइशों का।

लकड़ी के मूक कंगन बोले मुझसे,जैसे गीत हों मीठे रागों का,
उसके नाम की भीनी खुशबू उड़ती,बन अर्पण मेरी सांसों का।

धवल शंख का कंगन शुद्ध लगे, आह्वान हो पुनीत भावों का,
जहाँ न कोई छल ,बस सच्चा रूप हो प्रणय के अरमानों का।

रेशम के धागों सा नरम,स्पर्श अनुभूत हुआ प्रिय विश्वासों का,
हर लहर में बंधी तेरी ऋत्विजा,बन जाऊँ चित्र उन स्पर्शों का।

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26 JUN AT 7:00

जब-जब ये विशेष तिथि धरा पर उतरती,
मन–मंदिर में दीपशिखा सी यह जलती।
प्रेम–रवि पुनः उदित हो आलोकित करता,
और आत्मा निस्सीम नीलिमा में खो जाती।

प्रेम की नव -प्रतिज्ञाओं की नई मधुलता में
विगत वेला आलिंगन पा हुलसती, मचलती
यह हमारे अमिय प्रेम की अद्भुत पुनरावृत्ति,
हमारे प्राण–पृष्ठ पर अमृत–वर्षा बरसाती।

ये स्पर्श तुम्हारा समीर सम आँचल सहलाए,
शब्द बिन भी मन का संवाद सब कह जाए।
इस विशेष दिवस की यह प्यारी मूक पुकार,
हर जन्म तुम्हारे संग का वरदान मिल जाए।

ये दिन नहीं बस पलकों का सपना है लगता
ब्रह्मांड भी हमारे संग अपना अस्तित्व कहता
हर बार यह तिथि पुनः प्रेम का संकल्प बनती,
और हमारे हृदय में परिपक्व प्रेम अर्थ रचती,

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13 JUN AT 6:05

उम्र के उस पार चलें हम,जहाँ ना रहे ये शब्दों का भ्रम,
जहाँ नयन गगन-से स्वच्छ हों,प्रेम स्वयं हो दिव्य परम।

जहाँ न मन के ताप जलें, तन-चित में कोई द्वंद न हो,
जहाँ चिरंतन शांति बरसती , सुधा-सा हर स्पंदन हो।

संध्या के स्वर में हो आलोक,संधान जहाँ अन्तः मिलते,
तेरे मेरे अंतर के तट पर, स्वप्न सुगंधित पंख है खिलते।

वृक्षों की छाया में बैठे,नीरवता का प्रणयमुग्ध गान सुनें,
तेरे अधरों के सौरभ से, ये मंदाकिनी के तारागण झुकें।

हरसिंगार की गंध लिये, मेरे ये कुंतल जब मुक्त लहराएँ,
समीर थमे, दिशाएँ रुकें, वसुधा मही निज स्नेह लुटाए।

तेरी दृष्टि में ज्योति बसे ,मेरे हृदय में अनुराग-दीप जले,
जिसकी लौ में मिट जाए मैं , तू भी बूँद बन मुझमें ढले।

न कोई नाम शेष बचे, न 'मैं', न 'तू' — बस प्रेम ही बहे,
सप्तसिन्धु-सा शांत प्रवाह,कोई द्वेष इसे छू भी न सके।

न भू के बंधन, न देह रहे,न काल के खंडित बिम्ब भरें,
बस आत्मा की ओस बने,हम शाश्वतता के स्वर से झरें।

हिमगिरि शिखरों पर रवि की रश्मि उतरती हो चुपचाप,
वैसे तेरे स्नेह-पटल पर मन की आभा का हो आलाप।

हर पल हो जैसे ऋतुराज,हर क्षण प्रेम-वर्षा की हो रात,
साँझ न हो,न भोर कभी हो मिलन का लयबद्ध प्रपात।

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28 MAY AT 6:00

प्रणय धुन की हर मृदुल तान में, जीवन वीणा जब झंकृत हो,
विलीन चेतना गहन भाव में, ये सुरभित सुधा-सा सत्कृत हो।

तेरे कर-स्पर्श की सिहरन, सुधा-सिक्त नभ में अनुगूँजित हो,
मनस्विनी चेतना की वीथी, स्नेह-कणों से अभिसिंचित हो।

