दुर्गेश कुमार दीक्षित   (अभिशापित"राधा का दीवाना")
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Joined 15 April 2018


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बहुत अमीर है उसका नया यार
उसने मेरी मोहब्बत ख़रीद ली

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कुत्तों की तरह पीछे पड़ा था वो शख्स
मुझे लगा कि "वफादार" भी होगा शायद

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हालातों को पार कर
नींदों से लड़कर
सपनों को साकार कर
आंसू एक मत बहा
सामने मंजिल है "जा" पार कर

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मुझे बहुत कम चीजें पसंद है जैसे
काला रंग, बूढ़े पेड़, पुरानी हवेलियां
सर्दियों की रातें,सावन की बारिश
आंखों में एक ख्वाब, हाथों में एक हाथ
और दिल में सिर्फ तुम....

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तुम्हारे लिए मुनासिफ था
हमारा जमाने भर से लड़ जाना
लोग जमीन के टुकड़े की खातिर लड़ जाते है
तुम तो चांद का टुकड़ा हो जाना

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वो अपनी एक सहेली की बातों में आ गई
उसकी एक सहेली को में "जहर" लगता था

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वो कहते थे कि बेटियां पढ़ाओ बेटियां बचेंगी
अब बेटियां पढ़ी भी, तो भी बची नहीं

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जिल्लतें, तोहमतें
बदमिजाजी बेरुखी,
पीछे मुड़ के देखे तो
यही फसाना निकले ।
लाज़िम है मोहब्बत में सब
मगर एक हद भी है,
दिल देख के जला कहीं
तेरा ही काशाना न निकले ।।

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देख के उसी बदमिजाज के
दो बूंद झूठे आंसू
सोचा पत्थर का है
दिल तो कागज का काशाना निकला

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हम तो हमेशा तलबगार ही रह गए
कभी तेरे तो कभी तेरे वक्त के

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