तसले के अंदर
राख में बची आग
अब ठंडी हो रही है
खटिया पर
दो सुईयों के बीच अधूरा पड़ा
हाथ का बुना स्वेटर
टसुए बहा रहा है
वापसी की गाड़ी ने
धीरे से रफ्तार पकड़ ली है
एक घर उबासी लेकर
फिर से खंडहर बन रहा है-
तेरे जाने में और आने में प्रीतम
हमने,, इक जीवन का अंतर देखा।।
मृत प्राय एहसासों को ब-उम्मीद,,
पुनर्जन्म की क़तार में देखा...
मजबूत दिल के हौसलों को यकलख़्त
नेस्तनाबूद.. बेबस देखा...
ख़ुद के सवालों से ख़ुद को न
पहले... यूँ लहूलुहान जर्जर देखा...
वर्षों से सोए ग़म को,, सहारे तन्हाई,,
लेते हुए अंगड़ाई देखा...
हाँ... तेरे जाने और आने में प्रीतम,,
हमने इक जीवन का अंतर देखा...-
ऐसा लग रहा दिल पर किसी ने बड़ा सा पत्थर रख दिया है
कुछ है जो अंदर ही अंदर चुभ रहा है
एक टीस उठ रही है दिल में
जैसे हज़ारों ज़ख्म एक साथ उभरने को हैं
कुछ दूर हो रहा है शायद
कुछ है जो ख़त्म होने को है
नहीं, हर दर्द प्यार का नहीं होता।
"घर से वापस हॉस्टल जाने की तैयारी हो रही है.."-
' वापसी '
रात बादल
बरस रहे हैं
ऐसे बरस रहें है
की बरसों बाद
बरसे हों..
-
कितना मुश्किल है उस सफ़र से वापसी करना,,
जिस पर किसी के साथ बहुत दूर तलक़ चलें हों-
आह,
कितने दिन बाद नीड़ पर लौटी हूं,
कबसे ऊंचे गगन पर थी,
थक गए पंख भी मेरे,
साथ मेरा देते देते,
अब आराम चाहिए,
हां थोड़ा विश्राम चाहिए,
जाने कौन कौन से बादलों से मिली मैं,
थोड़ा हंसी, थोड़ा रोई मैं,
मन बावरा बन भाग रहा था उनके पीछे,
जाने क्यों थी उन बादलों के पीछे बैचैन मैं,
अब उन सभी भ्रमित बिंबों से राहत चाहिए,
हां सुकून भरा एक पल चाहिए,
मुझे बस मेरी वो पुरानी डाल, और मेरा नीड़ चाहिए।।-
बार बार बुलाने पर भी....
जब तुम मुझमें न लौटे....
मैं ख़ुद ही ख़ुद में लौट पड़ी
। पूर्णविराम ।
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आज अपनी सारी अमानत वापस लाए हैं
सच पूछो तो
अपनी जमानत वापस ला आए हैं
दिल टूटा धड़कन रुकी बदन में हुई कंपकपी
बड़ी मुस्किल से खुद को
सलामत वापस लाए हैं-
बराबर सा लगता है सब...
ढूँढने पर भी वापसी का पता नहीं मिला है !!
निशाँ बनाए तो थे जहाँ से कदम गुजरे तब...
राह-ए-दिल को शायद कोई रौंद के निकला है !!-
जिसे एक बार खो ही चुके हो,
वो वापस आए
तो भी क्या यकिन कि बदला नहीं |
वो वही है,
वैसा ही हैं,
जैसा था
खोने से पहले।-