नयन-जलधि की श्याम लहरियाँ, शांति-संध्या में लहराती हो,
तेरे स्मित के विमल प्रभाकर,तमस-तनुता हर क्षण मर्दन हो।

शशि-स्निग्ध तेरी मधु छाया, जब तेरे आलिंगन का बंधन हो,
तब रजनी बने मृदु वाणी, निश्वासों से कविता अभिनन्दन हो।

विहग-वृन्द भी मौन हुए हैं, तव मधुर गान से सब लज्जित हो,
भावों के नर्तन से रँगकर,सुर-पंखों पे स्वप्न सजा नव स्पंदन हो।

विनु तेरे, रिक्त दिशाएँ, शून्य प्रतीति सृजन में बिना संवेदन हो,
तेरे पद-स्पर्श से भू पर, सजीव सुधा जीवन का अभिनंदन हो।

तेरे प्रेम-ज्योति से उर में, चेतन में नवल स्फुरण का आनंद हो,
प्रति क्षण तेरी स्मृति से सिंचित,मेरे जीवन का पूर्ण समर्पण हो।

तेरे गंध-मुखर उपवन में,बहता मधु-पवन का शीतल चन्दन हो
तेरी चपल दृष्टि की करुणा से, जागे प्रेम भावों का मधुबन हो।

प्रणय-सिक्त उर की धरती पर, जब तेरी ही स्मृति की वर्षा हो,
तब कंटक भी मृदु बन जाते,जैसे मानस मन पर ऋतुशोभा हो।

तेरे चरणों की पावन ध्वनि, मेरे जीवन का नव जीवन-गान हो,
धूल-सहित उठती चेतना, पाकर तव मधुर स्पंदन-विहान हो।

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4 MAY AT 10:23

जब तुम मिलोगे,अंतर की व्याकुल जलती अग्नि को,
स्वर्णिम शीतलता से नहलाते, हृदय गूढ़ कपाट खोल,
अश्रु की अविरल निर्झरिणी में स्वतः हम बहने लगेंगे।

जब तुम मिलोगे, नभ की मृदुल प्रसन्नता में उन्मुक्त,
धरती की निसर्ग-सौरभ में, पवन के करुण स्पर्श में,
जीवन का समस्त अभिप्राय मूक हर्षनाद बन गूँजेगा।

जब तुम मिलोगे,संवेदना के अम्लान उपवन की सैर में,
जहाँ प्रत्येक कुसुम अधीर, प्रेम कथा कहने को तत्पर,
नर्म पर्ण ओस-बिंदु संग मधुर सन्देश अनवरत रचेगा।

जब तुम मिलोगे,सृष्टि के गहन अर्थ स्वयं उजागर होंगे,
अंतर्मन में रम्य ज्योति जगेगी,पूर्णता में लय को पाएँगे,
तुममें, बस तुममें, एकरूप होकर समाहित हो जाएँगे।

जब तुम मिलोगे, कुसुमगंध बन,वायु के चंचल झोंकों में,
स्वप्निल धरा के एकांत को चुपके से उत्कट चूमते हुए,
सिहरन भरे सौंदर्य में सृष्टि को संपूर्ण रागमय कर दोगे।

जब तुम मिलोगे, नवनील नभ के म्लान अंचल में बिखरे,
क्षणभंगुर तारा बन, मधुर क्षितिज पर झिलमिलाते हुए,
अनंत के सौंदर्य में मन को प्रफुल्ल चिरमुदित कर दोगे।


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13 APR AT 7:00

सदा प्रेम तुम्हे, 💓 न क्षणभर की सिर्फ अभिलाषा,
वरन् चिरंतन आत्मिक संलयन की है ये तो भाषा।
तुम्ही में प्रारंभ, तुम्ही में समापन की संपूर्ण है गाथा
प्रेम की प्रेमार्द्र धारा को नहीं बांध पाती परिभाषा।

सदा प्रेम तुम्हे💓 न केवल मिलन की तुझसे कल्पना,
वरन् हर वियोग में भी सदा रहा तेरा आश्रयालंबन।
तू सन्निकट या दूर क्षितिज पे रहे अविच्छिन्न सातत्य
मन का प्रत्येक स्पंदन तुझसे ही जीवंत अनुप्राणितl।

