ख़ुद को क़ैद नहीं करना, अभी सब ख़ुशियाँ पानी है
एक पल ही चाहे मिले.. पर पूरी तरह जी जानी है
जैसी चले तेरी धूप-छाँव, वैसी ही इक निशानी है
अंधेरों-उजालों से गुज़रती.. मेरी भी यही कहानी है
एक मुसाफ़िर हूँ यहाँ, सफ़र में उम्र बितानी है
हर सूरत रस्ते में.. सामने लगे जानी पहचानी है
ज़िंदगी तेरे दम से ही तो हूँ, बाक़ी महफ़िल बेगानी है
जीना तेरी आरज़ू में.. कहाँ अपनी मर्ज़ी से गुज़ारनी है-
Kehdiyakaro ♥️
“जीवन” है वो तीन “अक्षर” …अलग जहाँ सबका “सफ़र”
अपने अपने सपने देखे सारे …देनेवाले ने दी एक सी “नज़र”
मिले ख़ुशी में गम ना गम में ख़ुशी बस ऐसा होता “गुज़र”
एक ही “मंज़िल” पर “मरण” …”समझ” ना पाया कोई मगर
“कलम” से लिखे कहानी तो ख़ामोश कोई फिर भी “असर”
“समेट” कर रखना चाहो जितना …बिखरा कभी “इधर उधर”
बन जाए एक मिसाल ऐसे जीयो छोड़े बिना कोई “कसर”
आज ही है बाक़ी कल क्या होना किसी को क्या “ख़बर”-
मैंने दिल को निचोड़ दिया निकालने के लिए तुझे
हो गया फिज़ूल में ही… वक़्त ज़ाया जानता है
है तो मेरी ही गलती जो तुझसे हुआ राबता है
वरना तू अपनी सच्चाई… तो ख़ूब जानता है
तुझे लिखते हुए भी अनोखी ज़बान थी सीखी
लगा लफ़्ज़ काग़ज़ों को… बेख़ूबी सजाना जानता है
वो बदला तो बदल के रख देना मेरा नाम
ये दावा करते हुए मुझे… लगा हर सबब जानता है
नज़रों ने तुझे उतना समझा जितना समझाया
बाक़ी किसी के दिल में क्या… ये कोई नहीं जानता है-
ऐसे चैन
तू छेड़ के आज तक सताती है
ये क्या बेफ़क़ूफ़ी है ओ ज़िंदगी
तू सबकी बातों में आ जाती है..!!
इतना नाकाम ना कर हर बार
दुनिया मुझे तेरे नाम से जानती है
कोई माँगे मेरे लिये ख़ुशी तो सुन
बाक़ी बुरी नज़र वैसे ही लग जाती है..!!-
हम तुम्हें नहीं जानते इतना कह गए
साथ देखा है किसी का शक था
हम तो पर सीधा सीधा मुकर गए..!!
वास्ता हमारा अब दूर तक नहीं था
गुज़रे कहीं से वहीं सलाम कर गए
पहले था एक ज़िंदगी का ख्वाहिशें से
वो पुराने रिश्ते कब से ख़त्म हो गए..!!-
रह गई आग कोई छोटी सी दबी
ख़ुद को आवाज़ लगाकर देखें..
बंद है सदियों से दिल कि खामोशी
सामने आइए फिर पुकार कर देखें..!!
चाहे शिकवे ही खोद कर पूछें
एक बार फिर कुछ समझाकर देखें..
माना ज़िंदगी बोझ है तो है सही
सिर्फ़ अपने कंधों पर उठाकर देखें..!!-
दुनिया में
वो खिलौना फिर मिला ही नहीं
बचपन से संभला हुआ था
बिछड़ा पर कभी खोया ही नहीं
किसी का था होता भी नहीं
और किसी का कहलाया ही नहीं
एक छोटे ख़्वाब से तो खेले
कभी कोई दूसरे से बहलाया ही नहीं
ये कौन है छीन ले गया मुझसे
जिसने उसे अपनी आँखों से देखा ही नहीं-
मुझे मुजरिम बना गए
अच्छे ख़ासे निकले और बेकार ही पकड़े गए
ये मिले वहाँ थे, जहाँ मैंने की थी शिकायत
बर्दाश्त जिसे ना थी इल्ज़ाम वही लगाकर गए..!!
मेरा भी क़सूर ना था आँखों में धूल पड़ती रही
रिश्ते रेतीली ज़मीन पर चलके बहाने सीख गए
रस्ते पर आए थे घर से साथ लेकर तो प्यार ही
ना जाने किसकी बातों में आकर सब भूल गए..!!-
बिन सोचे ही ज़बान खोलता हर कोई
यहाँ अब
किसी का दिल भी टटोलना भूल गया
अपनी समझ के आगे नासमझ हर कोई..!!
अलग ही तरीके से सुनाते हैं फ़रमान
मानता यूँ खुद ही को ख़ुदा हर कोई..!!
क्या सही क्या ग़लत का वो फ़साना
रिश्तों के लिबास पर पहचाने हर कोई..!!
परख के लहजों को शिद्दत देखी जाती है
नज़रों में अब झाँकता नहीं है हर कोई ..!!-
यहाँ किस तरह ज़िंदा रखे -kehdiyakaro
जो हसरतें बनती है दिल में कभी AnjaliS
कैसे उनका कोई हिसाब रखे…
कमजोर कर गयी है गणित मेरी
इतने सवालों का जवाब देके
मोहलत ही चार दिन मिली है
कहाँ अब दो उसमें भी बेकार रखे…
रात भर खुद सजाया जो सपना
आँखें भी खुलते ही सुबह तक ना देखे
दुनिया में कहाँ पराया कोई अपना
अजनबी से रिश्ता फिर कोई क्या रखे…-