तुझको सोचे बिन रह जाते तो अच्छा था
हम भी तेरे जैसे हो पाते तो अच्छा था-
बेघरों को क्यों सताती रखा हया को ताक पर
चिथडों से झांकती है सर्द कुछ तो शर्म कर-
तुलसी दुल्हन हैं बनी दुल्हा शालिग्राम
तुलसी हरि की प्रियसी हरि स्वयं गुणग्राम
तुलसी और कोई नहीं है लक्ष्मी अवतार
विष्णु प्रिया सब शुभ करें हर घर हो सुखग्राम
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सेवा हम ना कर सके किया न कुछ भी मान
ग़लती सब बिसरना रखना सबका ध्यान
जैसा हमसे बन पड़ा उतना किया मनुहार
रुचि अनुरूप आपकी तैयार किया आहार
चरणों में वंदन करें रखना कुल का ध्यान
देवालयम मुस्काये सदा सुखी रहें संतान
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पुराने वो किस्से चलो फिर जियेंगे
ठहाके लगाते उन्हीं गलियों में चलेंगे
ज़माने की सारी फ़िक्र छोड़ कर हम
चुरा कर समय फिर सफ़र पर चलेंगे
ये सांसों की हलचल यूं क़ायम रही तो
किसी शाम यारों यक़ीनन मिलेंगे
बिता चाहे कितनी उमर ले यहाँ पर
मिलोगे तो फिर से पीछे चलेंगे
महकती रहेगी इसी आस "ख़ुशबू"
के दोस्ती के बग़ीचे में फिर गुल खिलेंगे
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पितरों का स्वागत करें,पितृ पधारे द्वार
पितृ चरण में सपरिवार,वंदन शत शत बार-
मेरे जीवन में आने वाले हर
स्वभाव
प्रभाव
अभाव एवं
घाव
को सादर नमन
आप सब ने मुझे
कुछ न कुछ सिखाया है!!-
तुम्हारी सरलता पर मरने वाले बहुत मिलेंगे
पर जो तुम्हारी सख़्त मिज़ाजी पर अटक जाए
वही तुम्हारा है !!-
उकेरे गए थे आत्मा पर जन्मों पूर्व तुम
आज देह पर अंकित तुम्हारा नाम भी कर दिया
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