सुनो दर्द!
जब कभी भी
कोशिश करते हो तुम
निकलने की
उँगलियों के रास्ते,,,
महसूस होती है पीड़ा
की, बदन में
एक नुकीली लहर..
और भींच लेती हूँ
तुम्हें मैं
उँगलियों समेत
अपनी हथेलियों के
दामन में...
तपन से जकड़ की मेरी
सहज होने लगते हो तुम..
कुछ ही देर में
लौट आते हो
धमनियों में मेरी...
लहू और नमक का
रिश्ता है प्रिय
तुम्हारा
मेरा...-
मैंने "इश्क़" चुना है....©
जरूरी तो नहीं कि जो मिला बस वही... read more
जान पहचान का फ़न न आया मुझे इसलिए
ज़िंदगी अजनबी सी मिली हर सुबह सामने..
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गंध अपनी ही पराई मान भटके मृग कस्तूरी
तू भी ढूँढे निज इतर निज को कहां है, रे अनुरागी!!
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कभी कभी
अहम दर्द नहीं होता
बल्कि
अहम होती है
दर्द की वज़ह...
और हम
उस वज़ह के प्रेम में होते हैं...
.....
ऐसे में...
हम ख़ुद को उस दर्द के
क़ाबिल बना लेते हैं...
मगर
उफ़्फ़ तक नहीं करते...
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राह-ए-वस्ल में
मुसलसल जो इंतज़ार जिया..
कभी अनचाहे जिया
कभी राजी-ख़ुशी जिया
पल पल जिया
और
साँस साँस जिया...
लाज़मी था
बाद-ए-वस्ल भी
उस इंतज़ार को जीते जाना...
इश्क़ में हिस्सेदार नहीं है
इंतज़ार,,,
बल्कि
खुद इश्क़ है
इंतज़ार...
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साँसों में है महकती ख़ुश्बू-ए-भारती
दिल में पुरज़ोर..जज़्बा-ए-वतन-परस्ती
वीर शहीदों की अमानत.. ये आज़ाद-भारती
हम पर करम-ए-ख़ास-ख़ुदाया है जश्न-ए-आज़ादी
न्योछावर तुझ पे दिल-ओ-जाँ है,, ऐ वतन भारती!!
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सुनो!!
तुम्हारे प्रेम में,,,
मैंने..
उन तमाम
शय-ओ-शख़्स से प्रेम किया
जिनसे...
तुम्हें प्रेम है..
और,,,
आषाढ़ दर आषाढ़
मेरा इंतज़ार
बस इसी
उम्मीद की वर्षा में
भीगा है.... कि
कभी यूं भी हो..
.....
मैं ख़ुद के ही
प्रगाढ़
प्रेम में
पड़ूं....-