सदा प्रेम तुम्हे 💓तुम सुखद स्मृतियों की हो संजीवनी,
तुझसे जुड़ी उद्भूत हर पीड़ा भी है अमृत सुमधुर रव।
अविद्यमान तू पर आभास नित्य विह्वल उर में संचित,
अनुपलब्ध तू है व्याप्त,सदृश सुवास अछिन्न निहित।

सदा प्रेम तुम्हे 💓न तृष्णा, आकांक्षा किसी फल की,
वरन् सम्पूर्ण समर्पण की ये निर्विकल्प, आत्मार्पण।
न याचना, न शिकायत, न कोई अपेक्षा का है बंधन,
बस तुझमें ही तृप्त, तुझमें ही पूर्ण है हर अभिवंदन।

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17 MAR AT 7:00

तुम्हारा स्पर्श, सूर्यकांत मणि-सा,पिघलती मैं, सौंधी धूप-सी,
मृदुल पवन-से आलिंगन में, मैं हूँ बसी मधुरिमा, गंध रूप-सी।

तुम्हारे ये नयन, शरद चाँदनी-से,भीगती मैं, मधु ज्योत्स्ना-सी,
अधरों की छूअन, रस सरिता-सी,बहती मैं, स्वर रागिनी-सी।

तुम्हारी स्मिति,रजत प्रभा-सी,निखरती मैं, कुसुमित रूप-सी,
स्नेहसिक्त उस दृष्टि पथिक में,लहरती मैं, कोमल स्वरूप-सी।

तुम्हारे चरणों की थिर गूँज,गूँजती मुझमें दिव्य नाद रूप-सी,
स्पर्श तुम्हारा, तप्त अर्चना-सा,जागती मैं,चैतन्य नर्म धूप-सी।

सपनों की नव वीणा साज बन मैं,बँधी तुम्हारी मधुर थाप-सी,
तुम ज्योति बनो,मैं बाती,जलती रहूँ, मुकुलित नयन दीप-सी।

तुम हो गगन के दिव्य नयन,मैं धरा फूलों से सुवासित वादी सी,
संलयन के इस पावन क्षण में, मैं हूँ बसी बस तव सानिध्य-सी।

तुम्हारी वाणी,कोकिल तान-सी, महकती मैं,मधुमय गीत-सी,
भावों की सरिता में बहती, मैं हूँ रची उत्कीर्ण प्रणय प्रीत-सी।

तुम्हारा चिंतन, गहन सागर-सा, डूबती मैं,मोती की साध-सी,
प्रेम ज्ञान के उस दिव्य आलोक में, मैं हूँ जगी दिव्य बोध-सी।

तुम्हारी छाया, वट वृक्ष-सी, पोषित मैं तुझ में परावलंबी सी,
सुरक्षित तेरे स्नेह भुजदण्ड में, रहती मैं थमी शांत भीड़-सी।

अनुरक्ति तेरी है निष्काम यज्ञ-सी, अर्पित मैं, पावन भेंट-सी,
हूँ समर्पित उस कर्म पथ पर, मैं हूँ दृढ़ संकल्पित चेतना-सी।

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12 MAR AT 0:00

प्रिय शंभू सखा ♥️🌹
शंभू सखा, स्नेह के सागर, निर्मल मन, उज्ज्वल सा आंगन।
सीधे-सादे, सरल स्वभाव के, मित्रों के हित अर्पित जीवन।।

जहाँ प्रेम का दीप जले, वहाँ हरदम तुम्हारी छाया है होती,
स्नेह, समर्पण, निष्ठा तेरी, हर मन को सही ये राह दिखाती।

धर्मपथ पर अडिग खड़े हो, सत्य  तुम्हारा अनमोल आभूषण,
करुणा, दया, नेकी संग, जीवन का अपने तुमने किया सृजन।

संग-साथ जो मैने तेरा पाया,कभी ना खुद को अकेला पाया,
संग तुम्हारे चल कर मैने,प्रेम में ही भक्ति का आभास है पाया।

जन्मदिवस पर शुभकामनाएँ,सुख-समृद्धि आपके संग सदा रहे,
तेरी सहजता,नेकी के कारण मैं ये चाहूं तू हर जन्म मुझे मित्र मिले 

देवी शची जो तूने मुझे नाम दिया ,नाम अनुरूप ही सम्मान दिया 
पाकर तुम्हे अपना मित्र ,सारे जहां सर फक्र से ऊंचा मैने किया।
देवी शची ❤️❤️

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