Ali Nausad   ("अली")
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Joined 11 November 2020


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Joined 11 November 2020
YESTERDAY AT 16:49

बिखरना लाज़मी था मेरा,,,
आईनें सी किस्मत जो पायी थी!

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4 JUL AT 11:31

मेरे साथ मेरा वजूद भी कुछ ऐसे ढल रहा है,
जैसे कोई टूटा हुआ आईना अपना अक्स बदल रहा है!

आज फिर कोई याद मुझसे टकराई तो ऐसा लगा,
बिछड़ा हुआ कोई शख्स जैसे मेरे साथ चल रहा है!

बारिश की चंद बूंदें गिरी तो महसूस हुआ,
आसमां यूं रो रहा जैसे कोई जनाजा निकल रहा है!

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2 JUL AT 17:47

मैं अपनी तमाम नाकामियों पर शर्मिन्दा हूं,,,
नहीं मालूम क्यूं हूं... मगर मैं आज भी जिंदा हूं!

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29 JUN AT 17:30

मुट्ठी में बंद रेत की तरह होते हैं कुछ लोग,
ज्यादा संभालने पर इन हाथों से फिसल जाते हैं!

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26 JUN AT 22:14

ख्वाब आंखों में ठहरते ही नहीं थे,,
इसलिए मैंने देखना ही छोड़ दिया!

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22 JUN AT 16:29

लकीरें भरी पड़ी थी...
फिर भी हाथ खाली रह गया!

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21 JUN AT 9:29

जरा सी बारिशों की
दस्तक क्या हुयी...
इन आंखों में ठहरा शख्स,
इन आंखों से बरस पड़ा!!

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14 JUN AT 18:33

बहुत संभाल के रखें हैं तेरे हिस्से के आंसू हमनें,,,
कभी मिलोगे तो तुमसे लिपट कर बेतहाशा रो लेंगे!

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13 JUN AT 0:38

मैं हार गया अपने मुकद्दर से वर्ना...
मेरे तमाम ख्वाब तो आज भी
मेरी पलकों की दहलीज़ पर बैठे हैं!

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9 JUN AT 17:35

जवानी के सारे शौक़ तक खा जाती है,,,
जाने कितने अरसे से भूखी है ये मुहब्बत!

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