कांच के बाहर की परत
मुझ जैसी है।
बूंद जैसी तुम
छूकर गुजरती रहती हो।
न तुम रुकती हो,
न मेरा मन भरता है।-
वो तो बरसात सी आयी थी
हर बूंद में जिंदगी संग लायी थी
पर उसका जाना तो तय था,
कमबख्त गलती तो हमारी है
उसके आने से रोशनी क्या मिली
हम उसे सूरज की किरणे समझ बैठे।-
" मोह "
एक बूंद बारिश कि चेहरे पर पड़ी ।
चेहरे से टपक हथेलियों पर गिरी।
मैं देख कर थोड़ी मुस्कुराई।
वो अपनी शैतानियों पर खिलखिला रही।
सूरज से बचने के लिये मुट्ठी में चली ।
उसके ताप से देखो कैसे है डर रही।
छुप छुप कर बड़े विश्वास से मुझे ताक रही।
घबराई हुई वो हाथों की रेखाओ में छुपी।
लेकिन वो तो बूंद थी , बूंद बन चली।
मुट्ठी से छूट कर हवा में घुली ।
वो तो क्षणिक थी , क्षण में चली।
उससे कैसी ये मोह मुझे है लगी।
जाने से उसके ह्रदय में पीड़ा हो रही
✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या
-
बूंदे
है तो
नन्ही सी,
लेकिन सहेज
ले जो खुद को तो
सागर की लहरें बन जाए,
कभी ओढ़कर चादर सिप की,
मोती बन ये इठलाए, कभी समाकर
मिट्टी में पेड़ को उसका अस्तित्व दे जाए
तो कभी किसी के दर्द में बनकर आंसू ये
बह जाए। अजीब है सफर बूंद का, मिल
कर बूंद से ये बूंद ही रहती,टूटकर खुद से
बूंद फिर से बूंद ही बनती। चाहत गजब
है इन बूंदों की धरती के कण कण से
बारिश बन आसमान से धरती पर
आकर फिर उसमे मिलती है
-
किसी बादल की तरह वो, कतरा कतरा गिरता है..
एक दरिया सी हूँ, मैं इश्क़ की, जिसमें वो बूंद बूंद सा रहता है..!-
कुछ बूंदें अंदर जाते ही मेरा अस्तित्व तेरे साये में सो जाता है
जब चिट बोतल की खुलती है तो बिन पिये नशा हो जाता है-
पता नहीं वो शख्स,
कितना बेताब था,,,
थी एक बूंद की प्यास ,
और खोदा तालाब था ,,,-
मेरे शहर में पानी इतना तो है
कि तुझे पिला सकूँ और खुद भी नहा सकूँ
पर शायद दिल में इतना दर्द नहीं
कि दो बूंद आँखों से बहा सकूँ-
रहता है परदे में कहीं, छुपकर मगर।
हां वही जो है, मेरा हम सफर।।
कहीं खोया है, फिर भी इतने पास है।
जैसे धड़कन में नब्ज का ऐहसास है।।
उसके जैसा जैसा कोई खूबसूरत नहीं ,
वो हो तो किसी और की जरूरत नहीं।
वो अकेला ही, पर मेरा इतना खास है।
जैसे पहले शावन की बूंदों का ऐहसास है।।
रहता है परदे में कहीं, छुपकर मगर,
हां वही जो है, मेरा हम सफर।
आखिर इस परदे में ऐसा क्या राज है,
जिसे देखने को हर कोई मोहताज है।।-